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नई पीढ़ी और देशभक्ति, कौन है उन्हें प्रेरणा देने वाला?-नाना जी देशमुखनानाजी देशमुख को ज्ञानेश्वर सम्मान प्रदान करते हुए उपराष्ट्रपति श्री भैरों सिंह शेखावत।बाईं ओर स्मृति पत्र लिए खड़े हैं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्री मनोहर जोशी।दाईं ओर हैं ज्ञानेश्वर विद्यापीठ के कुलपति श्री अरुण कुदलेसफेद वस्त्रों में नानाजी देशमुख का उज्ज्वल-दमकता आभामण्डल और भी दीप्तमान हो उठा था। माथे पर चंदन, चेहरे पर घनी मूछें-सफेद दाढ़ी, मन में सदा देश का चिंतन, वे खुद को संत नहीं कहते लेकिन उनके जीवन से लोगों को संतत्व का पता चलता है। और जब उन्होंने सभामण्डप में बोलना शुरू किया, मानो सनातन भारत की पीड़ा ही उनके मुख से मुखरित हो उठी।उपराष्ट्रपति निवास के सभागार में आयोजित एक सादे किन्तु गरिमामय समारोह में गत 1 जून, बुधवार को ज्ञानेश्वर विद्यापीठ-पुणे ने पद्म विभूषण नानाजी देशमुख को “ज्ञानेश्वर पुरस्कार” से अलंकृत किया। उपराष्ट्रपति श्री भैरोसिंह शेखावत ने नानाजी को पुरस्कार स्वरूप एक लाख रुपए की धनराशि, शाल, प्रशस्ति पत्र व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।इस अवसर पर अपने संक्षिप्त उद्बोधन में नाना जी देशमुख ने कहा कि आज देश में अपने जीवन व आचरण से युवकों को प्रेरणा देने वाले लोगों की कमी हो गई है। नौजवानों को देशभक्ति की शिक्षा व प्रेरणा देने वाला जीवन आज कहीं दिखता नहीं है। इसके परिणाम भयंकर हो रहे हैं, देश की नई पीढ़ी देशभक्ति के मार्ग से दूर होती जा रही है। नानाजी देशमुख ने युवकों में चरित्र व देशभक्ति के निर्माण पर जोर देते हुए कहा कि हमारे परिवार और शिक्षा केन्द्रों में आज यह विषय ही गौण हो गया है। देश की सेनाओं में 14,000 अधिकारियों के पद रिक्त हैं लेकिन योग्य युवक आज खोजे नहीं मिल रहे हैं। यदि ऐसा ही रहा तो देश का भविष्य कहां जाएगा? देश की राजनीति और राजनेताओं की विलासितापूर्ण जीवन शैली पर भी नानाजी ने कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री आजीवन सरकारी सुविधाएं क्यों लेते हैं? स्वतंत्रता के समय पुराने राजघरानों के जिस “प्रीवी पर्स” को संसद ने समाप्त किया, वह इन राजनीतिज्ञों के नए घरानों की सुख-सुविधा के रूप में पुन: बहाल कर दिया गया है।89 वर्षीय नाना जी ने कहा कि मेरे जीवन की अंतबेला निकट है, पुरस्कार तो उन्हें देने चाहिए जो इससे प्रेरित होकर जीवन का शेष समय और कुछ नया करने में लगा सकें, देश के भविष्य को संवारने में मदद कर सकें।उन्होंने यह भी कहा कि उपराष्ट्रपति भवन में उनके जैसे एक गांव के आदमी को सम्मान देना बड़ी बात है, यदि यही ध्यान भारत के गांवों का रखा गया तो नए भारत-समृद्ध भारत के निर्माण में कोई कठिनाई नहीं होगी।समारोह को सम्बोधित करते हुए उपराष्ट्रपति श्री भैरोंसिंह शेखावत ने पुराने दिनों की याद ताजा करते हुए कहा कि नानाजी ने उनके व्यक्तित्व के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया है। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे नानाजी को सम्मानित करने का अवसर मिला है। श्री शेखावत ने शिक्षा की वर्तमान भेदभावपरक व्यवस्था पर दु:ख प्रकट किया और कहा कि धन के कारण शिक्षा क्षेत्र में भेदभाव पैदा हुआ है। कोई गांव की अभावग्रस्त पाठशाला में तो कोई महंगे सर्वसुविधायुक्त विद्यालयों में पढ़ रहा है। यह व्यवस्था की खामी है भगवान की देन नहीं। इसमें सुधार के लिए नानाजी देशमुख के जीवन से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। जो काम उन्होंने चित्रकूट में किया है, उसे मैंने देखा है और नि:संदेह इसे देश के अन्य हिस्सों में शीघ्रता से किए जाने की जरूरत है। हमें अपनी संस्कृति और परम्परा पर आधारित ज्ञान का उपयोग करते हुए परिवर्तन की दिशा में बढ़ना है।इस अवसर पर ज्ञानेश्वर विद्यापीठ के कुलाधिपति तथा लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष श्री मनोहर जोशी ने नानाजी देशमुख को भारतीय ऋषि परम्परा का प्रतीक पुरुष बताते हुए उनके शतायु होने की कामना की। पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी, ज्ञानेश्वर विद्यापीठ के कुलपति श्री अरुण कुदले भी इस अवसर पर उपस्थित थे।प्रतिनिधिNEWS
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