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मेघालय के कट्टर ईसाइयों के भाषायी साम्राज्यवाद से दबा हाजोंग जनजातीय समाज
प्रतिनिधि
यद्यपि पूर्वाञ्चल के सभी प्रांतों में बंगला तथा देवनागरी लिपि विभिन्न जनजातीय बोलियों और भाषाओं के लिए सर्वाधिक उपयुक्त और वैज्ञानिक मानी जाती रही हैं। परन्तु चर्च अनेक वर्षों से यहां के जनजीवन के हर पहलू का रोमनीकरण करने में जुटा है। इसी क्रम में चर्च ने मेघालय की गारो पहाड़ियों में रहने वाली हाजोंग जनजाति की भाषा के रोमनीकरण का अभियान शुरू किया तो उसका स्थानीय साहित्यकारों ने विरोध किया, जिनमें हाजोंग साहित्य सभा के अध्यक्ष एवं लोकमान्य पत्रकार श्री अर्णब हाजोंग सबसे आगे थे। उल्लेखनीय है कि चूंकि हाजोंग भाषा आज भी बंगला लिपि में लिखी जाती है, और हाजोंग जनजाति बंगाली रीति-रिवाजों के साथ सांस्कृतिक तौर पर जुड़ी हुई है, स्वाभाविक ही चर्च को ये सब कभी भी अच्छा नहीं लगा है। अपनी अलगाववादी, सोच के अनुरूप पिछले दिनों डान बास्को चर्च मिशन के एक पादरी ने “हाजोंग स्टूडेन्ट्स यूनियन” के कुछ युवा पदाधिकारियों को अपने षडंत्र का मोहरा बनाया। इन युवकों को मिशन द्वारा नौकरी दी गई, एवज में पचपन हजार की आबादी वाली हाजोंग जनजाति की भाषा लिपि “रोमन” किए जाने का कार्य भी शरू करा दिया गया। बाकायदा इन युवकों द्वारा “हाजोंग साहित्य सभा” की बैठक में एक प्रस्ताव रखा गया कि “हाजोंग भाषा” की लिपि बंगला की जगह “रोमन” हो जाए, परन्तु श्री अर्णब हाजोंग के प्रयासों से साहित्य सभा ने यह प्रस्ताव बहुमत से नकार दिया। फिर क्या था, बौखलाए चर्च प्रेरित तत्व हिंसा पर उतर आए। अर्णब को निपट लेने की खुली धमकी दी गयी। पर अर्णब दा ने हाजोंग लिप्यान्तरण को समर्थन देना स्वीकार नहीं किया। परिणामत: गत 11 दिसम्बर को चर्च प्रेरित तत्वों ने अर्णब हाजोंग पर अचानक हमला बोलकर उनकी बुरी तरह पिटाई की। अर्णब हाजोंग, जो हाजोंग भाषा के एक मासिक पत्र “रव” के सम्पादक भी हैं, ने इस हमले के विरुद्ध स्थानीय थाने में शिकायत भी दर्ज कराई, पर यह खबर लिखे जाने तक हमलावरों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई है। अर्णब हाजोंग ने हमले के बावजूद अपना अभियान जारी रखा है। चर्च प्रेरित इस लिप्यांतरण अभियान के विरुद्ध समूचा हाजोंग समुदाय खड़ा हो गया है।
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