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दीनानाथ मिश्रनीची जाती चापलूसी रेखा19 अगस्त को स्व. राजीव गांधी के 60वें जन्मदिवस पर आयोजित समारोह में सोनिया गांधी के नाती, प्रियंका गांधी के पुत्र रेहान को नमस्कार करते हुए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह। साथ में हैं, प्रियंका गांधी और उनके पति राबर्ट वढेरा।पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीस ने नाहक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर उंगली उठा दी। मैंने जब मनमोहन सिंह को हाथ जोड़कर विनम्रतम मुद्रा में छोटे से शिशु से मुखातिब देखा था तब सोचा था यह बच्चा कौन है, जिसे सौ करोड़ के देश का प्रधानमंत्री प्रमाण कर रहा है। पता चला कि वह बालक मोतीलाल नेहरू की पौत्री इन्दिरा गांधी की पौत्री का बेटा है। नाम है, रेहान। मैं भी चकित तो हुआ था। जार्ज फर्नांडीस ने इस पर कड़ी टिप्पणियां कर दीं। वह कह रहे थे कि देश में गांव केन्द्रित व्यवस्था होगी तब ही विकास होगा। उन्हें नेहरू-गांधी खानदान केन्द्रित विकास पसन्द नहीं है। प्रधानमंत्री का पद देश का सर्वशक्तिमान और सबसे शानदार पद है। और यहां देश का सारा आन-मान-शान इस शिशु के चरणों में प्रणाम अर्पित कर रहा था। प्यार जताने के और भी तरीके हो सकते थे। गाल छूकर प्यार जताया जा सकता था। लेकिन गाल छूने से चापलूसी नहीं होती। मनमोहन सिंह अच्छी तरह जानते थे कि वह सैकड़ों कैमरों और अखबार वालों की नजरों में हैं। रेहान के श्रीचरणों में नमन कर वह देश को एक संदेश देना चाहते थे। नेहरू-गांधी खानदान की अगली पीढ़ी के आगमन की। अगर वह ऐसा न करते तो रेहान की फोटो भले ही छपी होती मगर उस पर कोई ध्यान देता।चापलूसी नेहरू-गांधी खानदान की अनिवार्य खुराक है। चापलूसी नेहरू जी को भी पसंद थी। उनकी बेटी को तो बेहद पसंद थी। उनके जमाने में कांग्रेस के अध्यक्ष थे देवकांत बरूआ। उन्होंने अंग्रेजी में कहा था-इन्दिरा इज इण्डिया, इण्डिया इज इन्दिरा। अर्थात् इन्दिरा भारत है और भारत ही इन्दिरा है। अब यह दोनों पात्र चले गए। कायदे से भारत को भी खत्म हो जाना चाहिए था। लेकिन भारत बेशर्मी से बना हुआ है। कदाचित प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने रेहान के श्रीचरणों में प्रणाम अर्पित कर यह साबित करना चाहा होगा कि रेहान के रूप में इन्दिरा गांधी ही मौजूद हैं और वही असली भावी भारत हैं। और इसीलिए भारत की वर्तमान पगड़ी ने प्रणाम किया होगा। मुझे शक है कि आगे से जब-जब रेहान सार्वजनिक अवसरों पर दिखेंगे तब-तब कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता डा. मनमोहन सिंह की चापलूसी रेखा को पार करने की होड़ा-होड़ कर रहे होंगे। कोई आदाब करेगा, कोई नमस्कारम करेगा, कोई सत् श्री अकाल करेगा। मगर कांग्रेस जन अब रेहान की उपेक्षा नहीं कर पाएंगे। पर यह तो कांग्रेस की परम्परा ही रही है। कांग्रेस के एक नामी नेता थे। संसद के द्वार क्रमांक चार पर इंदिरा गांधी के आगमन के निर्धारित समय पर प्रतीक्षा करते रहते थे। आते ही गुलाब का एक खिलखिलाता फूल उन्हें देते थे। इस कठिन तपस्या के बाद उन्हें मंत्री भी बनाया गया। बाद में वह राज्यपाल भी रहे। सोनिया गांधी के संसद भवन आगमन के समय भी कुछ सांसद अपना यह कर्तव्य समझते हैं कि वे आगवानी करते नजर आएं।इस खानदान की हर पीढ़ी में चापलूसी की एक मण्डली रही है। अलबत्ता नरसिंह श्रीराव के शासन में इसमें कुछ कमी आई थी। राव चापलूसीपरस्त नहीं हो सकते थे। क्योंकि वह इस खानदान के थे ही नहीं। यही कारण है कि उनकी चापलूसी कम और मुखर विरोध अधिक होता था। स्वयं सोनिया गांधी भी इंदिरा गांधी की चापलूसी आज तक कर रही हैं। किसी की बोलचाल, वेषभूषा, चाल-ढाल अपनाना भी एक बहुत बारीक किस्म की चापलूसी मानी जाती है। सच पूछा जाए तो डा. मनमोहन सिंह ने जानबूझकर यह चापलूसी नहीं की। यह तो पिछले डेढ़ दशक में कांग्रेस की सोहबत का असर है। पहले वाली चापलूसी तो नौकरशाही वाली व्यवहार कुशलता थी। राजनीतिक चापलूसी की कला आज उनका राजधर्म बन गया है। इसी राजधर्म पर चलकर वह अपने पद को बनाए रख सकते हैं। जिस भी दिन खानदान की भृकुटी तन गई उस दिन इनके पद की खैरियत नहीं। इसीलिए मनमोहन सिंह ने चापलूसी की नयी-नयी शैलियों का आविष्कार किया है। सोनिया प्रामाणिक लालची महिला हैं। अगर मनमोहन सिंह आर्थिक चापलूसी पर उतर आए तो उनकी ईमानदारी का खाता खल्लास हो जाएगा।13
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