दास्ताने इशरत जहां और साथी"लाला" का काम बाद में, फिलहाल"मुबारक" का "काम" "मायके" में कर दो"-दिल्ली ब
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दास्ताने इशरत जहां और साथी"लाला" का काम बाद में, फिलहाल"मुबारक" का "काम" "मायके" में कर दो"-दिल्ली ब

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Apr 7, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Apr 2004 00:00:00

दास्ताने इशरत जहां और साथी”लाला” का काम बाद में, फिलहाल”मुबारक” का “काम” “मायके” में कर दो”-दिल्ली ब्यूरोआतंकवादियों से बरामद हथियार पुलिस से मुठभेड़ के बाद अमदाबाद में मारी गयी इशरत जहांइशरत जहां और उसके साथियों का केन्द्रीय गुप्तचर विभाग पिछले 6 महीने से पीछा कर रहा था और उसके तमाम टेलीफोन तथा आने जाने और ठहरने की जगहों पर निगरानी रखी जा रही थी। उसी जानकारी के आधार पर पता चला कि वे 15 जून को गांधीनगर आने वाले हैं, जहां वे नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधेंगे। इस सूचना के आधार पर गुजरात पुलिस की अपराध शाखा ने 14-15 जून की रात से ही अमदाबाद में प्रवेश के सभी रास्तों पर जबरदस्त नाकेबंदी कर ली थी। 15 जून की तड़के उन्हें एमएच-02 जेए-4786 नम्बर की नीली इण्डिका दिखी तो उन्होंने उसका पीछा किया गाड़ी से उन पर गोलियां चलीं और जवाबी कार्रवाई में वे मारे गए।इशरत जहां और उसके साथियों से मिला सामानएक ए.के. 56 रायफलतीन मैगजीन (पिस्तौल की गोलियों का चक्र)दो 9 एम.एम. मैगजीनए.के.-56 रायफल के 171 कारतूसपिस्तौल के कारतूस-6एक सेटेलाइट फोनदो मोबाइल फोन2,06,000 रुपए नकद25 इराकी दीनार300 भेसा (ओमान मुद्रा)लगभग 15-किलोग्राम विस्फोटक30 सूखे नारियल3 घड़ियांदूरभाष नं. एवं हिसाब-किताब की डायरीसंकेत भाषा में लिखी गई जानकारीइण्डिका कारआतंकवादियों की गुप्त भाषालालकृष्ण आडवाणी (लाला),नरेन्द्र मोदी (मुबारक),प्रवीण तोगड़िया (टिंकू),विनय कटियार (कांटा)उमा भारती (बहन जी)। ए.के.-47 के लिए टी.वी., रिवाल्वर-पिस्टल के लिए वी.सी.आर., कारतूसों के लिए सीडी, विस्फोटकों के लिए कचरा (स्क्रैप) आडवाणी हेतु अमदाबाद के लिए “ससुराल” और दिल्ली “मायका”, और मोदी के लिए गांधीनगर “मायका”, आतंकवादी जहां रुकें उसके लिए दफ्तर और सेटेलाइट फोन के लिए “मुस्तफा”।गुप्तचर विभाग की सूचना के अनुसार लश्करे-तोइबा ने नेताओं को निशाना बनाना तय किया था और आपसी बातचीत के लिए उनके कूट नाम इस प्रकार रखे थे- 1. लालकृष्ण आडवाणी (लाला), 2. नरेन्द्र मोदी (मुबारक), 3. प्रवीण तोगड़िया (टिंकू) 4. विनय कटियार (कांटा) 5. उमा भारती (बहन जी)।लश्करे-तोइबा का मुख्य प्रशिक्षण केन्द्र पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में मुजफ्फराबाद शहर में है। भारत में आतंकवादी गतिविधियों का सरगना जकीउर्रहमान जम्मू-कश्मीर में होने वाली हरकतों का सरगना था जबकि गुजरांवाला (पाकिस्तान) का रहने वाला मुजम्मिल ऊर्फ तारिक ही भारत में नाम बदलकर आता रहता था तथा दुबई में उसने अपना उप केन्द्र खोला हुआ था। अमदाबाद में मारे गए आतंकवादी मुजम्मिल की देखरेख में काम कर रहे थे।उसकी योजना के अनुसार दुबई में काम कर रहे जावेद मोहम्मद शेख ने फिलिस्तीनी कम्पनी से वायरमैन की अपनी नौकरी छोड़ी और दिसम्बर 2002 में भारत आ गया। इसके पहले उसे गुजरात दंगों की अनेक फिल्में दिखाकर हिन्दुओं से बदला लेने के लिए कट्टर बना लिया गया था। भारत लौटकर जावेद पुणे, मुम्बई, ठाणे, लखनऊ, इब्राहिमपुर, फैजाबाद, दिल्ली, सूरत और अमदाबाद का प्रवास कर लश्करे-तोइबा का तानाबाना मजबूत करता रहा। 29 मार्च, 2004 को जावेद प्रणेश कुमार पिल्लै के नाम से पासपोर्ट बनवाकर ओमान के शहर मसकट पहुंचा, जहां वह मुजम्मिल के साथ 10-12 दिन रहा। केरल निवासी प्रणेश ने पुणे की मुस्लिम लड़की से विवाह के चक्कर में इस्लाम मत स्वीकार कर लिया था।मसकट में मुजम्मिल ने जावेद को भरोसा दिलाया कि उस समय चुनाव के दौरान जब लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर आएंगे तो उनका काम वहीं तमाम कर देना चाहिए। इसके लिए जावेद की मदद हेतु पाकिस्तान से दो फिदायीन भेजे जाने का वायदा किया गया। इसके साथ ही जावेद को कुरान पर हाथ रखकर कसम खिलावाई गई, 80 हजार रुपए नकद और थुराया कम्पनी का सेटेलाइट फोन दिया गया। उसे यह भी बताया गया कि ए.के.-47 के लिए टी.वी., रिवाल्वर-पिस्टल के लिए वी.सी.आर., कारतूसों के लिए सीडी, विस्फोटकों के लिए कचरा (स्क्रैप), अमदाबाद के लिए ससुराल, दिल्ली के लिए मायका, आतंकवादी जहां रुकेंगे उसके लिए दफ्तर और सेटेलाइट फोन के लिए मुस्तफा के कूट नामों से जाना जाएगा।जब जावेद भारत पहुंचा तो 10 दिन बाद ही चुनाव होने वाले थे, लेकिन पाकिस्तान से फिदायीन समय पर नहीं पहुंचे इसलिए जावेद को संदेशा मिला कि “लाला” का “मायके” में ही “काम” करेंगे, फिलहाल “मुबारक” का “काम” कर दो। इसके पहले मुजम्मिल ने जावेद को बताया था, “बाबरी मस्जिद की शहीदी के लिए आडवाणी जिम्मेदार है। उसको जिन्दा रहने का अधिकार नहीं है।”अन्तत: मई के पहले हफ्ते में 2 पाकिस्तानी फिदायीन- अमजद अली अकबर अली उर्फ सलीम तथा जिशान जौहर उर्फ अब्दुल गनी दिल्ली पहुंचे। इनमें से अमजद अली ने बांदीपुरा (कश्मीर) तथा जिशान जौहर ने जम्मू से सीमा पार की थी। अमजद अली लखनऊ में था, जावेद और इशरत जहां दोनों उससे जाकर मिले। यहां वे 5 मई को पहुंचे तथा होटल मेजबान में रुके जहां से वे दोनों लखनऊ के पास एक गांव इब्राहिमपुर गए तथा अपने रिश्तेदार मेराज के घर पर रुके। वहां से जावेद, सलीम तथा इशरत फैजाबाद गए और फिर पुणे जाने से पहले इशरत को मुंब्रा भेजकर सलीम जावेद के घर में रुका। वे वहां से मुम्बई और अमदाबाद गए।इससे पहले इशरत और जावेद 12 मई को सूरत गए और 13 मई को अमदाबाद पहुंचे तथा होटल शिवगंगा में पति-पत्नी के रूप में रुके। उसी दिन लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो गए थे व जावेद ने संकेत भाषा का इस्तेमाल करते हुए मुजम्मिल को फोन किया और कहा, “लाला (आडवाणी) का बिजनस चौपट हो गया है और वह अभी जल्दी ससुराल (अमदाबाद) में आएगा, ऐसा लगता नहीं है। “लाला” का काम मायके (दिल्ली) में ही करना पड़ेगा। लेकिन “मुबारक” (नरेन्द्र मोदी) मायके (गांधीनगर) में हाजिर है, उसका “काम” हो सकता है।” इस पर मुजम्मिल ने आदेश दिया कि ठीक है “लाला” का काम बाद में “मायके” में करेंगे, फिलहाल मुबारक का “काम” कर डालो।इसी के बाद 14 मई को जावेद और इशरत गांधीनगर आए तथा मंत्रियों के निवास स्थान तथा उनके आने-जाने वाले रास्तों की दुबारा पहचान की। इसके बाद वे अक्षरधाम भी गए और अमदाबाद लौटकर मुजम्मिल से दुबई में फोन पर बातचीत की, जिसमें कहा, “मुबारक का काम हो जाएगा। अब टी.वी., वी.सी.आर., सी.डी. और स्क्रेप भेज दो।” अपने हाथों से लिखी डायरी में इशरत जहां ने 14 मई को लिखा, “एम.” के यहां गए।” यहां “एम” से मतलब है मुबारक या मोदी। इसके बाद दूसरी शाम को वे शिवगंगा होटल से निकलकर रेल से लखनऊ पहुंचे जहां वे होटल मेजबान में रुके। उस होटल में सलीम और अब्दुल गनी पहले से मौजूद थे। वहां एक दिन रुकने के बाद चारों एक साथ पुणे चले गए। पुणे में अब्दुल गनी किसी अनजान जगह रुका। जबकि अमजद अली उर्फ सलीम जावेद के कैलाश अपार्टमेंट में रुके। वहां से जावेद और सलीम ने मुजम्मिल से फोन पर बातचीत की। मुजम्मिल ने उन्हें फोन, कार खरीदने के लिए कहा। उन्होंने फैजखान के नाम से नीली इण्डिका खरीदी। कार का सौदा जावेद ने अपने साले आसिफ शेख के माध्यम से किया। कार के डेढ़ लाख रुपए नगद दिए और दस हजार रुपए बाद में देने को कहा। उसके बाद जावेद, सलीम और इशरत जहां 24 मई को अमदाबाद पहुंचे। जावेद और इशरत तीन दिन एक होटल में रुके जबकि सलीम किसी अनजान जगह रुका। तीनों ने अगले दिन अमदाबाद और गांधीनगर का बारीकी से जायजा लिया और पुणे जाते हुए इशरत को नासिक छोड़ा। पुणे में सलीम को छोड़कर जावेद अपनी मुस्लिम बीवी साजिदा और अपने तीन बच्चों के साथ अपने पिता के गांव नारनूल (जिला-अलेप्पी) पहुंचा जहां उसके हिन्दू पिता गोपीनाथ से शायद आखिरी मुलाकात की। वहां चार-पांच दिन बिताकर वे पुन: पुणे लौटे तथा जावेद ने अपने बीवी-बच्चों को अपनी साली के मित्र शब्बीर शेख के यहां छोड़ा। वहां से उसी कार में नासिक गया और इशरत को लेकर मालेगांव पहुंचा। वहां पूर्व योजना के अनुसार दो पाकिस्तानी आतंकवादी सलीम तथा अब्दुल गनी हथियारों के साथ इन्तजार कर रहे थे। उन्हें लेकर वह 15 जून की सुबह अमदाबाद पहुंचा, जहां पुलिस ने इन सबको जवाबी कार्रवाई में मार डाला।10

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