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भूखे सोने को मजबूर हैं ग्रामीणडा.रवीन्द्र अग्रवालहाह ही में जारी की गई राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वे संगठन की रपट ग्रामीण भारत और शहरी “इण्डिया” के बीच की खाई को तो उजागर करती ही है साथ ही पिछले कई वर्षों से किए जा रहे सरकारी दावों की खामियों को भी उजागर करती है। इस रपट के अनुसार गांवों में प्रति व्यक्ति खर्च जहां मात्र 554 रुपए प्रतिमाह है वहीं शहरों में इसका लगभग दोगुना 1022 रुपए है। इस पर भी गांवों में लगभग 13 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो दैनिक खर्चे के लिए दस रुपए रोज भी नहीं जुटा पाते। स्पष्ट है कि शहर की चकाचौंध से दूर गांवों की असली स्थिति क्या है। और यह सब तब है जबकि आजादी के बाद से ही गांवों के लिए बहुत कुछ करने के दावे किए जाते रहे हैं। आज भी संसद में और संसद के बाहर नेता स्वयं को गांव वालों का हिमायती सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। यही नहीं, स्थिति इतनी भयावह है कि एक हजार में से तीन परिवारों को भूखे सोने को मजबूर होना पड़ता है। इसके साथ ही, प्रति एक हजार में 13 परिवार ऐसे भी हैं जिन्हें कभी पर्याप्त भोजन मिल पाता है तो कभी पानी पीकर ही सोना पड़ता है। यही नहीं, जो लोग यह कहते हैं कि उन्हें भर पेट भोजन मिलता है, उनका भोजन पर होने वाला खर्च शहर वालों के मुकाबले लगभग आधा है। शहर के लोग जहां अपने भोजन पर प्रति व्यक्ति 429 रुपए प्रतिमाह खर्च करते हैं, वहीं गांव में यह आंकड़ा मात्र 299 रुपए का है।यह स्थिति है उन गांवा वालों की जो गांव देश का पेट भरते हैं और सरकार की मानें तो इन गांव वालों द्वारा पैदा किया गया अनाज कई देशों को निर्यात भी किया जाता है। अनाज निर्यात के आंकड़ों से उत्साहित सरकार का दावा है कि भारत में अनाज का उत्पादन जरूरत से ज्यादा है। अर्थात खाद्यान्न के अतिरेक की समस्या उत्पन्न हो गई है और यह अनाज इतना ज्यादा है कि इसे रखने के लिए गोदाम नहीं है।विडम्बना है कि अनाज रखने के लिए गोदाम नहीं है और दूसरी तरफ गांवों में एक हजार में से 16 परिवारों को सालभर दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। अर्थात यदि इन परिवारों को दो वक्त की रोटी मिल जाए तो गोदामों में रखने के लिए अनाज न बचे। यह ध्यान देने की बात है कि 16 परिवार तब भूखे रहते हैं जब केन्द्र और राज्य सरकारें कहीं सस्ते में तो कहीं मुफ्त में अनाज बांटने का दावा करती हैं। अगर करोड़ों लोग भूखे सोने को मजबूर हैं तो जाहिर है खामी सरकारी दावों और नीतियों में है। क्या सरकार अपनी नीतियों को बदलेगी?NEWS
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