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-दीपेन्द्र पाठक
अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, दिल्ली
आज के समाज और सम्बंधों की दुनिया में बहुत बदलाव आ गया है। इस कारण व्यक्ति की मानसिकता और उसके मनोविज्ञान में फर्क आ चुका है। यह फर्क आधुनिक समाज की आपाधापी को इंगित करता है। आज का आदमी हर क्षण द्वंद्व में जीता है और द्वंद्व के उस पार भी जाना चाहता है। ध्यान रखें कि द्वंद्व से परे जाने के लिए एक निश्चित मार्ग और सहिष्णुता की जरूरत है। किन्तु प्रत्येक व्यक्ति कोई दार्शनिक या विचारवान नहीं हो सकता। जिन्दगी में हमेशा दो जोड़ दो चार नहीं होता है और यही वह बिन्दु जहां से द्वन्द्व पैदा होता है। भारत की पुरानी जीवनशैली, प्राचीन परम्परा दो जोड़ दो-पांच या दो जोड़ दो-तीन की स्थिति में भी पथ से भटकने नहीं देती थी, किन्तु अब न तो वह जीवनशैली रही और न ही परम्परा। इस कारण एक साधारण व्यक्ति द्वंद्व और सहिष्णुता के बीच तालमेल बैठा नहीं पाता है और तनाव में रहने लगता है। और जो तनाव में रहता है वह कुछ भी कर सकता है। हत्या की 99 प्रतिशत घटनाएं ऐसे ही लोगों के द्वारा की जा रही हैं। इसलिए एक सम्यक और समग्र दृष्टि से इन घटनाओं पर विचार करने की जरूरत है। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नैतिक शिक्षा आवश्यक है। लोगों को बताया जाना चाहिए कि क्या गलत और क्या सही है। गलत-सही की जो व्याख्या प्राचीन जीवनशैली और परम्पराओं में विद्यमान है, वह कहीं नहीं है। कहने का अर्थ यह है कि यदि जीवन में कहीं द्वंद्व आता है तो सबसे पहले घर के बड़े-बुजुर्गों की मदद लेनी चाहिए। वही सबसे उत्तम और दीर्घकालिक हल बताएंगे। पुलिस और कानून अन्तिम विकल्प हैं, पर यह स्थायी निदान नहीं है। किसी व्यक्ति में समग्रता, बौद्धिक विकास एवं सामाजिक मूल्यों का समावेश हो, सम्बंधों की दुनिया कायम रहे, यह पूरे समाज की जिम्मेवारी है। वार्ताधारित
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