|
ललित कला अकादमी के 50 वर्षकाल के कैनवास पर”स्वर्ण रेखा”88 वर्षीय प्रो. शंखो चौधरी को ललित कला रत्न से अलंकृत करते हुए राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलामस्वर्ण रेखा में प्रदर्शित अब्बास बाटलीवाला का एक चित्र-विनीता गुप्तादेखते-देखते काल के कैनवास पर स्वर्र्ण रेखा खिंच गई। ललित कला अकादमी ने 50 साल की यात्रा पूरी की। यात्रा के इस पड़ाव पर पहुंचना निश्चित रूप से अब तक की गई यात्रा पद एक विहंगम दृष्टि डालने का समय है लेने का वक्त है। ललित कला अकादमी के स्वर्ण जयंती वर्ष की शुरुआत खासी रंग भरी रही। इन्द्रधनुषी आयोजनों ने वर्षभर की झलक प्रस्तुत कर दी। कूची से कैनवास पर उतरे रंगों, कोरे कागजों पर रेखांकनों, पीतल, काष्ठ, टेराकोटा तथा पत्थर पर उकेरी गईं आकृतियों और कैमरे में कैद किए गए कलात्मक क्षणों में जैसे पचास वर्षों का इतिहास जीवंत हो उठा।गत नौ अगस्त को नई दिल्ली के सीरी फोर्ट सभागार में आयोजित भव्य समारोह में राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कला को मूर्त रूप देने वाले देश के 17 वरिष्ठ कला साधकों को ललित कला रत्न से अलंकृत किया। ये वे कलाकार हैं, जिन्होंने भारत की समकालीन कला यात्रा को यहां तक पहुंचाने में महती भूमिका निभाई है। अमरनाथ सहगल, जहांगीर सबावाल, के.जी. सुब्राह्मण्यम्, कपिला वात्स्यायन, कृष्ण खन्ना, एम.एफ. हुसैन, मुल्कराज आनंद, पारितोष सेन, शंखो चौधरी, शांति दवे, सतीश गुजराल और तैयब मेहता जैसे कलाकारों को राष्ट्रपति ने सम्मानित किया। भारतीय कला की पूरे विश्व में साख को रेखांकित करते हुए डा. कलाम ने कहा कि भारतीय कलाकारों के अच्छे प्रदर्शन के आधार पर ही भारतीय कला-संस्कृति विश्व में अपनी जगह बना रही है।स्वर्ण जयंती वर्ष जहां इतिहास में झांकने का वक्त है, वहीं भविष्य की संभावनाएं तलाशने का भी। इस अवसर पर दिल्ली स्थित कला-ग्राम गढ़ी स्टूडियो में “उभरते कलाकार” कार्यशाला में 1 से 8 अगस्त तक नवांकुरों ने पुरोधाओं के मार्गदर्शन में बहुत कुछ नया रचा। अपनी कल्पनाओं को मूत्र्त रूप दिया। शिलांग से आई एक बच्ची ने बाढ़ का प्रकोप कैनवास पर उतारा तो जम्मू-कश्मीर के बच्चों ने शिकारे और पहाड़ों का दृश्यांकन किया। इस शिविर में पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक देशभर से आए बाल कलाकार शामिल हुए। स्वर्ण-रेखा प्रदर्शनी में पिछले पचास साल में राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले 370 कलाकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित की गईं। 10 से 25 अगस्त तक आयोजित इस प्रदर्शनी में के.के. हेब्बार, स्व.बी.सी. सान्याल, के.जी. सुब्राह्मण्यम्, सतीश गुजराल, परितोष सेन, शंखो चौधरी. बिमल दासगुप्ता, अमरनाथ सहगल, सोमनाथ होरे, धनराज भगत और अद्वैत गणगनायक जैसे कलाकारों की कृतियां प्रदर्शित की गईं।इस अवसर पर “सिनेमा में कला” कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। पूरे एक दिन चले इस कार्यक्रम का केन्द्र बिन्दु था कला और सिनेमा के संबंधों को दर्शाना। इसमें जहां चित्रकारों द्वारा बनाई गई छोटी-छोटी फिल्मों का प्रदर्शन किया गया, वहीं उनके जीवन पर अन्य निर्देशकों द्वारा बनायी फिल्में दर्शकों के सामने प्रस्तुत की गई। इन्हें देखकर अहसास हुआ कि कलाकार जब कूची की जगह कैमरा उठा लेता है तो उसमें भी अपनी कल्पना के रंग कितनी खूबी से भरता है।ललित कला अकादमी ने स्वर्ण जयंती वर्ष की यात्रा पूरी कला क्षेत्र में क्या परिवर्तन देखे” इस प्रश्न का उत्तर देते हैं इस वर्ष ललित कला रत्न से अलंकृत श्री शांति दवे- “अब कला के साथ व्यावसायिकता ज्यादा जुड़ गई है। कलाकारों का ध्यान पैसे और बाजार पर ज्यादा केन्द्रित हो गया है, मूलभावना कहीं खो गई है। एक वक्त था जब कला को समाचार पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिलता था। इससे कलाकारों का आकलन होता था, वे प्रोत्साहित होते थे, और लोगों को चयन में आसानी होती थी। अब मीडिया में कला का कोई स्थान रह ही नहीं गया।”ललित कला अकादमी की यात्रा कहां से शुरू हुई, उसने कौन-कौन से पड़ाव तय किए? यह प्रश्न जब अकादमी सचिव डा. सुधाकर शर्मा से किया तो उन्होंने सबसे पहले कहा, “यह सिर्फ इतिहास में झांकने का ही नहीं अपितु अपने आपको टटोलने का वक्त भी है कि हम जो लक्ष्य लेकर चले थे, वे पूरे हुए कि नहीं।” 1954 में भारत सरकार द्वारा स्वायत्तशासी संस्था के रूप में ललित कला अकादमी शुरू हुई थी। इसका उद्देश्य था ललित कलाओं का संवद्र्धन, पोषण और संरक्षण तथा कलाकारों तक पहुंचना और उन्हें लाभ पहुंचाना। क्या अपने लक्ष्य में सफल हुए? डा. सुधाकर शर्मा कहते हैं, “इस राष्ट्रीय अकादमी के जरिए सैकड़ों कलाकारों को लाभ पहुंचा। यूं तो अनेक पड़ाव आए, कभी अच्छा चला, कभी बुरा चला, लेकिन निश्चित रूप से कलाकारों को हम जोड़ पाए। अखिल भारतीय अध्येता वृत्तियों, छात्रवृत्तियों के माध्यम से पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर कश्मीर तक के कलाकारों को जोड़ सके। राज्य अकादमियों को भी ललित कला अकादमी वित्तीय सहयोग देती है, जिसका लाभ कलाकारों को मिलता है। उनकी कृतियों के प्रदर्शन के लिए अकादमी देश और विदेश में प्रदर्शनियां आयोजित करती है। प्रतिवर्ष राष्ट्रीय प्रदर्शनी आयोजित होती है और उसमें 15 कलाकारों को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाता है। पुरस्कार में 50,000 रुपए दिये जाते हैं। इसी प्रकार हर तीन वर्ष में त्रैवार्षिकी का आयोजन होता है, जिसमें विदेशी कलाकार भी शामिल होते हैं। दस अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी दिए जाते हैं।”स्वर्ण जयंती वर्ष में अकादमी द्वारा देशभर में अनेक कार्यक्रम, प्रदर्शनियां, कार्यशालाएं और गोष्ठियां आयोजित की जाएंगी। इन्हीं में एक विशेष त्रैवार्षिकी प्रदर्शनी का आयोजन दिल्ली में होगा, जिसमें 40 देश भाग लेंगे। अकादमी पर कई बार किसी खेमा विशेष को लाभ पहुंचाने के आरोप लगे हैं, इस बारे में डा. सुधाकर कहते हैं, “खेमेबाजी या गुटबाजी कला और कला संस्थानों के लिए बहुत घातक है। ललित कला अकादमी के सामने भी ऐसा समय आया और 1997 से 2000 तक एक स्थिति तो ऐसी आ गई थी कि सरकार को अकादमी का प्रशासन अपने हाथ में लेना पड़ा था। इसमें ज्यादा नुकसान कलाकारों का होता है। सरकार द्वारा संचालित उपक्रमों का ढांचा जब चरमराने लगता है तो उनके विनिवेश की ओर कदम बढ़ाकर उन्हें निजी हाथों में सौंपा जाता है। कला संस्थानों में जब यह स्थिति आती है तो विकल्प के रूप में उसे किसी व्यक्ति या संस्था को सौंप दिया जाता है। उस व्यवस्था के विरोध में कोई कुछ नहीं बोल पाएगा। यानी एक हाथ जो कला के संरक्षण के लिए था, सरकार ने हाथ खींच लिया। संस्थानों का निजीकरण घातक है।” इस स्थिति से बचना चाहिए।18
टिप्पणियाँ