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वर्ष 10, अंक 34, सं. 2013 वि., 11 मार्च, 1957, मूल्य 3आनेसम्पादक : तिलक सिंह परमारप्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म प्रकाशन लि.,गौतमबुद्ध मार्ग, लखनऊ (उ.प्र.)पंजाब जनसंघ के कार्यकर्ता को धमकी भरा पत्र, कार्यकर्ता में दूना उत्साह(निज प्रतिनिधि द्वारा)जालंधर: कृष्णपुरा मोहल्ले के जनसंघ के प्रमुख वैद्य प्रकाश चन्द्र “हीरक” को एक गुमनाम पत्र द्वारा धमकी दी गई है कि वे जनसंघ को अविलम्ब छोड़ दें। इस विषय में मुख्य बात यह है कि जालंधर के उत्तर-पूर्व क्षेत्र से पंजाब जनसंघ के उपाध्यक्ष श्री लाल चन्द्र सब्बरवाल, एम.ए.एल.एल.बी, एडवोकेट, पंजाब के उपमंत्री कामरेड रामकृष्ण के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रखा है। यहां यह बताना उपयुक्त है कि श्री एवं श्रीमती वैद्य ने इस धमकी को किस रूप में ग्रहण किया है। यदि जनसंघ का काम करते इन दोनों में से किसी को आघात पहुंचा तो उन्हें प्रसन्नता होगी क्योंकि उनके अंत:करण में जनसंघ के प्रति अगाध श्रद्धा है। उन्हें इस प्रकार के पत्रों की बिल्कुल परवाह नहीं है। जैसे-जैसे इस प्रकार के पत्र उनके पास पहुंचेंगे, उन्हें कार्य करने में अधिक उत्साह मिलेगा। श्रीमती वैद्य के निम्नलिखित शब्द उनके हृदय के भावों को स्पष्ट रूप से प्रकट कर सकेंगे, “यदि जनसंघ का कार्य करने के कारण हमारा घर जल गया और हमें सड़क के किनारे झोपड़ी डालकर रहना पड़ा तो हम गौरव का अनुभव करेंगे।”हैदराबाद में ईसाई गतिविधियां जोरों पर:भोले-भाले हिन्दुओं को ईसाई बनाने का षड्यंत्र(निज प्रतिनिधि द्वारा)हैदराबाद: इन दिनों भारत में अमरीका से दूध के पाउडर के डिब्बे, बिनौले का तेल आदि खाद्य पदार्थ प्रति मास गरीब लोगों के लिए काफी मात्रा में आता है जो वितरण के लिए देश के प्रत्येक भाग में पहुंचा दिया जाता है। परन्तु उसका अधिकांश वितरण ईसाई संस्थाओं द्वारा ही होता है। इस सम्बंध में जो तथ्यों के अनुसार कहा जा सकता है कि जिन जिलों में ईसाई जिलाधीश हैं वहां प्राप्त होने वाला समस्त पदार्थ ईसाई संस्थाओं को दे दिया जाता है और जहां अन्य धर्मावलम्बी जिलाधीश रहता है वहां तो कम से कम आधा पदार्थ ईसाई संस्थाओं को ही दिया जाता है और शेष आधे में अन्य संस्थाएं। इस सम्बंध में महबूब नगर का उदाहरण सामने है। जब तक इस जिले के जिलाधीश श्री श्रीनिवास थे तब तक तो आधे पदार्थ ईसाई संस्थाओं को दिए जाते थे और आधे अन्य संस्थाओं को। परन्तु जब से श्री जी.बी. बट्ट पधारे हैं, सारा माल ईसाई स्कूलों को ही दिया जा रहा है।हरिजन आदि पिछड़ी जातियों में इन चीजों को बांट कर उन्हें सरलता से ईसाई पादरी अपने कार्य में दीक्षित करते हैं। अपनी अज्ञानतावश वे लोग सरलता से उनके जाल में फंस जाते हैं। असम का नागा प्रदेश इसका ज्वलंत उदाहरण है। अत: विदेशी सहायता का सदुपयोग बड़ी सतर्कता से करने की आवश्यकता है। कम से कम इनका वितरण ईसाई संस्थाओं द्वारा कदापि नहीं होना चाहिए।19
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