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लाहौर दिनांक-3दु:ख, दर्द और मन्नतें सांझी हैं-तरुण विजयपुराने लाहौर की एक सड़क पर खड़ी इमारतआशिक मसीहसुबह माल रोड पर घूमने का मजा ही कुछ और है। गाड़ियां कम होती हैं, दुकाने बंद, झाड़ू लगाने वाले और घूमने वाले जरूर मिल जाते हैं। हम अभी मिस्टर बुक दुकान तक पहुंचे थे कि सड़क को बड़े कायदे से साफ करने वाले एक सज्जन मिले। मैं थोड़ा रुक गया, उनसे कहा, “भाई जी नमस्ते! मैं दिल्ली से आया हूं।” उस सज्जन ने झाड़ू लगाना बंद कर मेरी तरफ तका। वह लगभग 40 की उम्र का 6 फुटी काया का व्यक्ति था। भूरी सलवार और कमीज पहनी हुई थी। शायद लाहौर में सफाई कर्मचारियों की यही वर्दी थी। नुकीली पटियालवी जूतियां, सर पर भूरी पगड़ी, चेहरे पर चेचक के दाग, पेशानी पर बल और ढीली-ढाली चारों जेबों से लग रहा था कि उनमें कुछ भी नहीं है। रूमाल भी नहीं। तो उन्होंने पहले मेरी नमस्ते के जवाब में सलाम वालेकुम कहा।हैदर फारुक मौदूदी के साथ सुल्तान शाहीन। पीछे है मौलाना असद मदनी की मजार।यह दरगाह का नजारा है या किसी मंदिर का?पुराने लाहौर की एक सड़क पर खड़ी इमारत आशिक मसीहमैंने पूछा, जनाब आपका नाम क्या है। उन्होंने अपना नाम बताया आशिक मसीह। बातचीत में पता चला उनके तीन बच्चे हैं जिनमें से दो लड़के और एक लड़की है। मैंने पूछा, आप क्रिस्तानी हैं। वे बोले, “जनाब मैं मसीही हूं। बस इसके आगे और कुछ मत पूछना जनाब”। मैंने कहा, नहीं पूछुंगा। फिर मैंने कहा, “आशिक मसीह साहब जरा यह तो बताओ, कैसे हाल चाल हैं और कैसी गुजर रही है।” जवाब में आशिक मसीह ने एक दोहा सुना दिया-चोर उचक्के चौधरीते लुण्डी हन परधान।।पाकिस्तान में भारत की ही तरह बैंड-बाजे खूब पसंद किए जाते हैं।जहीर भाई का जूस का गिलास और साथ में”मुफ्त का बच्चा”।मसीह ने कहा, “मुझे पांच हजार रुपए तनख्वाह मिलती है, जिसमें से पांच सौ रुपए तब रिश्वत देनी पड़ती है जब तनख्वाह हाथ में आती है।” उन्होंने हाथ जोड़े और कहा, “साहब जी माफ करना, तुस्सी दिल्ली तों आए हो पर गरीबां दां ना दिल्ली विच कोई राखा है न लाहौर विच।”इसके बाद हम भाई सुल्तान शाहीन के साथ घूमने निकले। अब उन जगहों के पूरे नाम तो याद नहीं, पर एक चौराहे पर बड़ी रौनक दिखी। हमने सुल्तान भाई से कहा, हम यहां एक मिनट रुक जाते हैं। वहां क्या देखा- गोटे वाली चुन्नियां, फूलों के हार और बड़ी-बड़ी कढ़ाई की हुई चादरें। ये चादरें ज्यादातर लाल रंग की ही थीं। मुझे वहम हुआ कोई माता का मंदिर होगा। सुल्तान भाई हंस पड़े और कहा, भाईजान यह दरगाह है, दरगाह। यहां लोग मन्नतें मांगने आते हैं। जिसकी मन्नत पूरी हो जाती है वह चुन्नी, चादर और फूल चढ़ाता है। पर मैंने कहा कि यह तो वहाबी इस्लाम के खिलाफ है। सुल्तान भाई कहने लगे, तरुण भाई, यह हिन्दुस्थान की संस्कृति का ही एक मोड़ है। हमने वहां का नजारा देखा। कुछ फोटुएं देखीं और आगे बढ़ लिए।उधर से लौटे तो जहीर भाई के साथ फूड बाजार जाने का प्रोग्राम था। गजब का बाजार है। गजब के खाने, दुकानें और ढाबे। जहीर भाई ने कहा, “यार यहां की रोटियां बड़ी मशहूर हैं। पेशावरी, तवे वाली, मक्खन नान, रूमाली रोटियां। पर आप साथ में हैं इसलिए मैं मांसाहारी भोजन नहीं करुंगा, आप जैसा करेंगे वैसा ही भोजन करुंगा।” वे बड़े भावुक मित्र थे। हम जिस दुकान, खोखे या ढाबे की तरफ मुंह करते वहीं गोश्त के बड़े-बड़े टुकड़े टंगे दिखते। आखिरकार एक बड़े मशहूर होटल में हम गए। वहां किसी को हमारी तरफ देखने की फुर्सत तक नहीं थी। तंदूर से निकलती गर्म-गर्म कड़क रोटियां देखकर भूख और बढ़ गई। जहीर भाई ने मैनेजर के पास जाकर शाकाहारी खाने का आर्डर देना चाहा तो मैनेजर ने हमारी तरफ इस तरह घूर कर देखा मानो हम किसी चिड़ियाघर से आए हों। उसने साफ मना कर दिया। कुछ शर्मिंदा से जहीर भाई बाहर निकले और हम एक जूस की दुकान पर पहुंचे। वैसी ही शानदार दुकान जैसी हम मुम्बई के फोर्ट इलाके में देखते हैं। हमने अनार के जूस के दो गिलास का आर्डर दिया। दो मिनट में एक लड़का 4 गिलास लेकर आया। हमने कहां, भाई हमने दो गिलास मांगे थे। उसने कहा, “जनाब दो ही गिलास लाया हूं। ये साथ के छोटे गिलास तो “बच्चे” हैं, जो फ्री में हैं।” हमें समझ नहीं आया कि हम हंसें या कुलबुलाएं। इतना तो तय है जिस खुले मन और उदारता से लाहौर के लोग खाना-पीना करते हैं वह हमारे जैसे दिल्ली वालों के बस की बात नहीं। उनके एक वक्त का खाना हमारे एक हफ्ते तक फैल सकता है।वर्ष 59, अंक 2 ज्येष्ठ शुक्ल 5, 2062 वि. (युगाब्द 5107) 12 जून, 2005घूमें और गुनगुनाएं सबसे प्यारा देश हमारा क्रांतितीर्थ, श्रद्धातीर्थ, नवचैतन्य तीर्थइस बार गर्मियों में चलें कुछ खास किस्म के पर्यटन स्थलों पर27 साल बाद लालकृष्ण आडवाणी पहुंचे पाकिस्तान रिश्तों में गरमाहटइस्लामाबाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ भाजपा अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणीअमरीकी सैनिकों ने किया कुरआन का अपमान भाजपा ने की अमरीका की निंदा और कहा-क्षमा मांगो शाहिद रहीमनाना जी देशमुख “ज्ञानेश्वर पुरस्कार” से सम्मानित नई पीढ़ी और देशभक्ति, कौन है उन्हें प्रेरणा देने वाला? नाना जी देशमुखदिल्ली में हलचल श्रममंत्री का पुतला जलाया प्रतिनिधि72 वर्षीय आशीष राय ने जीती मैराथनताइवान के प्रमुख नेता जेम्स सूंग की चीन यात्रा बस, शांति चाहिए बीजिंग से स्वाति मिश्राबलिदान दिवस (11 जून, 2005) पर विशेष गोरक्षा के लिए जिन्होंने दिया बलिदान माधवदास ममतानीनारद जयंती पर आयोजित हुए दो पत्रकार सम्मेलनप्रधानमंत्री मनमोहन सिंह करेंगे इस बार सिन्धु दर्शनपत्रकारिता हो या पुस्तकों का प्रकाशननिर्भीकता न हो तो न्याय नहीं कर सकते दीनानाथ मल्होत्राव्हाइट हाउस में एक भारतीय की धमकउड़ीसा में बढ़ती नक्सली हिंसा सूरज छिपते ही छिप जाती है पुलिस भी पंचानन अग्रवालकश्मीर समस्या सुलझानी है तो लाल बहादुर शास्त्री और गुलाम मोहम्मद सादिक को याद करो गोपाल सच्चरअमरनाथ यात्रा में फिर रोड़ा बनी मुफ्ती सरकार खजूरिया एस. कांतवरुण देव ने निभाया वचनजनसंख्या में कमी से जूझता जापानरमन सिंह गए अमरीका, ले आए बिजली घरघाटी में सक्रिय हैं तालिबानी और अल कायदा के आतंकवादीमासूमों पर घात, यह कैसा जिहाद?अडनीइंदौर में मालवा उत्सव सम्पन्न दीपक नाईकपाठकीय अपमान न सहें, प्रतिकार करेंसम्पादकीय कितनी राजनीति?अपनी बातचर्चा-सत्र पर सोमनाथ बाबू चुप! ब्राहमदेव उपाध्याय्कही-अनकही क्योंकि मनमोहन सिंह ईमानदार हैंदीनानाथ मिश्रपाचजन्य पचास वर्ष पहलेहुतात्मा डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी लल्लन प्रसाद व्यासएडगर केसी : “अनेक महल”-8 जीवन के अन्यान्य पहलुओं के बारे में हो.वे. शेषाद्रिदेश को संभाल डा. तारादत्त “निर्विरोध”टी.वी.आर. शेनाय आलोचना से परे नहीं चुनाव आयोगमहावीर केसरी-5इस सप्ताह आपका भविष्य ज्योतिष महामहोपाध्याय सौ. नीलिमा प्रधानपंजाब की चिट्ठी ऋण में डूबे किसान राकेश सैनगहरे पानी पैठ चर्च को अमरीकी सहयोगमंथन बंग-भंग से स्वदेशी तक-4 धर्म शक्ति से कांपी ब्रिटिश सरकार देवेन्द्र स्वरूपNEWSअंक-सन्दर्भ, 15 मई, 2005अपमान न सहें, प्रतिकार करेंपञ्चांगसंवत् 2062 वि. वार ई. सन् 2005 ज्येष्ठ शुक्ल 5 रवि 12 जून ,, ,, 6 सोम 13 “” ,, ,, 7 मंगल 14 “” ,, ,, 8 बुध 15 “” ,, ,, 9 गुरु 16 “” ,, ,, 10 शुक्र 17 “” (श्रीगंगा दशहरा) ,, ,, 11 शनि 18 “” गहरे पानी पैठ स्तंभ में “हुसैनी गंगोपाध्याय की शरारत” पढ़ी। अंध पंथनिरपेक्षता का पागलपन वामपंथियों के सर चढ़कर बोल रहा है। धर्म (हिन्दू) को गाली देना, उसके साथ शरारत करना, हिन्दू भावनाओं से खिलवाड़ करना आज की पंथनिरपेक्षता की सच्चाई है। इन सारी सच्चाइयों के साथ एक और सत्य है, वह है हिन्दुओं का अपने स्वाभिमान, अस्मिता, सांस्कृतिक गौरव और गरिमा के प्रति संवेदनशून्य होना। सत्ता, स्वार्थ, राजनीतिक हानि-लाभ और भ्रामक प्रचार के कारण हिन्दू समाज अपने सम्मान की रक्षा के लिए प्रतिकार करना भी भूल गया है।-डा. हेमन्त शर्मामहू (म.प्र.)सुनील गंगोपाध्याय की सोच उनके मन की उस कालिमा का प्रमाण है, जो समाज में अनैतिकता का प्रचार-प्रसार कर निन्दनीय प्रसन्नता का अनुभव करती है। मैं लगभग तीस वर्ष से कोलकाता में रह रहा हूं। यहां बसन्त पंचमी पर मां शारदा के प्रति जो श्रद्धा-सुमन समर्पित किये जाते हैं, उनका सारांश में वर्णन संभव ही नहीं है। मां सरस्वती भारतीय मनीषियों के लिए वंदनीय हैं और हमेशा वंदनीय रहेंगी। मकबूल फिदा हुसैन के चित्रों की तरह इस कविता को भी भारतीयता के पुजारी निन्दनीय ही मानेंगे। मेरी दृष्टि में यह एक ऐसे विक्षिप्त का प्रलाप है, जिसे सत्यासत्य का भेद ही मालूम नहीं।-सीताराम महर्षिकृष्ण-कुटीर, रतनगढ़ (राजस्थान)सुनील गंगोपाध्याय की यह निर्लज्जता, जो हिन्दू अपमान की सारी सीमाएं लांघ चुकी है, को आप छाप ही कैसे सके? मैं तो यह जानना चाह रहा हूं कि मां सरस्वती के इस अपमानकर्ता को क्या सजा दी गई?-य.दा.बेडेकर 1865,सुदामानगर, इन्दौर (म.प्र.)हुसैनी गंगोपाध्याय एवं दिल्ली नगर निगम के आयुक्त राकेश मेहता जैसे सैकड़ों लोग राष्ट्र के सम्मान को सरेआम रौंद रहे हैं। ऐसे लोगों पर अंकुश लगाने के लिए “राष्ट्र सम्मान रक्षक दल” का गठन होना चाहिए। अन्यथा ऐसे लोगों को प्रोत्साहन मिलेगा और ये बराबर राष्ट्र सम्मान पर चोट करेंगे।-गोविन्द गुप्ता ई.जी. टेलिकॉम,मेन रोड, रामगढ़, जिला- मन्दसौर (म.प्र.)सूक्ष्मिकाभ्रमहम “स्वतंत्र”होने का “भ्रम”पाले हुए हैं…।तब “गोरों” (गैरों के)के गुलाम थेअब “कालों” (अपनों के)के हुए हैं…।।-श्रीराम “अकेला” क्षितिज निवास,समलाई चौक, बनसूला बसना,महासमुन्द (छ.ग.)कांगरेस परधानमैडम इटली बन गयीं, कांगरेस परधानसारे चम्मच गा रहे, थे उनका गुणगान।थे उनका गुणगान, कौन सम्मुख फिर आताकिसकी हिम्मत थी जो अपना मुंह नुचवाता।कह “प्रशांत” जब नेहरू-परिवार रहेगातब तक दल पर इनका ही अधिकार रहेगा।।-प्रशांतउठो, सोचो और आगे बढ़ोदिशादर्शन स्तम्भ के अन्तर्गत श्री तरुण विजय के आलेख “डरे हुए बेसब्रो” में पढ़ा कि केन्द्र में कांग्रेसनीत सरकार के आने के बाद से देशभर में जहां हिन्दू-समाज, हिन्दू संगठनों एवं हिन्दू नेतृत्व के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया जा रहा है, वहीं मुस्लिम और ईसाई समुदायों के तुष्टीकरण के नए-नए प्रयास हो रहे हैं। फिर भी लेखक ने यह आशा जताई है कि इन सबके होते हुए भी अन्तत: हिन्दू समाज और संगठन धर्महीन, अमर्यादित और अभद्र तत्वों को परास्त करने में सफल होंगे। परन्तु, प्रश्न उठता है कि यह आशा साकार कब और कैसे होगी? हिन्दू-अस्मिता की रक्षा के लिए ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई है। आवश्यकता है कि संघ पूरे हिन्दू-समाज को अपनी विशाल भुजाओं में लेकर ह्मदय से लगाए। सत्ता-राजनीति की प्रतिद्वन्दिता से खुद को अलग रखे, सत्ता-प्रक्रिया के आकर्षण से बचे, हिन्दू-ह्मदयों में स्थान बनाए, हिन्दू-समाज का सेवक और रक्षक बने और शासक बनने का विचार त्यागे, भारत-भूमि के कण-कण में आदर्शवाद की नवचेतना का संचार करे और समग्र हिन्दू-तेजस्विता को उभारे। मेरा विचार है कि यदि संघ ने सभी राजनीतिक दलों से समान दूरी की नीति अपनाई तो पूरा हिन्दू-समाज संघ को अपनी निष्ठा और समर्थन सौंपने की ओर अग्रसर होगा और तब भारत के कायाकल्प का मार्ग प्रशस्त होगा, संघ की ऊर्जा से। आशा की कोई किरण है तो यही है।-राम हरि शर्मागुरु तेग बहादुर नगर (दिल्ली)इस सरकार के कार्यकाल में हिन्दुत्वनिष्ठ शक्तियों पर हमले लगातार जारी हैं। क्रांतिकारी किसी धर्म अथवा जाति के नहीं होते। वे सम्पूर्ण राष्ट्र के गौरव एवं स्वाभिमान के प्रतीक होते हैं। राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान प्रत्येक नागरिक को करना चाहिए। शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी और जिस तरीके से उन्हें कारावास में रखा गया, वह प्रत्येक हिन्दू मानस को झकझोर देने वाली बात थी। लेकिन इसका इतना प्रबल विरोध नहीं हुआ जितना होना चाहिए। यह प्रकरण मात्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद तक ही सीमित रहा, यह चिंताजनक है। मात्र राजनीतिक लाभ-हानि के कारण सरकार में शामिल किसी भी नेता ने इसका विरोध नहीं किया। वीर सावरकर, शिवाजी का भी अपमान इसलिए किया गया क्योंकि वे हिन्दुत्ववादी विचार-धारा के जीवंत रूप थे।-दिलीप शर्मा, 114/205 एम.एस.बी. कालोनी,समता नगर, कांदिवली (पूर्व) महाराष्ट्रअध:पतन की कसकश्री मा.गो.वैद्य के आलेख “हिन्दू ही अध:पतन के जिम्मेदार” में लेखक के दिल की कसक को स्पष्ट महसूस किया जा सकता है। यह कसक पिछले एक हजार वर्ष से हिन्दुओं की पराधीनता पर उतनी नहीं है, जितनी आजादी के बाद सेकुलर हिन्दुओं द्वारा शनै:-शनै: देश को फिर से उसी चौराहे पर ले जाकर खड़ा कर देने की है, जिसका प्रत्येक रास्ता मध्ययुगीन बर्बरता की ओर जाता दिखाई देता है। हल्दी घाटी के युद्ध के समय जब अकबर की तरफ से मानसिंह के नेतृत्व में राजपूत सेना और महाराणा प्रताप की राजपूत सेना दोनों एक-दूसरे का संहार कर रही थीं, तब इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायूनीं सिपहसालार आसफ खां से बोल उठा- “इस परिस्थिति में जबकि दोनों ओर राजपूत हैं हम शत्रु तथा मित्र राजपूत का पता कैसे लगा सकते हैं?” इस पर आसफ खां ने उत्तर दिया- “चिंता की कोई बात नहीं, चाहे जिस तरफ के लोग मरें, इस्लाम को ही लाभ होगा।” उसी समय मुल्लाशीर ने भी कहा था- “हिन्दू आघात करता है, परन्तु तलवार इस्लाम की है।” जिस दिन हिन्दू इन ऐतिहासिक तथ्यों को समझ लेंगे, उस दिन शायद हिन्दुओं को अपना सही रास्ता खोजने में सफलता मिल जाएगी। पाञ्चजन्य में जो थोड़े परिवर्तन किए गए हैं, आंख को नहीं सुहाए। सबसे अधिक पाठकीय स्तम्भ खला, जो सज्जा और स्थान दोनों ही दृष्टि से अनुपयुक्त लगा।-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)सेनानायक और जननायक1971 युद्ध के महानायक स्व. लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा का चित्र देखकर और पृष्ठ सात पर उनके बारे में दी गई सामग्री पढ़कर आंखें नम हो गईं। सचमुच वे ऐसे महानायक थे जिनकी चमक से दुश्मन की आंखें चौंधिया गई थीं और अन्तत: उसे अपने घुटने टेकने पड़े थे। अब वे महानायक नहीं रहे इस बारे में अन्य समाचार पत्रों ने हाशिए पर समाचार छापा, किन्तु पाञ्चजन्य ने उनकी योग्यता एवं महत्व को पर्याप्त स्थान दिया।-ताबीर हुसैन “बेताब”नवापारा, राजिम (छत्तीसगढ़)भारत के एक महान सेनानायक ले.ज. जगजीत सिंह अरोड़ा के निधन से 1971 की लड़ाई की याद ताजा हो गई। वह एक भयंकर युद्ध था, जो ब्राहृपुत्र नदी के तट पर लड़ा गया था। एक ओर तो अमरीकी हथियारों से सुसज्जित पाकिस्तानी सेना, जिसको 1947 में पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) गए कट्टरपंथी मुसलमानों का सहयोग था, दूसरी ओर भारतीय सेना, जिसको मुजीबुर्रहमान समर्थक मुक्ति वाहिनी का सहयोग था। मात्र 2 सप्ताह के संघर्ष के बाद भारतीय सेना हर प्रकार की बाधाओं से जूझती हुई विजय पताका लिए ढाका पहुंची। वहां हताश पाकिस्तानी सेनानायक ले. जनरल नियाजी ने 90 हजार से अधिक सैनिकों के साथ जनरल अरोड़ा के आगे आत्मसमर्पण किया था। उस समय एक और व्यक्ति इस युद्ध के साथ जुड़ा हुआ था, जिसने अग्रिम मोर्चों पर जाकर भारतीय सेना के शौर्य को कलमबद्ध किया था। उनका वह संस्मरण धर्मयुग में तीन चरणों में छपा था। शीर्षक था “युद्ध ब्राहृपुत्र का”। वह साहसी व्यक्ति थे आचार्य विष्णुकांत शास्त्री, जिनका हाल ही में निधन हुआ। दोनों नायकों को नमन।-हरिसिंह महतानी89/7, पूर्वी पंजाबी बाग (नई दिल्ली)सुखद बदलावपाञ्चजन्य में किए गए बदलाव अच्छे लगे। मेरी धर्मपत्नी यह देखकर बड़ी खुश हुई कि अब पाञ्चजन्य में श्रीमती नीलिमा प्रधान का भविष्यफल पुन: प्रकाशित होने लगा है। पाठकीय का स्थान परिवर्तन भी अच्छा लगा। नया स्तम्भ “महावीर केसरी” रोचक एवं ज्ञानवद्र्धक होगा- ऐसा विश्वास है। श्री मुजफ्फर हुसैन लगातार ऐसी दुर्लभ जानकारी दे रहे हैं, जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलती है। “गहरे पानी पैठ” में सुनील गंगोपाध्याय की शरारत पढ़कर वेदना हुई।-शंभु दयाल तिवारीग्रा. व पत्रा.- बलेह जिला- सागर (म.प्र.)पाञ्चजन्य को आकर्षक बनाने की चर्चा कई जागरुक पाठक भी करते हैं। सबकी अपेक्षा रहती है कि पाञ्चजन्य में ऐसी सामग्री हो जो हर वर्ग के पाठकों को आकर्षित करे। 22 मई के अंक में आपने “अपनी बात” में ही पाञ्चजन्य की कीमत पर चर्चा की है। ठीक यही बात मुझसे भी कई पाठक करते हैं। इन लोगों ने तो पाञ्चजन्य की कीमत 5 रु. तय भी कर दी है। अनेक पाठकों की यह भी शिकायत रहती है कि पाञ्चजन्य पुराने कलेवर में नहीं दिख रहा है।-राम बाबू शर्मा डी-690,रीको कोलोनी, आबू रोड (राजस्थान)परिवर्तन रचनात्मक नहींअपनी बात स्तम्भ में आपने लिखा है कि हम लोग कोशिश करते रहे हैं कि पाञ्चजन्य में कुछ सामग्री भी बदलें और स्तंभों की जगह भी। किन्तु आपकी सोच रचनात्मक नहीं है। इसी अंक में आपने एक बड़ी रपट “बूचड़खाने को नया सरकारी नाम” छापी है, पर इस दिशा में जो रचनात्मक कार्य करते हैं, उनके लिए छोटी-सी जगह निकालते हैं। गो विज्ञान अनुसंधान केन्द्र, देवलापार, नागपुर की एक छोटी-सी रपट आप लोगों ने छापी थी। जबकि इस केन्द्र में गोवंश के लिए अनेक कार्य हो रहे हैं। इसलिए रचनात्मक कार्य करने वालों को निरन्तर छापें।-प्रेम नारायण स्वदेशी ग्रामोद्योग प्लान्ट साइट, राउरकेला (उड़ीसा)पुरस्कृत पत्रराष्ट्रभक्त सरकार चाहिएपाञ्चजन्य में श्री भानुप्रताप शुक्ल, श्री देवेन्द्र स्वरूप, श्री शंकर शरण, श्री बलवीर पुंज, श्री दीनानाथ मिश्र आदि महान लेखकों के ज्ञानवर्धक व राष्ट्रभक्तिपूर्ण लेखों को पढ़कर बड़ी प्रसन्नता होती है। इनके लेखों का जितना अधिक प्रचार व प्रसार हो, उतना ही हमारे समाज के लिए अच्छा होगा और देश में जागृति आएगी। आज हमारे देश को ऐसे राष्ट्रभक्त लेखकों व विचारकों की अत्यन्त आवश्यकता है। आने वाली युवा पीढ़ी का उचित मार्गदर्शन होना अति आवश्यक है, क्योंकि कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि अंग्रेजों व साम्यवादियों की चालों से हिन्दू धर्म के साथ-साथ हमारे राष्ट्र को भी अत्यंत हानि पहुंची है। शिक्षा जगत में इतिहास के नाम पर केवल मुगलों व अंग्रेजों का काल ही पढ़ाया जाता है, जबकि हमारा स्वर्णिम इतिहास प्रेरणास्रोतों से भरा पड़ा है और जो विजय व उत्थान के साथ महान संस्कृति का बोध कराता है। उपरोक्त लेखकों के लेखों के प्रत्येक शब्द का महत्व लोगों की समझ में आ जाए तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपने समाज, धर्म व राष्ट्र की रक्षा करने में समर्थ हो जाएंगे। वैचारिक लड़ाई हमें साम्यवाद, ईसाइयत व इस्लामी विस्तारवाद की विचारधारा से लड़नी ही पड़ेगी। इसके लिए हमें अपने प्राचीन इतिहास को खंगालना होगा। उसमें शोध करके हमें युवा पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त करना होगा। “विचार” की शक्ति के साथ ही हमें लोकतंत्र में “वोटों” की शक्ति को भी पहचानना होगा। आज मुसलमानों के वोटों का ध्रुर्वीकरण करके हमारे देश में अक्षम लोग भी राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं और राष्ट्र सेवा के स्थान पर स्वार्थ सेवा में लगे हुए हैं। अत: हमें भी राजनीति के महत्व को पहचान कर लोकतंत्र में अपने “वोटों” की शक्ति का परिचय कराना होगा। समस्त हिन्दुओं को एक होकर राष्ट्र सम्मान की रक्षार्थ एक राष्ट्रभक्त सरकार का गठन करना होगा, अन्यथा मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण हमारी सरकारें निरन्तर हम हिन्दुओं का शोषण करती रहेंगी।-विनोद कुमार सर्वोदयनया गंज, गाजियाबादNEWS
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