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ये कैसे आलिम?
– मुजफ्फर हुसैन
उर्दू के एक शायर हैं बशीर बद्र, जो मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी के अध्यक्ष बनकर हिन्दुस्थान की जनता के लाखों रुपए डकार रहे हैं। इनकी खूबी है चापलूसी। पिछली 30, नवम्बर को भोपाल के दीनदयाल भवन में राष्ट्रवादी सम्पादकों और पत्रकारों का एक सम्मेलन हो रहा था, जिसमें एक दिन पूर्व निर्वाचित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उपस्थित होने की इच्छा व्यक्त की। आयोजकों ने उनकी इच्छा का स्वागत किया। जब मुख्यमंत्री बोलकर रवाना होने लगे तो मंच के सामने कुर्ता-पाजामा पहने एक लम्बा-सा व्यक्ति आया और मुख्यमंत्री के सामने झुककर विशेष तरीके से उनका अभिवादन किया। अधिकांश पत्रकार तो नहीं लेकिन कुछ लोग इन्हें पहचान गए। यह सज्जन थे बशीर बद्र, जिनका उर्दू के महान कवि होने का दावा है। मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार आई तो ये तिकड़म लगा कर उर्दू अकादमी के अध्यक्ष बन बैठे। बद्र सारे देश में मुशायरे पढ़कर लाखों रुपए कमाते हैं और संस्थाओं में जाकर अपनी शायरी की महंगी पुस्तकें बेचते हैं। अपने काम से वे एक चापलूस प्रवृत्ति के इंसान लगते हैं। पिछले दिनों लखनऊ के एक मुशायरे में उनके लिए निंदा प्रस्ताव भी पास किया गया। साथ ही उर्दू अखबारों और राष्ट्रवादी कवि व लेखकों ने उनकी असलियत उजागर करना अपना दायित्व समझा। मुम्बई से प्रकाशित दैनिक इंकलाब ने 16 नवम्बर के अंक में अपने मुखपृष्ठ पर उक्त निंदा प्रस्ताव का समाचार प्रकाशित किया है। मुनव्वर राना, जो उर्दू के सुप्रसिद्ध शायर हैं, ने कहा कि दुबई के एक मुशायरे में बशीर बद्र ने बयान दिया था, “मैंने मक्का स्थित काबा शरीफ में “गिलाफे काबा” (काबे का पर्दा) पकड़कर हिन्दुस्थान की बर्बादी की दुआ मांगी थी।” इस पर राना ने उन्हें डांटा भी था। जो भारत के प्रति ऐसी दुर्भावना रखता हो उसे मध्य प्रदेश सरकार सरकारी पद पर बैठा कर सम्मानित करे, यह तो राष्ट्र के लिए अपमानजनक बात है।
भारत के प्रति दुर्भावना रखने वाले इस चतुर व्यक्ति का यह दावा है कि आदम से आज तक जितने भी पैगम्बर हुए उनका वह अच्छा अभिनय कर सकता है। उनकी ऐसी गतिविधियों की निंदा करने के लिए कवियों और साहित्यकारों की एक सभा लखनऊ के मेजबान होटल में आयोजित की गई थी, जिसमें अध्यक्ष तसनीम फारूकी ने कहा, “बशीर बद्र ने “ई.टी.वी.” को दिए अपने साक्षात्कार में जो कुछ कहा, उसके लिए यह सभा उनकी निंदा करती है।” उन्होंने कहा कि बशीर बद्र बहुधा मुशायरों में इस प्रकार के ओछे और अभद्र विचार व्यक्त करते रहते हैं। डाक्टर मलिक जादा मंजूर ने भी कहा कि बशीर बद्र की हरकतें अपमानजनक और निंदनीय हैं। मुम्बई के उर्दू टाइम्स ने अपने 9 दिसम्बर के अंक में लिखा है, “पिछले आम चुनाव में यह (बशीर बद्र) वाजपेयी हिमायत कमेटी में सक्रिय थे, क्योंकि उन्हें विश्वास हो गया था कि भारतीय जनता पार्टी उन्हें राज्य सभा में भेज देगी। लेकिन जब कुछ नहीं मिला तो दिल्ली की सिफारिश पर उन्हें मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी का सदस्य बना दिया गया। भोपाल में अपनी ससुराल होने से वे भोपाली बन गए और सरकारी पद एवं रुतबा पाने में सफल हो गए।” पत्र ने सवाल किया है कि जो पार्टी देशभक्ति और राष्ट्रवादिता की बात करती है वह किस तरह इस अवसरवादी व्यक्ति के जाल में फंस गई? उर्दू अकादमी में यदि ऐसे लोगों का चयन होगा तो निश्चित ही यह किसी दृष्टि से उचित नहीं है।
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