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इस बार अभूतपूर्व उत्साह दिखा अमरनाथ यात्रा मेंसब बाबा की किरपा!-भागीरथ चौधरीपिस्सूटाप पर शिव भक्तों का जयकारापौशपत्री में भण्डारे के बाहर पंक्तिबद्ध तीर्थयात्रीपवित्र गुफा और नीचे तम्बुओं का छोटा सा नगरयात्रा मार्ग में मुस्तैद सैनिकखुदा आपकी यात्रा को कबूल फरमाएं-मुस्लिम समुदाय की ओर से रास्ते में कहीं-कहीं ऐसे बैनर भी दिखेदुर्गम पहाड़ी पगडण्डियों पर शेषनाग से महागणेश टाप की तरफ बढ़ते यात्रीसभी छायाचित्र : भागीरथ चौधरीकश्मीर धरती का स्वर्ग है और अमरनाथ यात्रा इस स्वर्ग में प्रतिवर्ष होने वाला एक विशेष आयोजन। इस अनोखी एवं ऐतिहासिक यात्रा के प्रति देश का अधिकांश मीडिया आंखें मूंदे रहता है, तभी तो जम्मू, पंजाब और दिल्ली में बस थोड़े-बहुत समाचार ही इसके बारे में छपते हैं। यही कारण है कि देशवासियों को लगभग दो महीने चलने वाले इस आयोजन के बारे में सामान्य जानकारी भी नहीं मिलती। फिर भी देश के सभी क्षेत्रों से बाबा भोलेनाथ के दर्शनार्थ यात्री आते हैं।इस बार चार लाख से अधिक यात्री बाबा अमरनाथ की पवित्र शिवलिंग के दर्शन करने पहुंचे। पिछले कई वर्षों से अमरनाथ यात्रा करने की इच्छा थी, जो इस बार बाबा की किरपा से पूरी हुई। थार मरुस्थल की धोरां-धरती के हम लोगों को कश्मीर की वादियों में सब कुछ अलौकिक लगा। जिस धरती पर 49 शिवधाम, 60 विष्णुधाम, 3 ब्राह्मधाम, 22 शक्तिधाम, 700 नागाधाम एवं लाखों अन्य तीर्थ हैं और प्रकृति ने अपने सभी स्वरूपों की छटा बिखेर रखी है, ऐसी धरती पर भोलेनाथ की लीलाओं की कहानियां सुनकर आत्मविभोर हो जाना स्वाभाविक ही था-“धन-धन भोलानाथ तुम्हारेकौड़ी नहीं खजाने में,तीन लोक बस्ती में बसाये,आप बसे वीराने में।”इस बार यात्रा की अवधि को लेकर जम्मू-कश्मीर सरकार और धार्मिक संगठनों के मध्य काफी विवाद चला। आखिर 15 जुलाई से 30 अगस्त तक यात्रा का समय तय हुआ। हालांकि भोलेनाथ के भक्तों ने सरकारी सुरक्षा एवं व्यवस्था की चिन्ता किए बिना जून में ही यात्रा प्रारंभ कर दी थी। ढाई महीने तक कश्मीर की वादियों में भोलेनाथ के जयकारे गूंजे। किसी दिन 15 हजार से अधिक यात्री पवित्र गुफा तक पहुंचे तो कभी दो-तीन हजार भी। भक्तों की बढ़ती भीड़ से गुफा का तापमान बढ़ गया था अत: हिमलिंग के दर्शन 30 जुलाई तक ही हुए। लेकिन यात्रियों का तांता 30 अगस्त तक लगा रहा। यात्रा में एक वर्ष के बच्चे से लेकर 80 वर्ष तक के वृद्ध दिखाई दिये। बैसाखी के सहारे चलते, घुटनों के बल रेंगते यात्री भी मिले। कभी वर्षा की बौछारें, कभी शीत लहर के थपेड़े, कभी पगडण्डियों में खच्चरों के खुरों से उछलते कीचड़ के छींटे। फिर भी यात्रियों में गुफा तक पहुंचने का उत्साह था। अधिकांश यात्रियों के चेहरे देखकर लगता था कि शरीर तो जवाब दे रहा है, लेकिन बाबा अमरनाथ की अदृश्य शक्ति उन्हें बढ़ाए चली जा रही है।यात्रा का मार्ग बहुत कठिन है। मार्ग तो क्या कहें, उबड़-खाबड़ पहाड़ों में दुर्गम पगडण्डियां मात्र हैं। रास्ते को सुगम बनाने के लिए राज्य सरकार का कहीं कोई प्रयास दिखाई नहीं देता। सेना और भण्डारे वालों के भरोसे ही यात्रा होती है। इनके योगदान का वर्णन करना तनिक असम्भव है। यात्रा मार्ग में कदम-कदम पर तैनात सेना के जवान यात्रियों का मनोबल बढ़ाते हैं, हर प्रकार का सहयोग करते हैं। जहां पैदल पहुंचना कठिन है, ऐसे स्थानों पर भण्डारे वाले आग्रहपूर्वक भोजन करवाते हैं। कैसे व्यवस्था करते होंगे, कितने कार्यकर्ता जुटते होंगे? छोटे से छोटे भण्डारे का खर्चा भी 10-15 लाख रु. से ऊपर जाता है। श्री शिव सेवक, दिल्ली का भण्डारा पूरे यात्रा मार्ग का सबसे भव्य एवं व्यवस्थित भण्डारा था। यात्रा सम्पूर्ण करने के लिए पहाड़ों में कम से कम 50 किलोमीटर पैदल चलना ही पड़ता है। यही इस यात्रा की सबसे बड़ी चुनौती है। रहने, खाने-पीने और चिकित्सा व्यवस्था की कोई कमी नहीं।यात्रा के प्रति राज्य सरकार की अनदेखी दृष्टिगोचर होती है। लोवरमुण्डा चौकी पर 5वीं में पढ़ने वाला आफताब यात्री वाहनों में चने, मखाने, सींगदाने आदि के पैकेट बेच रहा था। पूछने पर बताया-“साहब, अच्छी कमाई कर रहा हूं।” पिस्सू टाप पर कच्चा घर बनाकर बैठे जिनायज शाह ने बताया- तीन सौ किलोमीटर दूर चाना गांव से खच्चर लेकर आया हूं, इस बार अच्छी कमाई हो रही है। 40 हजार तक कमा लूंगा। 12वीं में पढ़ने वाला अल्ताफ हुसैन बारामूला से आकर पहलगांव में रहने वाले अपने मामा के साथ पांच दिन से पिट्ठू का काम कर रहा था। ये तो सैकड़ों किलोमीटर दूर से आए लोगों के कुछ उदाहरण हैं। स्थानीय लोगों ने तो दिन-रात एक कर रखा था। यहां लगभग सम्पूर्ण आबादी मुसलमान है। अधिकांश गरीब व अशिक्षित हैं, आतंकवाद से परेशान हो चुके हैं। अब शान्ति चाहते हैं, देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों से पूर्व की भांति पैसा कमाना चाहते हैं।पवित्र गुफा यात्रियों को दो किलोमीटर दूर से ही दिखाई दे जाती है। 12,730 फुट की ऊंचाई पर विशाल पहाड़ के अन्दर 60 फुट चौड़ी, 30 फुट लम्बी, 15 फुट ऊंची अमरनाथ गुफा दूर से मनोरम एवं आकर्षक लगती है। यहां कोई मानव निर्मित मंदिर नहीं है, सिर्फ प्रकृति द्वारा निर्मित गुफा है। गुफा के नीचे अमरगंगा का प्रवाह है, जिसके किनारे दूर से ही तम्बुओं के दो छोटे सुन्दर नगर बसे दिखाई दे जाते हैं। गुफा जाने वाले संकरे रास्ते के दोनों ओर प्रसाद व पूजा सामग्री की दुकानों की लम्बी कतारें हैं। इस संकरी जगह में ही भण्डारे, लंगर तथा पुलिस व सेना वालों का पड़ाव है। गुफा के पास 3-4 हेलिपेड भी बना रखे हैं। बालटाल से 9000 रुपए में हेलिकाप्टर यात्रियों को लाता- ले जाता है। चमत्कारिक हिमलिंग अस्थाई होता है, उसी प्रकार यहां की सभी व्यवस्थाएं भी अस्थाई हैं। रक्षा बन्धन के बाद यहां आठ-दस महीने सब कुछ वीरान और बर्फ से आच्छादित पहाड़ ही होते हैं।गुफा तक जाने-आने के दो रास्ते हैं। जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अनंतनाग से पहलगांव तक सभी प्रकार के वाहन जाते हैं। पहलगांव से 16 किमी. चन्दनवाड़ी तक स्थानीय लोगों की छोटी गाड़ियां जाती हैं। चन्दनवाड़ी से शेषनाग, पंचतरणी होते हुए गुफा तक 32 किमी. तक का पैदल रास्ता है। दूसरा रास्ता श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग से निकलता है, जिसका आधार स्थान बालटाल है। बालटाल से गुफा तक 16 किमी. बहुत ही कठिन पैदल मार्ग है।कैलाश मानसरोवर के बाद भारतवर्ष की सबसे रोमांचक अमरनाथ यात्रा की ओर सरकार को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। सरकार ने जम्मू-कश्मीर बैंक के माध्यम से पंजीकरण की जो प्रक्रिया प्रारंभ की है, वह बहुत ही अव्यावहारिक है। यह बैंक देश में बहुत कम स्थानों पर है, दूसरा पंजीकरण के बाद यात्रा की जो तिथि मिलती है, उसमें रेल का आरक्षण मिलना कठिन रहता है। सरकार को गम्भीरता से सभी प्रकार की व्यवस्थाओं पर ध्यान देना चाहिए। अन्यथा बाबा क किरपा तो है ही।10
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