|
अंक-संदर्भ -8 अगस्त, 2004पञ्चांगसंवत् 2061 वि., वार ई. सन् 2004भाद्रपद कृष्ण 6 रवि 5 सितम्बर,, ,, 7 सोम 6 सितम्बर,, ,, 8 मंगल 7 सितम्बर(श्रीकृष्ण जन्माष्टमी),, ,, 9 बुध 8 सितम्बर,, ,, 10 गुरु 9 सितम्बर,, ,, 11 शुक्र 10 सितम्बर(जया एकादशी व्रत),, ,, 12 शनि 11 सितम्बर(शनि प्रदोष)मरियम और इशरत में भेद?आवरण कथा के अंतर्गत मरियम बेगम पर हुए अत्याचार एवं दुराचार का समाचार पढ़कर दिल दहल गया। पर प्रदेश की मुफ्ती मोहम्मद सईद सरकार खामोश है। चूंकि यह घटना किसी भाजपा शासित प्रदेश में नहीं हुई और न ही उस घटना में संघ परिवार को कहीं से जोड़ा जा सकता है, शायद इसी कारण देश का कथित सेकुलर मीडिया तथा मानवाधिकार आयोग भी इसकी अनदेखी कर रहा है। इशरत जहां के लिए आंसू बहाने तथा आर्थिक सहायता हेतु दौड़ने वाली सेकुलर जमात ने इस विषय पर बोलना तक उचित नहीं समझा। सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात की बिल्किस बानो मामले में जैसी तत्परता दिखाई है, क्या वह कश्मीर की मरियम बेगम के मामले में भी वैसी ही तत्परता दिखाकर उचित कार्रवाई कर पाएगा? अथवा ये सब धारा 370 को बनाए रखने की जिद के कारण केवल मूकदर्शक बने रहेंगे?परमानंद रेड्डीडी-19, सेक्टर-1देवेन्द्रनगर, रायपुर (छत्तीसगढ़)”मरियम बेगम का यह हाल क्यों हुआ?” रपट चौंकाने वाली कम, मानवीय संवेदनाओं को आहत कर देने वाली अधिक थी। क्या ये आतंकवादी इन्हीं घटनाओं के आधार पर जिहाद को परिभाषित करते हैं? जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद को आजादी की लड़ाई कहने वालों को क्या ऐसे वहशीपन पर जरा-सी भी शर्म महसूस नहीं होती? आज कश्मीर की घाटी में केशर नहीं, बारूद की फसल उगाई जा रही है और इस फसल को मरियम जैसी अबलाओं के खून से सींचा जा रहा है। कभी शान्त और निर्मल डल झील में तैरते शिकारों की पतवारों की छप-छाप एवं अमरनाथ की गुफा से आती हर-हर महादेव की आवाजें घाटी में साम्प्रदायिक एकता की शानदार मिसाल थीं। आज वही घाटी कश्मीरी हिन्दुओं के लिए “परायी जमीन” एवं मासूमों की चीखों और महिलाओं पर ढाए जाने वाले जुल्मों की कारुणिक वेदना से चोटिल हो चुकी है।-मवेन्द्र कुमार गोयल, प्रधानाध्यापकरा.मा.वि. धारासर, बाड़मेर (राजस्थान)पुरस्कृत पत्रतानाशाही आदेशजम्मू-कश्मीर के निवासी यह मानते हैं कि बाबा अमरनाथ यात्रा और माता वैष्णोदेवी यात्रा से जम्मू-कश्मीर को बहुत अधिक आमदनी होती है और इससे यहां के नागरिकों की आर्थिक स्थिति सुधरती है। पहलगांव और बालटाल क्षेत्र के मजदूर तो अमरनाथ यात्रा को वरदान मानते हैं और उनका कहना है कि दो महीने तक चलने वाली यह यात्रा उन्हें छह महीने की रोटी दे देती है। पर जम्मू-कश्मीर सरकार यह बताए कि वह यात्रियों के लिए क्या कर रही है? सच तो यह है कि यह यात्रा लंगर-सेवा करने वालों और सुरक्षा बलों के कारण ही सुचारु रूप से संपन्न हो रही है।जम्मू के मौलाना आजाद स्टेडियम में सभी यात्रियों को सुरक्षा के नाम पर एकत्र तो किया जाता है, पर वहां धूप और वर्षा से बचने के लिए लंगर के एक तम्बू के अलावा एक इंच भी जगह नहीं होती। सबसे बुरी स्थिति उस समय हो जाती है जब हजारों यात्री यहां पहुंचते हैं तो शौचालय और स्नान के लिए कोई समुचित व्यवस्था उपलब्ध नहीं होती।बालटाल से श्री अमरनाथ गुफा तक 16 किलोमीटर के रास्ते में एक भी स्थान ऐसा नहीं है जहां ये जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं हों। दूसरी ओर देश के अनेक भागों से लोग अपने वाहनों से पहलगांव तक पहुंचते हैं। लेकिन पहलगांव से चन्दनवाड़ी तक 16 किलोमीटर का रास्ता केवल कश्मीर की बसों और टैक्सियों से ही तय करने का तानाशाही आदेश है और 16 किलोमीटर के लिए 60 रुपए किराया लिया जाता है। यह यात्रियों को लूटने का तरीका है, जो राज्य सरकार डण्डे के जोर पर लागू करवा रही है। जम्मू-कश्मीर सरकार यह बताए कि श्री अमरनाथजी की यात्रा से उसे कुल कितनी आमदनी हो रही है और उसका कितना हिस्सा तीर्थयात्रियों को आवश्यक सुविधाएं देने के लिए खर्च किया जाता है? सच्चाई तो यह है कि समाजसेवियों द्वारा लंगर सेवा करना भी वहां की सरकार को पसन्द नहीं, क्योंकि इससे यात्री सरकारी लूट से बच जाते हैं।-लक्ष्मीकान्ता चावलाउपाध्यक्ष, भाजपा, पंजाब प्रदेश843/6, बाजार नरसिंह दास, अमृतसर (पंजाब)——————————————————————————–हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा।सं.केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार के गठन के बाद से जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की गतिविधियों में जो भारी वृद्धि हुई है, उस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। जम्मू-कश्मीर में शासन-प्रशासन नाम की कोई चीज शेष नहीं रही। वहां आयेदिन आतंकवादी हमलों में सुरक्षाबलों के जवानों की असमय मृत्यु हो रही है, जिन्हें सरकार “शहीद” कहकर केवल दु:ख प्रकट करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। इस सम्बन्ध में मानवाधिकार आयोग और कथित सेकुलर बुद्धिजीवियों की चुप्पी तिलमिला देने वाली होती है।-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)सबने भुलाया”कश्मीरी हिन्दुओं की घाटी में वापसी भुला ही दी” शीर्षक से एक छोटी-सी किन्तु महत्वपूर्ण रपट पढ़ी। पिछली सरकार भी इस सम्बंध में मौन धारण किए रही। कश्मीरी हिन्दुओं को हिम्मत बंधाकर योजनाबद्ध ढंग से वहां क्यों नहीं भेजा गया? संपादकीय से मुस्लिम लीग के केन्द्रीय मंत्री के कार्य-कलापों की जानकारी मिली।-प्रदीप सिंह राठौरमेडिकल कालेज, कानपुर (उ.प्र.)देशनिष्ठा”बाढ़ लाई तबाही, स्वयंसेवक लाए राहत” रपट पढ़कर जहां बाढ़ पीड़ितों के प्रति प्रशासन और राजनेताओं की संवेदनहीनता का परिचय मिला। वहीं प्राकृतिक आपदाओं और आकस्मिक दुर्घटनाओं से लोगों की रक्षा करने में जुटे रा.स्व.संघ के स्वयंसेवक प्रचार से दूर रहकर सेवा कार्यों में जुटे हैं। सीमा पर शत्रुओं के दांत खट्टे करने में जुटे जवानों की सहायता में भी संघ के स्वयंसेवकों ने सदैव आगे रहकर काम किया है। इन स्वयंसेवकों की राष्ट्रनिष्ठा एवं सेवा भावना पर हमें गर्व है।-चन्द्रकान्त यादवचांदीतारा, चन्दौली (उ.प्र.)गलत परम्पराजितेन्द्र तिवारी की रपट “धनपति सभा” तर्कसंगत एवं सारगर्भित लगी। केवल धन-बल की योग्यता के कारण संसद में पहुंचे पूंजीपति और फिल्मी सितारे शायद ही देश और जनसामान्य की समस्याओं के प्रति सजग और संवेदनशील हों। आखिर ऐसे सांसद देश और जनता का क्या भला कर पाएंगे? यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। इनके चुने जाने का सन्देश गलत है।-रवीन्द्र सैनी “चिन्तन”हरबर्टपुर, देहरादून (उत्तराञ्चल)आश्चर्य का विषय है कि संविधान की भावनाओं के विपरीत राजनीतिक दल धनपतियों एवं फिल्मी कलाकारों को राज्यसभा में भेज रहे हैं। राज्यसभा एवं लोकसभा जैसे सदन जनता की भावनाओं को प्रकट करने का माध्यम होते हैं, इसके विपरीत इन सदनों को धनपतियों का एक “क्लब” बनाया जा रहा है, जिससे इनकी महत्ता दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है।-सलिल स्वरूप आर्यद्वारिकेश शुगर इण्ड.लि.,द्वारिकेशनगर, बिजनौर (उ.प्र.)ऐसा हो पुरोहितविश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष श्री अशोक सिंहल का यह कहना कि “मन्दिर संस्कृति रक्षण के केन्द्र बनें”, हर हिन्दू की इच्छा का घोतक है। प्राचीनकाल में ऋषियों के आश्रम पठन-पाठन, धनुर्वेद, गोरक्षण, कृषि-ज्ञान और सामाजिक समरसता के केन्द्र हुआ करते थे। ऊंच-नीच, धनी-निर्धन का भेद नहीं था। आश्रम के गुरु विद्वान, निष्पक्ष, निष्कपट तथा लोभहीन होते थे। यदि इस प्रकार के गुरु (पुजारी या अर्चक) आज मन्दिर में हों तो उनका मान अवश्य होगा। आज अर्चकों की उपेक्षा की जाती है। यह कटु सत्य है। कारण? अधिकांश अर्चक विद्याविहीन, लोभी तथा चाटुकार देखे जाते हैं। पौरोहित्य उच्चकोटि का कर्म है, परन्तु तब जबकि पुरोहित विद्वान, शिक्षित, निष्पक्ष, समाजसेवी, विद्यादानी तथा समाज के प्रति जागरूक हो।-डा. सुरेन्द्र सिंह यादवसी. 134, ग्रेटर कैलाश-1, नई दिल्लीभ्रामक अन्तराल”सुनो कहानी” स्तम्भ में वीर हकीकत राय से सम्बंधित प्रेरणादायी घटना का बड़ा सुन्दर वर्णन किया गया है। इसके लिए साधुवाद! पर हकीकत राय की जन्म तिथि और बलिदान तिथि में भ्रामक अन्तराल है।-गिरीश चन्द्र चतुर्वेदीविष्णुनगर, कचहरी रोड, रायबरेली (उ.प्र.)हकीकत राय के बारे में अच्छी जानकारी मिली, पर उनके जन्म और मृत्यु के काल में 555 साल का अन्तर है। यह कैसे हो सकता है? कृपया सही जानकारी दें।-ज्योति स्वरूपकेशव कुंज, झण्डेवाला, नई दिल्लीनामवर जी की समस्यागवाक्ष में नामवर जी का प्रलाप पढ़ा। समालोचक श्री नामवर सिंह महाकवि तुलसी की राम-निष्ठा पर सन्देह करें, इसमें आश्चर्य नहीं। क्योंकि वे जिस चश्मे को लगाकर लेखन कार्य करते रहे हैं, उसमें उनसे अधिक अपेक्षा नहीं की जा सकती। किन्तु विनय-पत्रिका के सन्दर्भ में उनका यह मत उनके अल्पज्ञान को ही दर्शाता है।तुलसी ने विनय-पत्रिका क्यों लिखी, शायद वे यह भी नहीं जानते अथवा वैचारिक प्रतिबद्धता के बन्दी होकर ऐसा मत प्रकट कर रहे हैं। यह तुलसी एवं विनय पत्रिका के प्रति अन्याय तो है ही, इससे भी बढ़कर नामवर जी एक लेखक के धर्म से भटकते से जान पड़ते हैं। जैसे समस्त नदियों का गन्तव्य समुद्र होता है, वैसे ही विनय-पत्रिका में भी तुलसी की समस्त देवी-देवताओं की स्तुति का एकमात्र लक्ष्य रामभक्ति ही है। रामभक्ति में दृढ़ता का वरदान वे सभी से मांगते हैं। तुलसी नामवर जी की तरह खण्डित दृष्टि से ग्रस्त नहीं थे, उनके लिए यत्किञ्चित दृश्यादृश्य राम का विस्तार था।-डा. रामदयाल गर्वित40, ब्राह्मपुरी, सवाई माधोपुर (राज.)भूलवश वीर बालक हकीकत राय का जन्म वर्ष सन् 1179 छपा है। उनका जन्म सन् 1719 में हुआ था और वे 23 फरवरी, 1734 को शहीद हुए थे। इस तथ्यात्मक अशुद्धि के लिए खेद है। -सं.असमंजसएक बार फिर से घटा, ई.पी.एफ. पर ब्याजश्रमिक संगठन हो रहे, हैं इससे नाराज।हैं इससे नाराज, श्रमिक के धन का शोषणकरने ना हम देंगे, सुन लो श्री मनमोहन।हैं “प्रशांत” कम्युनिस्ट बड़े ही असमंजस मेंप्रीति निभाएं मैडम से या तोड़े कसमें।।-प्रशांतसूक्ष्मिकादागी मंत्रीदागी मसले पर शुरू,आर-पार की जंग।बीजेपी के दांव से, कांग्रेस है दंग।।कांग्रेस है दंग, छिपाये घूमे चेहरा।उमा भारती शीश बंधा बलिदानी सेहरा।।यूपीए में नहीं अभी नैतिकता जागी।सीने से चिपकाए घूमती मंत्री दागी।।-रामनारायण “पर्यटक”साहित्य मन्दिर, ई. 5321, सेक्टर-12, राजाजीपुरम्, लखनऊ (उ.प्र.)16
टिप्पणियाँ