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अब जाकर बादल ने भिंडरावाला को आतंकवादी कहारात गुजर जाने पर चिराग जलाए तो क्या किया?- राकेश सैन”पंथ के नाम पर पलने वाले आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता।” साधारण-सी लगने वाली यह बात शायद अपने भीतर उस आतंकवाद की समस्या का समाधान समेटे हुए है, जो मानवता के अस्तित्व पर निरंतर आघात कर रहा है। पंजाब में राजनीतिक गलतियों और पाकिस्तान की शह पर फैले “खालिस्तानी आतंकवाद” को आजादी की लड़ाई कहने वाले अकाली दल (बादल) को भी यह बात समझ में तो आई, परन्तु काफी देर बाद। पंजाब विधानसभा में आतंकवाद पर हुई बहस चाहे बेनतीजा निकली, परन्तु अकालियों ने जरनैल सिंह भिंडरावाला एंड पार्टी के कुकृत्यों को आतंकवाद बताकर यह तो साबित कर ही दिया है कि चाहे देर से ही सही, अकालियों को होश तो आया। पंजाब और पंजाबीयत का भारी नुकसान होने के बाद अकालियों की सोच में आए इस परिवर्तन पर केवल इतना ही कहा जा सकता है, “सब कुछ लुटा कर होश में आए तो क्या, रात गुजर जाने पर चिराग जलाए तो क्या?पिछले दिनों विधानसभा में हुई बहस ने राज्य में डेढ़ दशक पहले दफनाए जा चुके आतंकवाद के गड़े मुर्दे को फिर से कब्रा से बाहर निकाल दिया है। इस मुद्दे पर राज्य में छींटाकशी चल रही है। पंजाब के आतंकवाद के लिए कौन जिम्मेदार है- इस मुद्दे पर तो लंबी बहस की गुंजाइश है, परन्तु अकालियों ने आतंकवाद को सिख पंथ के साथ जोड़ने की जो गलती की, उसके लिए इतिहास कभी भी इसके नेताओं को माफ नहीं करेगा। सत्तर के दशक में तत्कालीन अकाली नेताओं ने वही गलती की जो आज कुछ मुस्लिम नेता आतंकवाद को इस्लाम के साथ जोड़कर कर रहे हैं। अकालियों ने भी खालिस्तानी आतंकवाद को पंथ के साथ जोड़ा और आतंकवाद को आजादी की लड़ाई या सिख पंथ के संघर्ष के रूप में प्रचारित किया था। इसके चलते आतंकवाद के प्रारंभिक दौर में केवल सहजधारियों को ही निशाना बनाया गया। अकाली नेता सुरक्षाबलों के हाथों मारे जाने वाले आतंकवादियों को “शहीद” का खिताब देकर उनके भोग समारोहों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। अगर हिन्दुओं के लिए बड़े नरसंहारों की निंदा करनी भी पड़ती थी तो बड़े नपे-तुले शब्दों में वे टिपप्णी करते थे, और अंतत: इसका दोष भी सुरक्षा एजेंसियों के मत्थे मढ़ दिया जाता था। आरोप लगाया जाता था कि सरकार सिखों के आंदोलन को बदनाम करने के लिए सरकारी एजेंसियों से यह सब करवा रही है। कौन नहीं जानता कि अकाली नेता सिमरनजीत सिंह मान चुनाव लड़ने के लिए एक ओर तो भारतीय संविधान में निष्ठा की कसमें खाते थे, दूसरी ओर वे तिरंगा जलाते रहे हैं और संविधान की प्रति फाड़ते रहे हैं। अकाली नेताओं का एक शिष्टमंडल, जिसमें पार्टी के अध्यक्ष प्रकाश सिंह बादल और वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी शामिल थे, संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन अध्यक्ष बुतरस बुतरस घाली के भारत दौरे के समय उनसे मिला था और उनसे सिखों के लिए अलग राज्य की मांग का समर्थन करने का आग्रह किया था।अब विधानसभा में बहस में अकालियों ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने उनको कमजोर करने के लिए अकालियों को भिंडरावाला व अन्य कट्टरपंथियों के समर्थक बताने का दुष्प्रचार किया। हालांकि उस समय अकालियों ने ही कट्टरपंथियों का विरोध करने की बजाय उनके कृत्यों पर पंथ का लबादा ओढ़ाया था। अगर यह कांग्रेस रचित षडंत्र था तो उस समय अकालियों ने इसका भंडाफोड़ क्यों नहीं किया? वे मौन धारण कर राज्य की जनता को लुटता-पिटता क्यों देखते रहे? आतंकवाद समाप्त होने के बाद भी अकालियों के नेतृत्व वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने आपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मारे गए आतंकवादी सरगना भिंडरावाला को शहीद का दर्जा क्यों दिया?हालांकि अकाली दल (बादल) ने अब सार्थक और व्यापक सोच का परिचय दिया है। परन्तु क्या इससे उन बहनों की सूनी मांग में फिर से सिंदूर भरा जा सकता है, जो आतंकवाद के दौर में विधवा हो गईं थीं? या उन बच्चों का बचपन दोबारा लौटाया जा सकता है, जिन्हें आतंकवादियों ने अनाथ कर दिया था? राज्य में अपार जनहानि के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिख समाज की भी छवि धूमिल हुई थी। वर्तमान में पश्चिमी देशों में उन्हें शक की दृष्टि से देखे जाने के पीछे एक कारण खालिस्तानी आतंकवाद भी है। इसके अलावा आतंकवाद के कारण राज्य की प्रगति पर जो बुरा असर पड़ा, उसका तो आकलन भी नहीं किया जा सकता।NEWS
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