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तेजस्विनीहर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भ”स्त्री” स्तम्भ के लिए सामग्री, टिप्पणियां इस पते पर भेजें-“स्त्री” स्तम्भद्वारा, सम्पादक, पाञ्चजन्य,संस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला, नई दिल्ली-55कितनी ही तेज समय की आंधी आई, लेकिन न उनका संकल्प डगमगाया, न उनके कदम रुके। आपके आसपास भी ऐसी महिलाएं होंगी, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प, साहस, बुद्धि कौशल तथा प्रतिभा के बल पर समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत किया और लोगों के लिए प्रेरणा बन गईं। क्या आपका परिचय ऐसी किसी महिला से हुआ है? यदि हां, तो उनके और उनके कार्य के बारे में 250 शब्दों में सचित्र जानकारी हमें लिख भेजें। प्रकाशन हेतु चुनी गईं श्रेष्ठ प्रविष्टि पर 500 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।श्रीमती विमला पोद्दार का संकल्पबहती रहे ज्ञान-गंगामंगल पाण्डेय”ज्ञान-प्रवाह” का सुरम्य परिसरएवं श्रीमती विमला पोद्दार (प्रकोष्ठ में)कोलकाता की रहने वाली श्रीमती विमला पोद्दार के मन में रह-रहकर काशी वास की इच्छा उठती थी, सो अपने घर-परिवार को त्यागकर अपने से सम्बंधित सारा औद्योगिक एवं व्यावसायिक संजाल घर वालों के सुपुर्द कर वे 1996 में चली आयीं काशी और रम गयीं उस संसार में जिसका यही सन्देश है- “आत्मनो मोक्षार्थ, जगद् हिताय च। कुछ दिन काशी में साधनारत रहने के उपरान्त उन्हें ध्यान में आया कि भारत की महान सांस्कृतिक परम्पराओं को जानने, समझने की रुचि लिए सैकड़ों-हजारों लोग नित्य-प्रति काशी आते हैं, उन्हें एक ही स्थान पर धर्म-संस्कृति-इतिहास से जुड़े विविध आयामों का परिचय मिल जाए, इसकी सुन्दर एवं सुरुचिपूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए। देश के प्रख्यात औद्योगिक घराने “आरकेबीके” एवं “अम्बुजा” समूह से सम्बंधित श्रीमती विमला पोद्दार की इस भावना को उनके घर वालों ने भी समझा और श्री सुरेश नेवटिया एवं श्रीमती विमला पोद्दार ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से लगभग 2 कि.मी. दूर गंगा तट पर भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं पर आधारित एक अभिनव अध्ययन, अनुशीलन एवं शोध केन्द्र “ज्ञान-प्रवाह” की स्थापना की। “ज्ञान-प्रवाह” ने भारतीय कला, संस्कृति, इतिहास, दर्शन, पुरातत्व और उससे जुड़े विविध आयामों पर आधारित अपने अत्यंत समृद्ध पुस्तकालय, कलाकृति संग्रहालय-“कलामण्डप”, शिक्षण-कक्षाएं, अभिलेखागार आदि के अनूठे संग्रह से काशी ही नहीं वरन् देश-विदेश के अध्ययन-अनुशीलन प्रेमियों में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है। प्रत्येक वर्ष अगस्त माह में “ज्ञान-प्रवाह” का शिक्षा सत्र प्रारंभ होता है। प्रत्येक महीने विभिन्न सांस्कृतिक विषयों पर विद्वज्जनों की कार्यशालाएं, संभाषण, सेमिनार आदि की श्रृंखला प्रारम्भ हो जाती है। संस्था द्वारा काशी नगर के मीरघाट पर श्रीमती पोद्दार के पुरखों की हवेली में वेद,ज्योतिष, व्याकरण एवं कर्मकाण्ड, यज्ञों के बारे में विस्तार से प्रशिक्षण देने का कार्यक्रम भी सन् 2003 में “संस्कार एवं अनुष्ठान केन्द्र” के रूप में प्रारम्भ किया गया है। संस्कृत भाषाओं में नाट्य प्रस्तुति के मंचन एवं निर्देशन को भी संस्थान ने पुनरुज्जीवन प्रदान किया है। काशी के अनेक श्रेष्ठ विद्वानों के मार्गदर्शन में संस्थान की सम्पूर्ण गतिविधियां संचालित होती हैं। देश की प्राचीन लिपियों जैसे-ब्राह्मी, खरोष्टी तथा विभिन्न कला शैलियों, जैसे- नाथद्वारा चित्र शैली, कलमकारी एवं कश्मीर शैव दर्शन आदि पर भी गहन अनुसंधान एवं प्रकाशन किए जा रहे हैं। काशी की रामलीला, नृसिंह लीला, फाग लीला रथयात्रा आदि लोक उत्सवों के बारे में भी श्रीमती पोद्दार की प्रेरणा से सर्वेक्षण एवं अभिलेखीकरण के कार्य सुचारू रूप से चल रहे हैं।श्रीमती पोद्दार अपने प्रयासों से न केवल भावजगत के स्तर पर वरन् बाह्र रूप में भी काशी के साक्षात्कार के अपने संकल्प को मूर्त रूप देने में सफल हुई हैं। उनकी यह साक्षात्कार-यात्रा आज भी निरन्तर आगे बढ़ रही है। काशी विश्वनाथ और मां गंगा के प्रति उनकी अगाध भक्ति उनके इन्हीं शब्दों में व्यक्त होती है, “मां गंगा और बाबा विश्वनाथ ने अपने कार्य के लिए मुझे निमित्त बनाया। ज्ञान प्रवाह की स्थापना में जितना हमारे संस्थान के अधिकारियों-कर्मचारियों, यहां के पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं का योगदान है, शायद उतना ही मेरा है। यह तो बाबा विश्वनाथ का ही प्रसाद है, इसमें मेरा अपना कुछ नहीं है।”17
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