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क्योंकि मनमोहन सिंह ईमानदार हैंदीनानाथ मिश्रदीनानाथ मिश्रअपने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी भले आदमी हैं, साफ-सुथरे और उजले। लोग कहते हैं वह कांग्रेसी परम्परा के नहीं हैं। मैं भी इसी गलतफहमी में था। सोचता था जीवन भर नौकरशाह रहा आदमी कांग्रेसी कैसे हो सकता है? “जो हुक्म”, “यस सर,” “जी हुजूर”, “जी सरकार”, जैसे सहमतिसूचक शब्द नौकरशाहों के उत्तर की शुरूआत में ही डटे रहते हैं। जमाना सोनिया जी का हो या स्व. राजीव गांधी का अथवा इंदिरा जी का, कांग्रेस के सम्पूर्ण कालखण्ड में कांग्रेस के नेतागण इन्हीं सहमतिसूचक शब्दों को जपते रहे हैं। जो इसका उपयोग नहीं करते थे, उन्हें इंदिरा गांधी ने 1969 में थोक के भाव में पार्टी से निकाल दिया था। आज जो कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता हैं, वे इन्हीं शब्दों को जपते-जपते बौने हो गए हैं।जहां तक मनमोहन सिंह का सवाल है, नौकरशाह होने के कारण ही वे खॉटी कांग्रेसी हैं। वे आधे-अधूरे प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने देश के तमाम जिलाधिकारियों का एक सम्मेलन किया। मनमोहन सिंह ने उन्हें सुशासन पर बहुत अच्छा भाषण पिलाया। ईमानदारी, निष्ठा, कर्मठता का उपदेश दे डाला। 2 दिन के अन्दर इन्हीं गुणों से लैस सीवान और गोपालगंज के जिलाधिकारियों, क्रमश: सी.के.अनिल और के.के. पाठक का दण्डात्मक स्थानान्तरण राज्यपाल महोदय ने कर डाला। ये दोनों अधिकारी इन दिनों जिलों के माफियाओं से सफलतापूर्वक टकरा रहे थे। बड़ी ख्याति अर्जित की थी इन्होंने। मोहम्मद शहाबुद्दीन जैसा सांसद उनसे कांपने लगा था। कहां तो दशकों तक शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी। इनका ही कमाल था कि इन माफियाओं को अपनी औकात समझ में आ गई। बिहार में केन्द्र का ही शासन है। मनमोहन सिंह की सरकार की मेहरबानी से ही इनका स्थानान्तरण हुआ। कथनी और करनी की ऐसी समानता मनमोहन सिंह जैसे ईमानदार आदमी के बूते की बात ही है।जो गोवा और झारखण्ड में हुआ वह तो मनमोहन सिंह की “गैरजानकारी” में हुआ। “गैरजानकारी” का कोई धब्बा इनकी ईमानदारी पर नहीं पड़ सकता है। बिहार की विधानसभा को भंग कर दिया गया। बिहार की जो विधानसभा गठित ही नहीं हुई वह भंग कैसे हो जाएगी? कुम्हार ने जिस घड़े को बनाया ही नहीं, उस घड़े को फोड़ा कैसे जा सकता है? अलबत्ता चुनाव हो गए थे। संविधानवेत्ता बताते हैं कि आप विधानसभा तो भंग कर सकते हैं, चुनाव रद्द नहीं कर सकते। लेकिन मनमोहन के मंत्रिपरिषद् ने मान लिया कि विधानसभा गठित हो गई, वह भी सदस्यों के शपथ लिए बिना, और उसे भंग करने की सिफारिश कर दी। मनमोहन सिंह का यह कदम असंवैधानिक हो सकता है, मगर बेईमान नहीं हो सकता। क्योंकि मनमोहन सिंह ईमानदार प्रधानमंत्री हैं।NEWS
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