अंग्रेजी के ताले में बंद भारत का विकास
July 17, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

अंग्रेजी के ताले में बंद भारत का विकास

by
Aug 10, 2006, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 10 Aug 2006 00:00:00

-मधु पूर्णिमा किश्वर

संपादक, मानुषी

गतांक से आगे

यह सच है कि आर्थिक वैश्वीकरण के इस युग में अंग्रेजी भाषा की महत्ता थोड़ी मात्रा में ही सही, हर देश में बढ़ गयी है। अधिकांश देशों में अंग्रेजी शेष दुनिया के देशों के साथ संवाद के लिए प्रयोग की जाती है, विशेषकर अन्तरराष्ट्रीय लेन-देन के मामलों में। हालांकि कुछ गिने-चुने देश ही अंग्रेजी को आन्तरिक प्रशासन, शिक्षा, तकनीकी शिक्षा या व्यावसायिक गतिविधियां चलाने के लिए प्रयोग करते हैं। चीन, कोरिया, थाइलैण्ड, जापान, फ्रांस, तुर्की, ईरान, चिली या जर्मनी आदि देशों में कोई व्यक्ति बिना अंग्रेजी जाने भी अधिवक्ता, चिकित्सक, वास्तुविद् या अभियन्ता बन सकता है। इसके विपरीत भारत में बिना अंग्रेजी जाने कोई व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण पद पर पहुंचने के योग्य ही नहीं माना जाता। जहां दुनिया के अधिकांश देशों में बिना स्थानीय भाषा के ज्ञान के किसी व्यक्ति को किसी सुयोग्य पद पर बैठने के योग्य नहीं समझा जाता, वहीं भारत सम्भवत: दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जहां ऊंचे पदों पर बैठे उच्च शिाक्षा प्राप्त लोग, जिन्होंने देश में रहते हुए ही शिक्षा तथा पद पाया है, वे यह बताना सम्मानजनक समझते हैं कि उन्हें अपनी मातृभाषा नहीं आती। वह मातृभाषा हिन्दी हो, तमिल, तेलुगू अथवा अन्य कोई, वे दस वाक्य भी अंग्रेजी के शब्दों और लोकोक्तियों के प्रयोग किए बिना नहीं बोल सकते।

बहुत से लोग यह कहकर इसका प्रतिवाद करेंगे कि-

1. अंग्रेजी भाषा सफलता की कुंजी नहीं है, इसके विपरीत अंग्रेजी बोलने वाला वर्ग ऊंच जातियों से आता है। और अंग्रेजी का बढ़ता महत्व इन्हीं ऊंची जातियों और इनके ऊंचे पदों के कारण है।

अथवा 2. अंग्रेजी भाषा आसानी से सीखी जा सकती है क्योंकि इसके सीखने की कोई क्षेत्रीय सीमा नहीं है।

लेकिन यह कहना पूरी तरह गलत है। पिछली एक शताब्दी से हमारी शिक्षा पद्धति पर अंग्रेजी की प्रभावी पकड़ होने के बावजूद बहुत छोटी-सी संख्या ऐसी है, जो प्रभावी एवं सही तरीके से यह भाषा बोल सकने में समर्थ है। यहां तक कि अंग्रेजी पढ़े-लिखे वर्ग की भी स्थिति बहुत सन्तोषजनक नहीं है। हमारे अधिकांश परास्नातक और शोध उपाधि प्राप्त लोग अंग्रेजी में सही तरीके से तीन वाक्य भी नहीं लिख सकते, यद्यपि उन्होंने अपनी सारी परीक्षा अंग्रेजी में ही दी होती है। फिर भी वे अंग्रेजी के पीछे भागते हैं, क्योंकि अंग्रेजी का दिखावा भारतीय भाषाओं की तुलना में ज्यादा प्रभावी है। यही कारण है कि आज देश के लोग मध्य एवं निम्न मध्य वर्ग अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा भी अंग्रेजी में दिलाने के लिए सभी प्रकार के सामाजिक व आर्थिक त्याग करने को तैयार हैं।

वस्तुत: अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के प्रति भारतीय जनता के बढ़ते मोह के पीछे गैरअंग्रेजी माध्यम स्कूलों की गुणवत्ताहीन शिक्षा भी कम जिम्मेदार नहीं है। स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा ग्रहण करना आज निम्न छोटे स्तर की बात मानी जाने लगी है। यदि आप अंग्रेजी भाषा न जानने के कारण अशिक्षित माने जा रहे हैं तो आपके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं है, सिवाय इसके कि आप भी अंग्रेजी सीखें और वह भी अपनी सभी अन्य आवश्यक योग्यताओं की कीमत पर। गैर अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की तुलना में अंग्रेजी स्कूल आज अच्छे माने जाते हैं और यह भी कि जो इन स्कूलों में पढ़ते हैं उन्हें अधिक सभ्य माना जाता है। यह बात इस तथ्य के बावजूद मानी जा रही है कि अधिकांश अंग्रेजी स्कूलों की शैक्षिक गुणवत्ता बहुत निम्न स्तर की है। कुछ अपवाद छोड़ दें तो इन स्कूलों में पढ़े-लिखे अधिकांश छात्र अखबारों की रपट को समझने की योग्यता तक नहीं रखते। अंग्रेजी की गम्भीर पुस्तकों को पढ़ने की बात छोड़ दें तो भी वे अंग्रेजी से जूझने में अपनी सारी शक्ति खर्च करते हैं और जानबूझकर अपनी मातृभाषा के ज्ञान के प्रति लापरवाही बरतते हैं। और इस प्रक्रिया में उन्हें अंग्रेजी और अपनी मातृभाषा की भ्रमित खिचड़ी के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं लगता। इसी के साथ उनकी सोचने की क्षमता पर भी बहुत गंभीर असर पड़ता है क्योंकि भाषा शब्दों को समझने, विचारों को गुनने और प्रभावी संवाद की अवधारणाओं के प्रयोग का प्राथमिक साधन है। किसी व्यक्ति की सोचने की क्षमता बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाती है यदि वह कम से कम एक भाषा का अच्छा जानकार नहीं है।

यही एक प्रमुख कारण है जिसके कारण हमारे देश में बड़ी संख्या में पाठशालाओं व महाविद्यालयों में अच्छे अध्यापकों की कमी है। जो अच्छी अंग्रेजी जानते हैं, साधारणत: वे ऊंचे व ज्यादा वेतन वाले पदों पर पहुंच जाते हैं। जो थोड़े-बहुत अध्यापन क्षेत्र चुनते भी हैं तो वे बड़े विद्यालयों व विश्वविद्यालयों का रुख कर लेते हैं। दूसरी तरफ जो हिन्दी माध्यम या किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा के विद्यालयों में पढ़े-लिखे होते हैं वे अंग्रेजी ज्ञान के अभाव में यहां तक नहीं पहुंच पाते।

अंग्रेजी के वर्चस्व ने जो दुष्परिणाम पैदा किए हैं उसे हमें साहस के साथ स्वीकार करना चाहिए। वे जिन्होंने भारतीय भाषाओं में अध्ययन किया है और जिन्हें अंग्रेजी की सतही जानकारी है, उनकी विभिन्न विषयों से सम्बन्धित ज्ञान व सूचनाओं तक पहुंच नहीं हो पाती। कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनसे हमारे अंग्रेजी शिक्षित लोगों की संवेदनहीनता और अहंकार के कारण जन्मे अन्याय और विसंगतियों पर प्रकाश पड़ता है।

0 देश में चिकित्सा, विज्ञान, तकनीकी या सामाजिक विज्ञान विषयक पत्रिकाएं किसी भारतीय भाषा में नहीं हैं। सभी वैज्ञानिक अपने निष्कर्ष अंग्रेजी में ही प्रकाशित करते हैं तथा सभी तकनीकी संस्थान अंग्रेजी में पढ़ाते हैं। मानो अंग्रेजी ही विज्ञान व तकनीकी शिक्षा के लिए सहज व स्वीकार्य भाषा है। लेकिन थाइलैण्ड, कोरिया, चीन व जापान में ऐसा देखने को नहीं मिलेगा और न ही जर्मनी अथवा फ्रांस में।

0 देश के सभी वास्तु तकनीक विद्यालयों में शिक्षण और परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही है। यद्यपि भारत की अपनी सुविकसित व विशेष वास्तु परम्परा रही है।

0 यह असम्भव नहीं तो कठिन जरूर होगा कि हम अपने नल बनाने वाले, बिजली मिस्त्री तथा भवन बनाने वाले मिस्त्रियों के शिक्षण के लिए हिन्दी, मराठी व तमिल में कोई शिक्षण सामग्री तैयार कर सकें। इसी का परिणाम है कि जो लोग इन व्यवसायों को चुनते हैं उनका कौशल व ज्ञान आधा-अधूरा ही रहता है, क्योंकि उनके पास दूसरों के काम निरीक्षण अथवा उनसे बातचीत कर सीखने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

0 हमारे वकील अंग्रेजी में ही उनकी ओर से अंग्रेजी में याचिका तैयार करते हैं, जो अंग्रेजी का एक अक्षर भी नहीं जानते। हमारे उच्च न्यायालयों की कार्यवाही तथा न्यायाधीशों के निर्णय भी अंग्रेजी में ही दिये जाते हैं।

0 भारत ही एक ऐसा देश है जहां के प्रसिद्ध इतिहासकार देश का इतिहास भी अंग्रेजी में लिखते हैं। सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री भी अपने सामाजिक अध्ययन के विवरण अंग्रेजी में ही प्रकाशित करते हैं। जो अंग्रेजी नहीं जानते हैं उनके लिए यह नया ज्ञान पहुंच से परे है।

आज भी हम अपने इतिहास को जानने के लिए औपनिवेशिक प्रशासनों, विदेशियों तथा विदेशी यात्रियों द्वारा लिखित विवरणों पर निर्भर रहते हैं। भारत के प्राचीन व धार्मिक ग्रन्थों का अनुवाद और उनका गहन अध्ययन भी विदेशी विद्वानों ने ही किया है परिणामत: उनकी पूर्वाग्रहपूर्ण व्याख्या तथा उनकी समालोचना को ही हम सत्य मानने को मजबूर हैं। हम अपनी सफलता तथा विफलता, अपनी समस्याएं और अपनी प्रेरणाओं को समझने के लिए भी बाहरी लोगों के मोहताज हैं। हम उसे ही मानते व बताते हैं जिन्हें पश्चिम ने मान्यता दी है। हम लोग अपनी सफलताओं, विफलताओं, समस्याओं की रूपरेखा और यहां तक कि अपनी महत्वाकांक्षाओं को भी बाहरी व्यक्ति की आंखों से देखने लगे हैं। हम उसकी उपेक्षा करते हैं जिसको पश्चिम ने अस्वीकृत किया था या तिरस्कृत कर दिया है। आज यदि किसी अंग्रेजी शिक्षित संभ्रान्त व्यक्ति से आप किन्हीं तीन अच्छे भारतीय साहित्यिक लेखकों के नाम पूछें तो वह अपना पसंदीदा नाम विक्रम सेठ, शशि थरुर या अमिताभ घोष के नाम बताएगा। उनमें से बहुत कम ही ओ.वी. विजयन, जो कि मलयालम के एक बहुत ही अच्छे लेखक थे या विजय तेन्दुलकर, जिन्होंने मराठी में कुछ बहुत ही अच्छे नाटक लिखे का नाम लेंगे, क्यों? क्योंकि इन लेखकों को हम उतना महत्वपूर्ण नहीं समझते जितना कि उस लेखक को जो बुकर पुरस्कार जीत चुके हैं।

भारत में अंग्रेजी कभी भी जन शिक्षा का माध्यम नहीं हो सकती है। अंग्रेजी में निपुणता बहुतों के लिए अप्राप्य है तथा एक विशाल जनसमूह को असामान्य प्रतिस्पर्धा की स्थिति प्रदान करती है। प्रशासन व संभ्रान्त पेशों की भाषा के रूप में भारतीयों पर अंग्रेजी थोपे जाने के डेढ़ सौ साल बीत जाने पर भी, हमारी आबादी के एक प्रतिशत लोग भी इसे प्रथम या द्वितीय भाषा के रूप में प्रयोग नहीं करते। यहां तक कि शिक्षित भारतीयों में भी अंग्रेजी तीसरे स्थान पर है। भारत में लगभग 45 प्रतिशत लोग हिन्दी भाषी राज्यों से आते हैं जबकि महाराष्ट्र, गुजरात, कश्मीर, असम, पंजाब, बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा में एक बड़ी संख्या में लोग हिन्दी का व्यवहारिक ज्ञान रखते हैं।

यह सिर्फ संयोग ही है कि भारत के सभी राज्यों में से केवल उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ही ऐसे हैं, जो सहजता से अपने राज्य की भाषा नहीं बोल सकते। अपने पिता श्री बीजू पटनायक, जो उड़िया संस्कृति को गहराई से रचे बसे थे, की व्यापक मन छवि का लाभ उन्हें मिला। राजनीतिक महत्वाकांक्षा पनपने के बाद सोनिया और राहुल गांधी दोनों को अथक प्रयासों से हिन्दी सीखनी पड़ी है। जबकि भारत में अपने शुरुआती 30 सालों में सोनिया गांधी ने न स्वयं और न ही अपने बच्चों को कभी प्रयत्नपूर्वक हिन्दी सीखने व सिखाने की परवाह की। क्षेत्रीय भाषाओं की राजनीतिक शक्ति और राजनीतिक क्षत्रप इस बात के गवाह हैं कि कोई व्यक्ति, जो गहराई से अपने चुनाव क्षेत्र की भाषा और संस्कृति से नहीं जुड़ा है, के चुनाव जीतने की सम्भावना कम ही होती है, भले ही वह कितना ही योग्य क्यों न हो। जनता को जब अपने वोट देने का अवसर मिलता है तो इसमें भाषा का भी अप्रत्यक्ष संकेत रहता है।

जो भी हो, न्यायपालिका, नौकरशाही तथा संभ्रान्त पेशों में आज भी वही लोग प्रभावी हैं, जो देश की भाषाओं में 5 वाक्य नहीं लिख सकते और ऐसा इसलिए है, क्योंकि जनता के पास इन क्षेत्रों में अपनी भाषा की पसंद बताने की कोई ताकत नहीं है, जैसे वह वोट के द्वारा राजनीति के क्षेत्र में रखती है।

इसका मतलब यह भी है कि हमारी राजनीति में उन लोगों का प्रभुत्व हो चुका है जो गुणवत्तापरक शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाये हैं। इसी के साथ हमारे बहुत से चुने हुए प्रतिनिधि उस पद के अयोग्य होते हैं जिसके लिए वे चुने जाते हैं जैसे कि कानून निर्माण की बात ही ले लें। इसलिए चुने हुए प्रतिनिधियों की जगह नौकरशाह और किराये के कानूनविद् ही अधिकांशत: कानूनों को लिखने, उसकी अवधारणा निर्मित करते हैं। अतएव हमारे राजनीतिक संस्थानों के प्रतिमानों और उपलब्धियों का क्षरण हमारी दोहरी भाषा नीति का ही परिणाम है। इसी के कारण देश की सामान्य जनता स्तरहीन शिक्षा पाने को विवश है।

34

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

बोरोप्लस के भ्रामक विज्ञापन को लेकर इमामी कंपनी पर लगा जुर्माना

‘विश्व की नंबर वन क्रीम’ बताना बोरोप्लस को पड़ा महंगा, लगा 30 हजार का जुर्माना

एयर डिफेंस सिस्टम आकाश

चीन सीमा पर “आकाश” का परीक्षण, ऑपरेशन सिंदूर में दिखाई थी भारत की ताकत

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

10 लाख लोगों को मिलेगा मुफ्त AI प्रशिक्षण, गांवों को वरीयता, डिजिटल इंडिया के लिए बड़ा कदम

केंद्र सरकार ने ‘प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना’ को मंज़ूरी दी है।

प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना को मंज़ूरी, कम उत्पादन वाले 100 जिलों में होगी लागू

PM मोदी का मिशन : ग्लोबल साउथ के नेतृत्व के लिए तैयार भारत

अमृतसर : हथियारों और ड्रग्स तस्करी में 2 युवक गिरफ्तार, तालिबान से डरकर भारत में ली थी शरण

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

बोरोप्लस के भ्रामक विज्ञापन को लेकर इमामी कंपनी पर लगा जुर्माना

‘विश्व की नंबर वन क्रीम’ बताना बोरोप्लस को पड़ा महंगा, लगा 30 हजार का जुर्माना

एयर डिफेंस सिस्टम आकाश

चीन सीमा पर “आकाश” का परीक्षण, ऑपरेशन सिंदूर में दिखाई थी भारत की ताकत

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

10 लाख लोगों को मिलेगा मुफ्त AI प्रशिक्षण, गांवों को वरीयता, डिजिटल इंडिया के लिए बड़ा कदम

केंद्र सरकार ने ‘प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना’ को मंज़ूरी दी है।

प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना को मंज़ूरी, कम उत्पादन वाले 100 जिलों में होगी लागू

PM मोदी का मिशन : ग्लोबल साउथ के नेतृत्व के लिए तैयार भारत

अमृतसर : हथियारों और ड्रग्स तस्करी में 2 युवक गिरफ्तार, तालिबान से डरकर भारत में ली थी शरण

पंजाब : पाकिस्तानी जासूस की निशानदेही पर एक और जासूस आरोपित गिरफ्तार

छांगुर का अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क बेनकाब : विदेशों में भी 5 बैंक अकाउंट का खुलासा, शारजाह से दुबई तक, हर जगह फैले एजेंट

Exclusive: क्यों हो रही है कन्हैयालाल हत्याकांड की सच्चाई दबाने की साजिश? केंद्र सरकार से फिल्म रिलीज की अपील

एयर इंडिया का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान टेकऑफ के कुछ ही सेकंड बाद रिहायशी इलाके में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था  (File Photo)

अमदाबाद Boing दुर्घटना की रिपोर्ट ने कई देशों को चिंता में डाला, UAE और S. Korea ने दिए खास निर्देश

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies