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नागपुर – 25 मई, 1983सावरकर “भक्त” शिन्देडर गए दिल्ली के “सावरकर-शत्रुओं” से?क्यों नहीं पोर्ट ब्लेयर में सावरकर पट्टिका दुबारा लगाने और सरकार सेमाफी मांगने की मांग की?समारोह में मंच पर अन्य लोगों के साथ हैं श्री बाला साहब देवरस व श्री सुशील कुमार शिंदेमहान विभूतियां किसी जाति या पंथ विशेष की नहीं होतीं। वे तो राष्ट्र की सम्पत्ति होती हैं।” नागपुर के शंकरनगर चौक पर 25 मई, 1983 को सावरकर प्रतिमा अनावरण समारोह में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे ने उक्त विचार व्यक्त किए थे। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 9 फुट ऊंची पूर्णाकृति प्रतिमा का अनावरण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस के करकमलों द्वारा किया गया था। महाराष्ट्र के भूतपूर्व कृषिमंत्री एवं विदर्भ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भगवंत राव गायकवाड़ की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए थे महाराष्ट्र के तत्कालीन वित्तमंत्री और आज के मुख्यमंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे।वीर सावरकर के विरुद्ध टिप्पणी करने वाले मणिशंकर”62 में चीन के लिए चंदाइकट्ठा कर रहे थेमणिशंकर ने कहा-यह सब गलतवीर सावरकर के बारे में उल्टा-सीधा बोलने वाले केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर का इतिहास ही कुछ ऐसा रहा है कि वे सीधी-सच्ची बातों को “झूठ का पुलिंदा” तक सहज भाव से कह देते हैं। उनकी पृष्ठभूमि कम्युनिज्म की रही है। वे छात्र जीवन में न केवल सक्रिय कम्युनिस्ट कार्यकर्ता रहे, बल्कि 1962 के युद्ध में चीन के कम्युनिस्टों की सहायता के लिए विदेशी धरती पर चंदा भी जुटाया था। उनमें “देश के प्रति मोह” के बारे में यह रहस्योद्घाटन किया है पत्रकार धीरेन भगत ने अपनी पुस्तक “द कंटेप्रेरी कंजरवेटिव” में।बात 1960 की है। “भारतवासी जब 1962 के युद्ध में भारतीय सेना के सहयोग के लिए पैसा, जेवर-यहां तक कि स्वेटर भी-आदि दान कर रहे थे, कम्युनिस्ट पार्टी की कैम्ब्रिाज इकाई के सचिव के रूप में मणिशंकर अय्यर चीन के सैनिकों के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे थे। अय्यर को तब राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति के खतरा समझा गया था और पुलिस ने उनके विरुद्ध कई फाइलें बनाई हुई थीं।”शिव सेना प्रमुख श्री बाल ठाकरे ने पिछले दिनों अपने एक कथन में इन बातों का उल्लेख करते हुए कहा, “अपने राजनीतिक सूत्रों और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति की दखल के बूते अय्यर परिवार भारतीय विदेश सेवा में मणि के प्रवेश के रास्ते साफ कर पाया था।”श्री ठाकरे ने कहा, “कोई और देश होता तो इस तरह की पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को सीधे जेल भेज दिया जाता। पर भारत में मणिशंकर भारतीय विदेश सेवा में आने का दुस्साहस कर पाए।”उधर 23 अगस्त को एक बयान जारी करके मणिशंकर अय्यर ने इस बात का खण्डन किया कि उन्होंने किसी भी मौके पर चीनी सेना के लिए चंदा इकट्ठा किया था। श्री अय्यर ने अपने बयान में कहा कि उनके खिलाफ इस तरह के आरोप पहले भी लगाए गए थे, लेकिन 13वीं लोकसभा में उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि 1962 युद्ध के दौरान उन्होंने चीन का पक्ष नहीं लिया था और उस दौरान चीनी सेना के लिए चंदा इकट्ठा करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।अपने भाषण में श्री शिंदे ने एक संस्मरण भी सुनाया। उन्होंने कहा, “राजनीति में आने से पहले जब मैं महाराष्ट्र सरकार के अधीन पुलिस विभाग में काम करता था, तब सावरकर जी की अंतिम यात्रा में खुफिया विभाग के एक पुलिस अधिकारी के नाते गया था।” वैसे देखा जाए तो खुफिया विभाग में काम करने वाले व्यक्ति को किसी विशिष्टजन के प्रति सत्ताधीशों की राय के बारे में जानकारी तो रहती ही है। उस जमाने में कांग्रेस का एकछत्र राज था। गांधीजी की हत्या के सिलसिले में चले अभियोग में अदालत ने सावरकर जी को निर्दोष बरी किया था। आज के कांग्रेसी नेताओं के कथन के अनुसार अगर सावरकर जी पर गांधी जी की हत्या का दोष होता तो इसकी आंतरिक खबर शिंदे जी जैसे राजनीतिक रूप से सजग खुफिया अधिकारी को तो रही ही होगी। और तब शायद शिंदे जी इस कार्यक्रम का निमंत्रण अस्वीकार कर देते। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इतना ही नहीं, जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी कांग्रेसी नेता महात्मा गांधी की हत्या का दोषी कहते आए हैं, उस संगठन के सरसंघचालक के साथ शिंदे जी मंच पर उपस्थित थे।श्री शिंदे ने अपने भाषण में कहा था, “स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी के राजनीतिक विचारों को लेकर मतभेद हो सकते हैं, किन्तु समाज सुधार के उनके कामों के बारे में मतभेद नहीं हो सकते। स्वतांत्र्यवीर सावरकर जी स्वतंत्रता के पुजारी थे। समाज में लिप्त अंधश्रद्धा, वर्णभेद, जातिभेद जैसे सामाजिक दोषों को दूर करने का उन्होंने महती कार्य किया था।”कार्यक्रम में श्री शिंदे की इसी बात को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री बाला साहब देवरस ने कहा था, “आजकल हिन्दुत्व की बात करने वालों को प्रतिगामी एवं सनातनी मानने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। किन्तु सावरकर जी की हिन्दुत्वनिष्ठा सनातनी अथवा प्रतिगामी नहीं थी। कुप्रथा, अंधश्रद्धा जैसे सामाजिक दोषों पर वे हमेशा प्रहार करते रहे। वे प्रगतिशील हिन्दुत्वनिष्ठ थे। हिन्दू होने का अभिमान उनके विचारसूत्र में हमेशा रहता था, क्योंकि वे खुद को एक सच्चा हिन्दुस्थानी और मातृभूमि का सच्चा पुत्र मानते थे।”प्रतिमा स्थापना की पृष्ठभूमिस्वातंत्र्यवीर सावरकर की सबसे बड़ी पूर्णाकृति प्रतिमा नागपुर में कैसे स्थापित हुई, इसका इतिहास जुड़ा है एक कांग्रेसी सावरकर भक्त से। 28 मई, 1983 को मृत्युंजयी सावरकर की जन्मशती भारतभर में मनायी गई जाने वाली थी। इस के उपलक्ष्य में नागपुर में स्वातंत्र्यवीर सावरकर की भव्य प्रतिमा का अनावरण हो, ऐसा संकल्प स्वातंत्र्यवीर सावरकर प्रतिमा नागरी समिति ने 1978 में किया था। इस समिति के अध्यक्ष थे महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता एवं पूर्व कृषिमंत्री भाई भगवंतराव गायकवाड़। अ.भा. हिन्दू महासभा के अध्यक्ष श्री विक्रम सावरकर की प्रेरणा से इस समिति का कार्यभार जब गायकवाड़ जी पर आया, उस समय वे नागपुर के महापौर थे। अपने कार्यकाल में उन्होंने इस प्रतिमा के लिए नागपुर में शंकरनगर चौक का स्थान निश्चित किया और समाज के सभी विचारधारा के लोगों की सहायता लेकर निधि संकलित की। इस कार्य को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने श्री प्रसाद सोवानी को कोषाध्यक्ष बनाया। सावरकर भक्त डा. वि.स. जोग को महासचिव का पद दिया। चित्रकला महाविद्यालय के अध्यापक प्रो. सुधाकर बेलेकर को प्रतिमा निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था। (तरुण भारत, नागपुर 26.5.1983 से साभार)21
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