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रिश्तों में गरमाहटइस्लामाबाद से आलोक गोस्वामीपाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्री शौकत अजीजके साथ श्री लालकृष्ण आडवाणी30मई की रात 12 बजे इस्लामाबाद के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन्स का विमान उतरा तो गीली हवाई पट्टी देखकर लगा जैसे बारिश की फुहार ने एक अच्छा शगुन किया है। 27 साल बाद श्री लालकृष्ण आडवाणी पाकिस्तान आए थे।जाहिर है उनकी इस यात्रा से जहां भारत-पाकिस्तान के दरम्यान बड़ी शिद्दत से महसूस की जा रही दोस्ती की गरमाहट को एक नया आयाम मिला वहीं विभाजन पूर्व की उनके जीवन से जुड़ी कई यादें भी उभर आई थीं। यात्रा पर रवाना होने से पहले श्री आडवाणी ने दिल्ली में ही कहा था कि उनकी पाकिस्तान की यह यात्रा उन तमाम स्मृतियों को ताजा करेगी जो उनके दिल के किसी कोने में महफूज हैं। कराची का उनका वह सेंट पैट्रिक स्कूल हो या जमशेद क्वार्टर्स का वह इलाका जहां कभी उनका घर हुआ करता था। हवाई अड्डे पर पाकिस्तान मुस्लिम लीग के महासचिव श्री मुशाहिद हुसैन ने सभी की आगवानी की। श्री आडवाणी के साथ उनकी सहधर्मिणी श्रीमती कमला आडवाणी व पुत्री सुश्री प्रतिभा आडवाणी भी पाकिस्तान की यात्रा पर हैं।पाकिस्तानी संसद में नेता प्रतिपक्ष मौलानाफजलुर्रहमान के साथ श्री आडवाणीअमन और दोस्ती के कारवां को आगे… और आगे बढ़ाने पहुंचे आडवाणी के आने से आम इस्लामाबादी में एक खास तरह का उत्साह दिखा। “होलीडे इन” होटल से सटे बाजार में मोबाइल की दुकान के 28 साल के युवा मालिक फैजल की खुशी चेहरे पर साफ पढ़ी जा सकती थी। “इंशाअल्लाह दोनों मुल्कों की नजदीकियां बढ़ेंगी”, वह बोला। आडवाणी जी के साथ दिल्ली से आए हैं जानकर वह अपना उत्साह और खुशी रोक नहीं पाया। लाख मना करने के बावजूद हमें दुकान में बिठाकर पड़ोस से ठण्डे पेय की बोतल लाया और बड़े प्यार से पीने का आग्रह किया। फैजल बोला, “फिर इस्लामाबाद आएं तो जरूर मिलें।” दरअसल पाकिस्तानियों को लेकर जिस तरह की कल्पना हमारे मन में थी, वहां उससे कुछ अलग ही नजारा देखने को मिला।चुभने वाली बातें छोड़ोआडवाणी साफमा द्वारा आयोजित कार्यक्रम में गए। वहां पाकिस्तानी पत्रकारों द्वारा गुजरात एवं “बाबरी मस्जिद” के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए श्री आडवाणी ने कहा कि इस तरह की चुभने वाली अनेक बातें 1947 से लेकर अब तक भारत के लोगों के दिल में भी हैं। पुरानी बातों में उलझे रहे तो भविष्य में शांति कैसे कायम होगी। हमें पुरानी बातें भुलाकर अमन और शांति की ओर बढ़ना चाहिए।31 मई की सुबह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्री शौकत अजीज से मुलाकात करके श्री आडवाणी ने अपनी यात्रा की शुरुआत की। भारतीय मीडिया दल के अलावा बड़ी संख्या में उपस्थित पाकिस्तानी पत्रकारों की उपस्थिति में दोनों नेताओं ने बड़ी गर्मजोशी से भेंट की। जितनी देर भीतर कमरे में वार्ता चलती रही, हम प्रधानमंत्री निवास का मुआयना करते रहे। घर के बीचोंबीच और ऊंची छत वाले बरामदे की दीवारों पर शीशे की चौखटों में उर्दू में “अल्लाह” के 99 सम्बोधन बड़े करीने से लगे थे। खुली छत से राष्ट्रपति भवन भी सामने ही दिखता था। प्रधानमंत्री निवास चूंकि एक पहाड़ी पर बना है, वहां से इस्लामाबाद शहर का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है।मुहब्बत के तोहफेमई की दोपहर पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ से भेंट के दौरान आडवाणी ने उन्हें कुछ नायाब तोहफे भी दिए। आडवाणी के तोहफों में मशहूर अलफांसो आमों की पेटी थी तो आगरा में तैयार संगमरमर की नक्काशीदार तश्तरी भी। जनरल मुशर्रफ पुरानी हिन्दी फिल्मों के खास शौकीन हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए श्री आडवाणी ने उन्हें हिन्दी फिल्मों की मशहूर हस्तियों, जैसे दिलीप कुमार, मीना कुमारी, बिमल राय, सुनील दत्त आदि के जीवन के खास पहलुओं और पुराने सदाबहार गीतों की सी.डी. भेंट कीं। फिल्मी हस्तियों के जीवन की झलक आडवाणी की पुत्री प्रतिभा आडवाणी के मशहूर टी.वी. धारावाहिक “यादें” से ली गई थी। श्री आडवाणी ने प्रधानमंत्री शौकत अजीज को भी अलफांसो आमों की टोकरी और नक्काशीदार तश्तरी भेंट की।करीब आधे घंटे की मुलाकात के बाद श्री आडवाणी ने वक्तव्य दिया। उन्होंने बताया कि दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार की शुरुआत भाजपानीत राजग सरकार के शासनकाल में हुई थी और उस सरकार ने जिस मार्ग को अपनाया था आज की गठबंधन सरकार भी उसी पर चलते हुए संबंध बेहतर बनाने का प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री श्री शौकत अजीज भी इस बात से सहमत थे कि राजग ने ही माहौल की बेहतरी का प्रयास शुरु किया था। श्री आडवाणी ने बताया कि श्री अजीज के साथ उन्होंने जम्मू-कश्मीर, व्यापार, संचार, ऊर्जा आदि कई विषयों पर चर्चा की। साथ ही भाजपा से जुड़े विषय भी बातचीत में आए। दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि जम्मू-कश्मीर सहित सभी मसलों का साथ-साथ हल खोजा जाना चाहिए, जो केवल बातचीत के जरिए ही संभव है। हालांकि, श्री आडवाणी ने स्पष्ट किया, वे अभी सरकार में नहीं हैं अत: सरकार के स्तर से विषयों पर चर्चा नहीं कर सकते परन्तु भारत और पाकिस्तान सरकार के बीच जारी शांति प्रयासों का उनकी पार्टी पूरा समर्थन करती है।अपने वक्तव्य में प्रधानमंत्री श्री अजीज ने श्री आडवाणी के साथ हुई मुलाकात को अमन की ओर बढ़ता एक महत्वपूर्ण कदम बताया। श्री अजीज ने दोहराया कि जम्मू-कश्मीर सहित सभी समस्याओं पर साथ-साथ बात चलती रहे। हालांकि श्री अजीज यह कहने से भी नहीं चूके कि किसी भी नतीजे पर पहुंचने के लिए कश्मीर के लोगों की इच्छा पर गौर करना चाहिए। एक पाकिस्तानी पत्रकार के इस सवाल पर कि आगरा वार्ता की विफलता के जिम्मेदार माने-जाने वाले श्री आडवाणी से बातचीत को इतना महत्व क्यों दिया जा रहा है, श्री अजीज ने कहा- “हमें पुरानी बातें भूलकर आगे की ओर देखना चाहिए।”तक्षशिला का दौरादिल्ली से रवाना होने से पहले श्री आडवाणी ने इच्छा व्यक्त की थी कि वे तक्षशिला का ऐतिहासिक स्थल देखना चाहेंगे। पाकिस्तान सरकार ने इसकी व्यवस्था की और 1 जून को करीब 4 बजे अपने परिवार सहित श्री आडवाणी इस्लामाबाद से लगभग 30-32 किलोमीटर दूर तक्षशिला (पाकिस्तान में इसे “तक्षिला” कहते हैं) देखने पहुंचे। जिस स्थान पर तक्षशिला के पुरावशेष प्राप्त हुए वहां पाकिस्तानी पुरातत्व विभाग का एक “तक्षिला संग्रहालय” है। श्री आडवाणी ने संग्रहालय में करीने से सज्जित पुरावशेषों, पाषाण शिल्पों, बौद्धकालीन स्मृति चिन्हों को देखा और उसके बाद वहां रखी आगंतुक पुस्तिका में (अंग्रेजी में) लिखा- “तक्षिला” के इस संग्रहालय का भ्रमण करके आनन्द हुआ। तक्षशिला वह नाम है जो हमारी सभ्यता के चरमोत्कर्ष की स्मृतियों को ताजा कर देता है।” संग्रहालय के उपनिदेशक डा. अशरफ खान ने पास ही स्थित एक स्थल, जहां से तक्षशिला के अवशेष प्राप्त हुए, के बारे में श्री आडवाणी को विस्तार से जानकारी दी।राष्ट्रपति मुशर्रफ के दो निवास हैं। एक इस्लामाबाद में और दूसरा रावलपिण्डी स्थित छावनी में, सेनाध्यक्ष के नाते। श्री आडवाणी अपने परिवार के साथ राष्ट्रपति मुशर्रफ से मिलने दोपहर 11.30 बजे पहुंचे। जनरल मुशर्रफ ने बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। बात लम्बी चली। जनरल मुशर्रफ के साथ हुई अपनी वार्ता से उत्साहित श्री आडवाणी ने पत्रकारों से कहा कि उनकी यह यात्रा भले ही मील का पत्थर न हो, पर महत्वपूर्ण जरूर है। पाकिस्तानी राष्ट्रपति से बातचीत के बाद इसमें कोई संदेह नहीं है कि वाजपेयी सरकार द्वारा शुरू की गई शांति की प्रक्रिया, जिसे डा. मनमोहन सिंह की सरकार आगे बढ़ा रही है, अब रुकने वाली नहीं है। राष्ट्रपति मुशर्रफ भी चाहते हैं कि शांति के ये कदम अब दोनों मुल्कों की सरकारों के बीच ही नहीं बल्कि आम जनता के बीच आगे बढ़ें। श्री आडवाणी और जनरल मुशर्रफ, दोनों ने मसलों को आपसी सौहार्द, विश्वास और हिंसारहित माहौल में सुलझाने के प्रति सहमति जताई। मुशर्रफ का यह कहना दिलचस्प था- “फौजियों को सिर्फ जंग करनी ही नहीं आती।”श्री आडवाणी ने शांति प्रक्रिया के अगले पड़ाव के बारे में जनरल से जिक्र किया तो मुशर्रफ ने कहा कि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के साथ उनकी अच्छी समझ बनी है। हमारे सामने उद्देश्य साफ है पर आखिरी समाधान अभी साफ नहीं है। जनरल ने कहा कि वे सितम्बर में न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के दौरान प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से अपनी मुलाकात की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं। आडवाणी-मुशर्रफ वार्ता के दौरान पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त श्री शिवशंकर मेनन, आडवाणी के निजी सचिव श्री दीपक चोपड़ा और भाजपा सचिव श्री सुधीन्द्र कुलकर्णी भी मौजूद थे।कसूरी की दावतइस्लामाबाद के आलीशान मैरियट होटल में 31 मई की शाम पाकिस्तान के विदेश मंत्री खुर्शीद अहमद कसूरी की पत्नी श्रीमती कसूरी ने श्री आडवाणी के सम्मान में दावत दी जिसमें भारतीय प्रतिनिधिमंडल के अलावा पाकिस्तान की चुनिंदा राजनीतिक व सामाजिक हस्तियां मौजूद थीं। पाकिस्तान के नेता प्रतिपक्ष फजलुर्रहमान, मुस्लिम लीग के महासचिव मुशाहिद हुसैन, भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे रियाज खोखर भी मौजूद थे।पाकिस्तानी मीडिया का एक वर्ग श्री आडवाणी की इस यात्रा को लेकर खासी उधेड़बुन करता दिखा। शायद यही कारण था कि मुशर्रफ से मुलाकात के बाद आयोजित पत्रकार वार्ता में पाकिस्तानी पत्रकारों ने उनसे पैने सवाल किए। एक पत्रकार ने पूछा कि “अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने पर उनका क्या कहना है।” श्री आडवाणी ने कहा कि घटना के कुछ ही दिन बाद अपने एक लेख में उन्होंने 6 दिसम्बर, 1992 को जीवन का सबसे दु:खद दिन बताया था। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि शांति और सौहार्द कायम होना दोनों देशों के लोगों के हित की बात है। हम इतिहास बदल सकते हैं, भूगोल नहीं। केवल शांति ही एकमात्र विकल्प है।31 मई को ही श्री आडवाणी ने पाकिस्तानी सीनेट (ऊपरी सदन) के अध्यक्ष मोहम्मद मियां सूमरो और विदेश मंत्री श्री खुर्शीद अहमद कसूरी से मुलाकात की। 1 जून को पाकिस्तानी संसद के अध्यक्ष चौधरी आमिर हुसैन और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेताओं से भेंट की। शाम को वे पाकिस्तान के नेता प्रतिपक्ष और मुत्ताहिदा मजलिसे अमल (6 मजहबी पार्टियों का गठबंधन) के महासचिव मौलाना फजलुर्रहमान से मिले। दोनों ने अमन की राह पर आगे बढ़ने की बात की।इमरान ने पाञ्चजन्य से कहा-माहौल खुशी का1 जून की रात पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त शिवशंकर मेनन ने आडवाणी परिवार के सम्मान में अपने निवास पर भोज आयोजित किया। सच पूछिए, दो दिन से बढ़िया शाकाहारी भोजन की तलाश में आधे पेट और बेमन से खाना खाकर गुजारा करने के बाद उस दिन चावल-सांभर खाकर पेट भरा। मेनन की दावत में पाकिस्तानी विदेश मंत्री कसूरी और उनकी बेगम, मुस्लिम लीग के अध्यक्ष चौधरी शुजात हुसैन, तहरीके इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व क्रिकेटर इमरान खान, पाकिस्तानी सीनेट के अध्यक्ष मोहम्मद मियां सूमरो और उनकी पत्नी भी शरीक हुईं। पूरे दिन की गंभीर वार्ताओं के दौर के बाद सभी कुछ हल्के मूड में थे और यहां-वहां कहकहे लग रहे थे।इस मौके पर पाञ्चजन्य से विशेष बातचीत में इमरान खान ने श्री आडवाणी की यात्रा और बदले माहौल पर खुशी का इजहार करते हुए कहा- “बड़ा अच्छा माहौल बना है। खासकर दिसम्बर, 2001 के बाद जिस तरह दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर तैनात हो गई थीं, उस सबके बाद दोनों मुल्कों के लोग अमन चाहते थे। श्री आडवाणी की इस यात्रा में बेशक अमन के रास्ते खुले हैं।”इस यात्रा से दिलों में गुबार की बजाय एक-दूसरे की मुश्किलों और मजबूरियों को समझने की एक इच्छा जैसी पैदा होती दिख रही है। इस्लामाबाद के लोग अपने शहर में आडवाणी को पाकर बेहद खुश दिखे। हालांकि उनकी बातचीत में कश्मीर का जिक्र जरूर आता है। मन बदले हैं, इधर भी और उधर भी। बाजार में कैसेट और सी.डी. की बड़ी-सी दुकान के मालिक इरफान भाई हमारी सूरत-सीरत भांपते हुए बाले – “आडवाणी जी के साथ आए हैं हिन्दुस्तान से, तो आपको कीमत में छूट जरूर देंगे।”उन्होंने बताया कि उनकी माता जी मूलत: गुड़गांव (भारत) की हैं। सड़कों, बाजारों, दुकानों, बसों, ट्रकों, लारियों- सभी जगह उर्दू या अंग्रेजी। लारियों और ट्रकों की सजावट तो देखते ही बनती है। ऐसा नई-नवेली दुल्हन की तरह साज-श्रृंगार करते हैं कि बस पूछिए मत। आगे से ऊंची चमकदार, रौबदार मुकुट जैसी बनावट और पीछे पूरे ट्रक पर रंग-बिरंगे स्टीकर, शीशे, कपड़े, डोरियां, छड़ें।2 दिन इस्लामाबाद में रुकने के बाद श्री आडवाणी लाहौर और कराची में भी दो-दो दिन ठहरेंगे। लाहौर में कटासराज मंदिर देखेंगे तो कराची में अपने बचपन की यादों में पगा सेंट पैट्रिक स्कूल। वे गलियां और चौराहे, वे बाग-बगीचे और खेल के मैदान जहां बचपन बीता। उन पुराने साथियों को भी नजरें ढूंढेंगी जो कभी उनके साथ साइकिल पर दौड़ लगाते होंगे। …सिंध ते पंजाब दे दौरे बारे अगली बार लिखांगे।आडवाणी ने कटासराज मंदिरों की जीर्णोद्धार परियोजना का उद्घाटन किया2 जून की सुबह इस्लामाबाद से करीब 2 घंटे सड़क मार्ग की यात्रा के बाद चकवाल जिले में कटासराज मंदिर के भग्नावशेष दिखाई दिए। पंजाब सूबे के कभी बहुत प्रसिद्ध तीर्थस्थल रहे ये मंदिर आज बेहद जीर्ण-शीर्ण स्थिति में हैं। श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्रीमती कमला आडवाणी और उनकी पुत्री प्रतिभा आडवाणी ने कटासराज मंदिरों का भ्रमण किया। यह तीर्थस्थल पौराणिक काल से ही प्रसिद्ध रहा है। माना जाता है कि सती के निधन के बाद शोक में डूबे शिव के आंसू धरती पर जिन दो स्थानों पर गिरे वहां दो पुण्य ताल आज भी मौजूद हैं। उनमें से एक है भारत में तीर्थराज पुष्कर का ताल और दूसरा है यहां कटासराज का ताल। ताल के चारों ओर की पहाड़ी पर प्राचीन वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में बने इन मंदिरों का हाल आज जर्जर है। कहा यह भी जाता है कि पाण्डवों ने 14 में से 12 वर्ष का वनवास यहीं व्यतीत किया था।पाकिस्तान मुस्लिम लीग के अध्यक्ष चौधरी शुजात हुसैन की पहल पर पाकिस्तानी पंजाब के पुरातत्व विभाग ने इन मंदिरों के जीर्णोंद्धार की योजना तैयार की है। श्री आडवाणी ने सात जीर्ण-शीर्ण मंदिरों के समूह “सतघरे” से इस योजना का शुभारम्भ किया। इस योजना पर करीब 2 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। पंजाब (पाकिस्तानी) के पुरातत्व विभाग के महानिदेशक ने इस अवसर पर भारत से आए अपने विशिष्ट अतिथि से अनुरोध किया कि हिन्दू धर्म के अत्यधिक पुण्य इस तीर्थस्थल के जीर्णोद्धार और संरक्षण के कार्य में अगर भारत के विशेषज्ञ मार्गदर्शन दें तो अच्छा रहेगा। इस पर श्री आडवाणी ने बताया कि भारत सरकार उनके इस विचार को अपनी स्वीकृति दे चुकी है और जल्दी ही भारत से दो पुरातत्व विशेषज्ञ यहां आकर योजना में सहयोग देंगे।यहीं स्थित एक प्राचीन शिवालय में प्रस्तर का शिवलिंग भी है। श्री आडवाणी ने अपने परिवार स्थित स्थानीय पंडित श्री कांशीराम शर्मा की उपस्थिति में जल अर्पित किया और आरती उतारी। श्री आडवाणी के साथ गए दल के अन्य सदस्यों और पत्रकारों ने भी शिवलिंग की पूजा-अर्चना की, जल चढ़ाया और जोर से उद्घोष किया- “हर-हर महादेव”, “भोले बाबा की जय”, “जयकारा शेरां वाली दा- बोल सांचे दरबार की जय।”फैजल मस्जिद में आडवाणी31 मई की शाम श्री आडवाणी इस्लामाबाद की सुप्रसिद्ध फैजल मस्जिद देखने गए। शाम 6 बजे भी मस्जिद के बाहर जियारत करने वाले और अन्य लोगों की खासी भीड़ मौजूद थी। मस्जिद के मौलाना के अनुसार 2004 की लिम्का बुक आफ रिकाड्र्स में यह बेहद खूबसूरत और विशाल नमाज हाल वाली मस्जिद दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद के रूप में दर्ज की गई है। श्री आडवाणी ने करीब 25 मिनट के इस दौरे में मस्जिद की तमाम बारीकियों और वास्तुकला को बड़े ध्यान से सुना और परखा।तुर्की के मशहूर वास्तुकार वेदात डलोके द्वारा 1978 से 1988 के बीच 10 साल में बनाई गई इस मस्जिद का शिल्प देखते ही बनता है। इसे बनाने में उस वक्त करीब 3 अरब रुपए का खर्च आया था। अगले दिन पाकिस्तान के अखबारों ने मस्जिद का दौरा करते हुए श्री आडवाणी के छायाचित्र प्रमुखता से छापे।फैजल मस्जिद में प्रवेश के लिएश्री आडवाणी को विशेष प्रकार के जूते पहनाता एक सुरक्षाकर्मीNEWS
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