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राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में वेंकैया नायडू ने कहा-
लौटें मूल की ओर,
पहुंचे अन्तिम व्यक्ति
तक
भाजपा अध्यक्ष वेंकैया नायडू
भाजपा अध्यक्ष श्री वेंकैया नायडू ने 22-24 जून को मुम्बई में सम्पन्न हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वे जनसंघ और भाजपा में पहले अपनाई जाती रही सुगठित कार्यपद्धति को अपनाकर कार्यविस्तार करें। यहां हम श्री नायडू के उसी विस्तृत भाषण के संपादित अंश प्रस्तुत कर रहे हैं-
चौदहवीं लोकसभा के चुनावों के बाद जनादेश हमारी अपेक्षाओं के विपरीत रहा है। स्वाभाविक रूप से हमारी पार्टी को सभी स्तरों पर आत्मचिंतन करना है कि आखिर क्यों हम जनादेश को फिर से पाने में सफल नहीं हो सके? यह आवश्यक है कि हम पराजय के कारणों का गहराई और वस्तुनिष्ठता से विश्लेषण करें।
आत्मचिंतन के तीन सिद्धान्त
आत्मचिंतन और विश्लेषण के प्रति हमारी दृष्टि सकारात्मक और रचनात्मक होनी चाहिए।
भाजपा व्यक्ति केन्द्रित-पार्टी नहीं है। हम सामूहिक दायित्व के सिद्धान्त में विश्वास रखते हैं-हार और जीत दोनों में ही।
सामूहिक दायित्व में किसी व्यक्ति विशेष के उत्तरदायित्व को चिन्हित करने की जरूरत नहीं रहती।
इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी भाजपा की तुलना में सात सीटें ज्यादा ले सकने में सफल रही। केरल में उसका खाता ही नहीं खुला। कर्नाटक में वह मात्र आठ सीटों पर सिमट गई। महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मजबूत गठबंधन के बावजूद कांग्रेस भाजपा-शिवसेना गठबंधन से पीछे रह गई और पहले की सीटों को ही बचा पाई। पंजाब और उत्तरांचल में केवल एक-एक सीट जीत सकी।
भाजपा शासित प्रदेशों-राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश-में कांग्रेस की स्थिति पहले की तुलना में और खराब हुई। उड़ीसा में भी वह कोई सफलता नहीं पा सकी। सत्ता में रहने के बावजूद यह असम में अपनी स्थिति सुधार नहीं पाई। यहां तक कि गुजरात में, जहां भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, हम कांग्रेस से ज्यादा सीटें जीते हैं, यद्यपि यह हमारी अपेक्षाओं से कम है। शायद हम परिस्थितियों के आकलन में अति-आत्मविश्वास से भरे थे। कुछ प्रदेशों में स्थानीय समीकरणों के चलते भी हमें नुकसान उठाना पड़ा।
भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को और अधिक मजबूत करने तथा सहयोगी दलों से सम्बंधों को प्रगाढ़ बनाने के पक्ष में है।
कांग्रेस द्वारा जनादेश की स्वयंभू व्याख्या
कांग्रेस का दावा है कि उसे जनादेश मिला है। मगर सांसदों की संख्या इस दावे को झुठलाती है। कांग्रेस सिर्फ 145 सीटें जीती है। कांग्रेस और उसके चुनाव पूर्व सहयोगी सिर्फ 218 सीटें जीते, जो सरकार बनाने के न्यूनतम 272 के आंकड़े से काफी कम है।
हालांकि यह भी सत्य है कि उन्होंने जोड़-तोड़कर सरकार बनाने हेतु आवश्यक बहुमत जुटा लिया। सत्तारूढ़ दल अपने को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) कहता है। परन्तु यह संयुक्त लगने के बजाय प्रारंभ से ही बिखरा हुआ है। प्रगतिशील होने के बजाय इसके अन्तर्विरोध और समझौते देश को प्रतिगामी दिशा में ले जाएंगे। गठबंधन के बजाय यह सत्ता भोगने के लिए किया गया अवसरवादी समझौता ज्यादा लगता है।
नई सरकार के गठन के एक सप्ताह के भीतर ही कश्मीर में आतंकवादी हमले में सीमा सुरक्षा बल के 33 जवान और उनके परिवार वाले मारे गए। कुछ दिन पूर्व ही सुरक्षा बलों ने लश्करे-तोइबा द्वारा श्री नरेन्द्र मोदी की हत्या के षड्यंत्र का पर्दाफाश किया। दो पाकिस्तानी नागरिकों सहित चार लोग पुलिस मुठभेड़ में मारे गए। दु:ख की बात यह है कि कुछ छद्म-सेकुलर दल और संगठन इसे भी अपने भाजपा विरोधी अभियान में उपयोग कर रहे हैं तथा इसे हिन्दू बनाम मुस्लिम मुद्दा बनाने में लगे हैं।
भारतीय जनता पार्टी इन छद्म सेकुलर दलों को चेताना चाहती है कि वे अपने तात्कालिक लाभों के लिए राष्ट्रविरोधी और आतंकवादी शक्तियों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। यह अत्यंत खतरनाक प्रवृत्ति है भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रही है।
एक प्रभावी विपक्ष की भूमिका
हम रचनात्मक और जिम्मेदारी की भावना के साथ एक प्रभावी विपक्ष की भूमिका निभायेंगे। हम नई सरकार के अन्तर्विरोधों, बाध्यताओं, समझौतों और उनके भ्रष्टाचार को उजागर करने का कोई मौका नहीं चूकेंगे। मनमोहन सिंह सरकार में दागी मंत्रियों के विरुद्ध हमारा अभियान महज शुरुआत है। हम शीघ्र ही कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों द्वारा पाठ-पुस्तकों से छेड़छाड़ करने के प्रयासों के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करेंगे। यह बदले की भावना से काम करने वाली सरकार है, जो वाजपेयी सरकार की अच्छी विरासत को जितना कर सकती है उतना समाप्त करने में लगी है।
वाजपेयी सरकार द्वारा शुरू की गई अति महत्वपूर्ण विकासात्मक पहलों, जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग विकास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, सम्पूर्ण रोजगार योजना, स्वजलधारा, अन्त्योदय अन्न योजना और सर्वशिक्षा अभियान का न तो नई सरकार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम में उल्लेख है और न ही संसद के संयुक्त सत्र में दिए गए राष्ट्रपति अभिभाषण में।
पार्टी की नई पहल
संसद में हमारी पार्टी अनुभवी और युवाओं, सिद्ध क्षमता और संभावनाओं से भरी नई प्रतिभाओं का प्रतिनिधित्व करती है। हमारे बहुत से सदस्य सरकार और विपक्ष में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। हमने पार्टी संगठन के भीतर एक नई व्यवस्थात्मक श्रेणी बनाने का फैसला किया है जिसमें हमारे सहयोगियों के सरकार और संसदीय कार्य के सघन अनुभवों का लाभ उठाया जा सकेगा।
आसन्न विधानसभा चुनावों की तैयारी
आगामी जुलाई महीने में एक “चिंतन बैठक” बुलाने की योजना है। इसका मुख्य उद्देश्य यह विचार करना है कि कैसे पार्टी का सामाजिक और राजनीतिक आधार बढ़ाकर जनता का विश्वास फिर से जीता जा सकता है। हमारा तात्कालिक काम महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा, झारखण्ड और अरुणाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों की तैयारी करना है। इस सूची में मैं उत्तर प्रदेश को भी जोड़ना चाहता हूं क्योंकि वहां की स्थितियों को देखते हुए लगता है कि समय से पूर्व चुनाव हो जाएंगे। बिहार की जनता भी राष्ट्रीय जनता दल-कांग्रेस-कम्युनिस्ट गठबंधन के जंगलराज से मुक्ति की व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रही है।
हिन्दुत्व जीवन पद्धति
समूचे पार्टी संगठन के सम्मुख सर्वाधिक महत्वपूर्ण काम अपनी विचारधारा और आदर्शवाद के प्रति फिर से कटिबद्ध होने का है। हिन्दुत्व की विचारधारा से प्रेरित एक वृहद् आन्दोलन का हम एक हिस्सा हैं। मीडिया के एक वर्ग में यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि भाजपा हिन्दुत्व की ओर वापस जा रही है। हिन्दुत्व की ओर वापस जाने का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि इसे हमने कभी छोड़ा ही नहीं था और ना कभी छोड़ेंगे।
हमारे लिए हिन्दुत्व एक चुनावी मुद्दा नहीं है। मगर हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति है, हमारे राष्ट्र की आत्मा है। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी हिन्दुत्व को भारत की मूलभूत पहचान बताया है।
भारतीय जनता पार्टी सदैव मानती है कि हिन्दुत्व, भारतीयता और “इण्डियननेस” समानार्थी हैं। इसलिए जहां तक भाजपा का सम्बंध है हिन्दुत्व को लेकर उसके क्षमाप्रार्थी होने का कोई सवाल नहीं है। हमें अपनी सभ्यता, दर्शन और सांस्कृतिक विरासत पर गर्व है। भारतीय समाज के अल्पसंख्यकों सहित सभी वर्गों तक पहुंचने के लिए हमारे प्रयासों को छोड़ने का भी कोई सवाल पैदा नहीं होता। हमने अपने राजनीतिक कार्य में अल्पसंख्यकों को कभी अलग नहीं माना। अल्पसंख्यक हमारे राष्ट्र का अविभाज्य अंग हैं। इस सम्बंध में हमारा उद्देश्य रहा है और रहेगा- “सभी को न्याय, तुष्टीकरण किसी का नहीं”।
विकास के प्रति प्रतिबद्धता
भाजपा की दोहरी प्रतिबद्धता है: सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और विकास। देश के सर्वांगीण और तेजी से विकास के बगैर हम पुनर्जाग्रत भारत का सपना साकार नहीं कर सकते, जो अपनी प्राचीन प्रतिष्ठा को न केवल फिर से पा सकता है अपितु उससे भी आगे निकल सकता है।
वाजपेयी सरकार द्वारा आधारभूत ढांचे और विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों में विकास के लिए उठाए गए कदमों पर हमें गर्व है। भारतीय जनता पार्टी की नीतियां और कार्यक्रम लगातार गरीबी उन्मूलन की अत्यावश्यकता, सभी के लिए रोजगार के अवसर, क्षेत्रीय विषमताओं को पाटना, “पुरा” (ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाओं का प्रावधान) जैसे नवीन दृष्टिकोण के माध्यम से ग्रामीण-शहरी खाई को समाप्त करने, शहरों की मलिन बस्तियों की दशा सुधारने के लिए शहरी सुधार, महिलाओं का सशक्तिकरण, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और समाज के अन्य कमजोर तबकों के त्वरित विकास को प्रमुख रूप से उभारते रहेंगे।
काम का विस्तार
किसानों, खेतिहर मजदूरों, हस्तशिल्प कारीगरों, ग्रामीण गरीबों के अन्य वर्गों तथा शहरी क्षेत्र में असंगठित गरीबों में पार्टी के काम के विस्तार की आवश्यकता का उल्लेख करना चाहता हूं। हमारे सक्रिय कार्यकर्ताओं को किसानों की भाषा बोलनी चाहिए, उनकी समस्याओं और चिन्ताओं को प्रभावी ढंग से मुखरित करना चाहिए तथा किसान समुदाय के साथ भावात्मक सम्बंध स्थापित करने चाहिए।
मूल की ओर लौटें
सबसे पहले हमें, भारतीय जनसंघ के दिनों और भारतीय जनता पार्टी के प्रारम्भिक वर्षों की भांति हमारे पदाधिकारियों और प्रमुख कार्यकर्ताओं को अपने समय का मुख्य हिस्सा पार्टी के काम हेतु अपने क्षेत्रों का दौरा कर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ सम्पर्क करने और लोक संग्रह के कार्यक्रमों की सुनिश्चित योजना बनाने तथा क्रियान्वित करने में लगाना चाहिए। स्थानीय स्तर से ऊपर तक हमें नियमित बैठकों, व्यवस्थित योजना, जिम्मेदारियों और काम का बंटवारा, सामूहिक समीक्षा और स्थिति का जायजा, आवश्यक सुधार जैसे काम करने के पहले के तरीकों को अपनाना होगा ताकि भविष्य के कामों को करने के लिए हम आगे बढ़ सकें। इसी प्रकार श्री अटल जी, श्री आडवाणी जी, स्वर्गीय कुशाभाव ठाकरे और हमारे पुराने नेता काम करते थे।
हमें फिर से अपने मूल की ओर लौटना है। व्यक्तिवाद की बीमारी से मुक्ति पानी है। हममें से प्रत्येक को यह अहसास होना जरूरी है कि आज हम जो भी हैं वह पार्टी के कारण हैं। हमें अपनी निजी चेतना, निजी व्यक्तित्व और निजी पहचान पार्टी की चेतना, पार्टी के व्यक्तित्व और पहचान में समाहित करनी है।
इसलिए हम कहते हैं राष्ट्र पहले, पार्टी उसके बाद और स्वयं सबसे अंत में। जैसा मैंने उल्लेख किया कि पार्टी को फिर से ऊर्जावान बनाने की रणनीति के तहत हमें लोगों की समस्याओं और उनके मुद्दों को मुखरित करना चाहिए। इस संदर्भ में भी अपने मूल की ओर लौटना हमारे लिए प्रासंगिक रहेगा। कभी–कभी लगता है कि हमारी पार्टी भी चुनाव केन्द्रित पार्टी बन गई है। मेरे कहने का मतलब है कि हमारे कार्यकर्ता अधिकतर तभी सक्रिय होते हैं जब चुनाव हो रहे हों, अन्य समय में पार्टी इकाइयों में ज्यादा गतिविधियां नहीं होतीं। यह एक जीवंत और प्रगतिशील राजनीतिक संगठन के लक्षण नहीं है।
हमें सभी स्तरों पर संगठन के कामकाज में सुधार लाना है। ऊपर से हमें पहल कर पार्टी की निचली इकाई के सामने आदर्श प्रस्तुत करना है। इसके लिए हमारा सबसे पहला काम है कार्यकर्ताओं से लगातार जीवंत सम्पर्क रखना। पंडित दीनदयाल उपाध्याय “आदर्श कार्यकर्ता” के बारे में कहा करते थे- “सब से भाग्यशाली वह है जो सतत् कार्यरत है।” कुछ लोगों को आश्चर्य हो सकता है कि हमारे समय और उर्जा के लिए सदैव इतना काम कहां है। ऐसे लोगों को और अपने को स्मरण रखना होगा कि भले ही कोई छोटा काम हो परन्तु उसी से ही बड़े और छोटे संगठन बनते हैं। उदाहरण के लिए मतदाता पर्ची बनाना, मतदाता सूची का सत्यापन, वितरण और प्रत्येक मतदाता के घर पर सम्पर्क करना ऐसे ही काम हैं। लेकिन कुछ क्षेत्रों में इनकी उपेक्षा की कीमत हमने हाल ही के लोकसभा चुनावों में चुकाई है।
यह प्रवृत्ति भी देखने में आ रही है जिसमें बहुत से लोग पार्टी के पदाधिकारी या राष्ट्रीय अथवा प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य या फिर कुछ और पद चाहते हैं। लेकिन आखिर कितने लोगों को इसमें समायोजित किया जा सकता है? साथ ही संगठन निर्माण में “एकोमोडेट” करने का सिद्धांत नहीं अपनाया जा सकता। इसलिए यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हम एक बार फिर से पार्टी में ऐसी संस्कृति का सृजन करें कि जिसको जो जिम्मेदारी सौंपी गई है वह उसे निभाए और उस जिम्मेदारी को अच्छे ढंग से पूरा करने के लिए अपने सर्वोत्तम प्रयास करे। जिस तरह हमारे पार्टी कार्यकर्ता को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना है उसी तरह हमारे नेताओं और पदाधिकारियों को अंतिम कार्यकर्ता तक पहुंचना चाहिए। संगठन के निचले स्तर से मिली अधिकांश शिकायतों में से एक है हमारे नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच अपर्याप्त और अनियमित संवाद। इसमें कोई शक नहीं कि इनके बीच निरन्तर संवाद के साथ ही प्रशिक्षण व्यवस्था से हम अनेक सक्षम और संभावनाओं से भरे युवा कार्यकर्ता पा सकेंगे, जो भविष्य के हमारे नेता होंगे।
एक राष्ट्रवादी और राष्ट्रीय पार्टी होने के कारण भाजपा पर यह जिम्मेदारी आई है कि वह समाज और राजनीति में राष्ट्रीय दृष्टिकोण को मजबूत करे तथा जातीय, साम्प्रदायिक और संकीर्णता की ताकतों से लड़े।
कार्यकारिणी द्वारा पारित प्रस्ताव
इतिहास को विकृत करने का प्रयास निंदनीय
शिक्षा के क्षेत्र में वर्तमान केन्द्र सरकार की गतिविधियों की भत्र्सना करते हुए भाजपा ने एक प्रस्ताव पारित करके कहा कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.) द्वारा प्रकाशित पाठपुस्तकों से “डीटोक्सीफिकेशन” के नाम पर की जा रही छेड़खानी चिन्ताजनक है। भारतीय इतिहास के कालबाह्र हो चुके विवरणों को थोपने के संप्रग सरकार के प्रयासों का प्रतिरोध किया जाना जरूरी है। पुस्तकों की “समीक्षा” के लिए समिति का गठन महज दिखावा है। माक्र्सवादियों के प्रभाव में आकर संप्रग निरपेक्ष दृष्टि से देखने और इन पाठपुस्तकों की शैक्षिक तथा शैक्षणिक संपूर्णता की रक्षा करने में असमर्थ है।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन शासन के दौरान तैयार की गई ये पुस्तकें सभी समुदायों और मत-पंथों का सम्मान करती हैं। वर्ष 2002 में माक्र्सवादियों के मंच भारतीय इतिहास कांग्रेस ने इन पाठपुस्तकों की गुणवत्ता को नीचा दिखाने का प्रयास किया था, किन्तु एन.सी.ई.आर.टी. के लेखकों ने उपयुक्त उत्तर देते हुए न केवल माक्र्सवादियों की तुलना में अपनी विद्वता की श्रेष्ठता प्रमाणित की, बल्कि उनके राष्ट्रविरोधी झुकाव का भी पर्दाफाश किया।
हाल ही में दिल्ली राज्य शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एस.सी.ई.आर.टी.) ने घटिया किस्म की पाठपुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें सिख, जैन, राजपूत और जाट समुदाय के इतिहास को विकृत किया गया है। हमारे राष्ट्रीय नेताओं और क्रांतिकारियों के साहसिक बलिदान के साथ-साथ दलितों और जनजातियों के संघर्षों को भी हमारी पाठ-पुस्तकों में उनका उचित स्थान मिलना चाहिए।
एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा तैयार की गई इतिहास और सामाजिक अध्ययन की पुस्तकों में उपलब्ध कराए गए तथ्य और व्याख्याएं युवा भारतवासियों में अपनी विरासत के बारे में अभिमान और सम्मान तथा भारतीय समाज की शक्ति और कमजोरियों को समझने की इच्छा पैदा करती हैं।
प्रस्ताव के अंत में कहा गया है – “भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी देशवासियों तथा विशेष रूप से शैक्षिक समुदाय का आह्वान करती है कि वे संप्रग सरकार द्वारा गौरवशाली भारतीय विरासत, संस्कृति और परम्परा को अपमानित करने, अपनी वोट बैंक राजनीति के लिए इतिहास को विकृत करने तथा युवा मस्तिष्कों में जहर घोलने के घृणित मंसूबों के प्रति जागरूक रहें और उनका प्रतिरोध करें।”
जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएंगे
भाजपा कार्यकारिणी ने राजनीतिक प्रस्ताव में देश के वर्तमान राजनीतिक माहौल के संदर्भ में कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने गत लोकसभा चुनावों के जनोदश को पूरी विनम्रता से स्वीकार किया है और अब भाजपा तथा राजग को रचनात्मक एवं जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभानी है। भाजपा ने मध्यप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा, उत्तराञ्चल, अरुणाचल प्रदेश तथा पंजाब की जनता का आभार प्रकट किया।
प्रस्ताव में कहा गया कि अटल जी की सरकार ने राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों- सुरक्षा, आर्थिक प्रगति, ढांचागत विकास, सामाजिक क्षेत्र में विकास, सूचना प्रौद्योगिकी, राजनीतिक सुधार, शासन तथा अन्तरराष्ट्रीय सम्बंध के क्षेत्र में उपलब्धियों की गौरवशाली विरासत छोड़ी है। आज भारत पहले की तुलना में मजबूत, ज्यादा समृद्ध और अधिक आत्मविश्वास से भरा है।
चुनावों में लगे आघात को भाजपा पूरी गम्भीरता से लेती है। भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी कांग्रेसनीत सरकार को, जिसे वामदलों तथा अन्य दलों का सहयोग प्राप्त है, हमारे गणतंत्र के जीवन में एक पीछे लौटने वाली घटना मानती है। कांग्रेस का यह दावा कि जनता ने कांग्रेस को, विशेषरूप से श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व के आधार पर जनादेश दिया है, पूरी तरह आधारहीन है। तथाकथित “सेकुलर ताकतें, जो वास्तव में छद्म सेकुलर या पंथनिरपेक्षता विरोधी ताकतें हैं, वास्तव में एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ी थीं। “सेकुलर भाइचारे” को बनाए रखने की मजबूरी के नाम पर दागी लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल करके कांग्रेस पार्टी ने भारत सरकार की गरिमा के साथ समझौता किया है।
भाजपा ने इस देश के पूरे राजनीतिक वर्ग को सावधान किया है कि प्रधानमंत्री जैसे उच्च पद की गरिमा घटाना, श्रीमती सोनिया गांधी के रूप में एक संविधानेत्तर शक्ति केन्द्र का उभरना तथा कांग्रेस पार्टी का परिवारवाद के आगे दण्डवत करना हमारे लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।
प्रस्ताव के अनुसार भारतीय जनता पार्टी न्यूनतम साझा कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर सहित देश के अन्य भागों में सीमापार आतंकवाद अथवा व्यापक बंगलादेशी घुसपैठ के खतरे को सम्मिलित न करने पर अपनी चिन्ता प्रकट करती है।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने आंध्र प्रदेश में हर रोज किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं पर गंभीर चिन्ता व्यक्त की है।
भाजपा ने मांग की है कि नई सरकार संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को आरक्षण देने वाला विधेयक तुरन्त पारित कराए।
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