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आरिफ फौजी बनाम गुड़िया तौफीक का मामलागुड़िया बना दी गई “तमाशा”-शाहिद रहीमआरिफतौफिकगुड़िया-आरिफ दाम्पत्य अधिकार मामले पर प्रिंट मीडिया और टीवी के माध्यम से जितने तथ्य सामने आए हैं, उन्हें देख-सुन कर 1918 ई. में कही गई लेनिन की पंक्ति याद आती है- “रिलिजन हैज डायड एण्ड कल्चर्स आर डाइंग”- “मजहब मर चुका है, तहजीबें मर रही हैं”।सवाल यह पैदा होता है कि “गुड़िया” इस दुविधा में फंसी कैसे? वह आरिफ की पत्नी के रूप में जीवन बिता रही थी। पति आरिफ सरहद पर दुश्मनों से लड़ने गया और गायब हो गया। भारत सरकार ने उसे “भगोड़ा” घोषित कर दिया, मृत्यु की पुष्टि नहीं की। ऐसी स्थिति में इस्लामी कानून के अनुसार सबसे पहले गुड़िया को “सब्रा” करना है और पति की प्रतीक्षा करनी है। अल्लाह सब्रा करने वालों के साथ है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसके पास विवाह-विच्छेद के अधिकार हैं, जिसका उपयोग करने को वह स्वतंत्र है।इस्लामी कानून में महिलाओं को विवाह-विच्छेद के दो अधिकार हैं 1. फस्खे निकाह 2. खुला। इन अधिकारों का विधिसम्मत उपयोग किये बिना की गई दूसरी शादी, इस्लामी शादी नहीं होगी, बल्कि व्यभिचार होगा।1. फस्खे निकाह के लिए महिला को कारण स्पष्ट करते हुए नजदीकी शरई अदालत में आवेदन करना होगा, जिस पर कोई भी काजी तुरन्त फैसला नहीं देगा, जब तक कि निम्न शर्तें पूरी न कर ली जाएं।पहली शर्त: पति की मृत्यु की प्रामाणिकता, यदि सिद्ध हो जाए तो महिला उसी दिन “इद्दत” में जा सकती है। मृत्यु के बाद की इद्दत अवधि तीन महीने दस दिन है, ताकि गर्भ की स्थिति सामाजिक रूप से स्पष्ट हो सके। ऐसी स्थिति में मृत्यु प्रमाणित होने पर काजी तुरन्त फैसला दे सकता है।दूसरी शर्त: यदि पति की मृत्यु प्रमाणित न हो, फैसला देने में काजी को तीन वर्ष की प्रतीक्षा अवधि दरकार होगी।गुड़िया के मामले में सबसे पहली गलती उसके घर वालों और ग्रामवासियों की है, जिन्होंने भगोड़े “आरिफ” को भारत सरकार द्वारा पुष्टि न होने के बावजूद मृत घोषित करके “गुड़िया” को दूसरे विवाह के लिए उकसाया, यहां तक कि उसकी शादी कम्प्यूटर आपरेटर तौफीक से कर दी। किसी भी आलिम का “फतवा” गुड़िया के मामले में “अगर आरिफ की मृत्यु” पर आधारित है, तो वह जायज है, जिम्मेदारी उसकी होगी, जिसने आरिफ को मृतक सिद्ध किया। दूसरी स्थिति में फतवा (फैसला) गलत कहा जाएगा।कहानी में आगे एक और मोड़ है, जहां “गुड़िया” एक संवेदनशील मानव न होकर महज गुड़िया के रूप में संपूर्ण मुस्लिम समाज की असहाय महिला का प्रतीक बन कर उभरती है। ऐसा लगता है “गुड़िया” का अस्तित्व समाज और शरीयत के हथौड़े से कुचला जा रहा है।”गुड़िया”, जिसने पति की कथित मृत्यु के बाद 4 महीने 10 दिन की इद्दत-अवधि बिताने के बाद कम्प्यूटर आपरेटर तौफीक से दूसरा विवाह कर लिया, तो कानूनन वह तौफीक की पत्नी हुई। आरिफ उसके लिए ता-हयात (आजीवन) मृतक रहेगा, गुड़िया, तौफीक की पत्नी है, रहेगी। उसके गर्भ में बच्चा तौफीक का है, उसी का रहेगा और उस पर तौफीक का सौ प्रतिशत अधिकार है, रहेगा।जिन लोगों ने गुड़िया को “तौफीक” के पास से आरिफ के पास बिना निकाह के भेजा, उन्होंने न सिर्फ गुड़िया बल्कि आरिफ को भी गलती करने को बाध्य किया। आज अगर गुड़िया और आरिफ साथ रहना चाहें, पुन: पति-पत्नी की तरह जीवन जीना चाहें तो इसके लिए भी इस्लाम में रास्ता है।गुड़िया तौफीक के बच्चे की मां बनने वाली है। जब तक बच्चे का जन्म नहीं हो जाता, आरिफ और गुड़िया के मिलन की प्रक्रिया ही शुरू नहीं हो सकती बच्चे के जन्म से चालीस दिन तक गुड़िया प्रसूति में रहेगी और चालीसवें दिन “पवित्र-स्नान” के बाद तौफीक से तलाक देने का निवेदन करेगी। यदि वह तलाक दे देता है तो तीन महीने दस दिन की तलाक पर्यंत इद्दत-अवधि बिताकर गुड़िया आरिफ से दुबारा निकाह कर सकती है- परंतु यदि तौफीक ने तलाक नहीं दिया तो वह आरिफ के पास तभी जा सकती है, जब वह तौफीक से विवाह-विच्छेद कर ले।जिस किसी आलिम, मुफ्ती, पंच, पंचायत, समाज या व्यक्ति ने तौफीक की पत्नी “गुड़िया” को “आरिफ” के घर भेजने का फैसला किया है, वह मुसलमान नहीं, मुनाफिक है, जो दीन के बनाए हुए कानून में विवाद पैदा करने का गुनाह कर रहा है।आश्चर्य यह है कि “मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड” के सदस्यों ने भी इस मामले को प्रचार पाने का माध्यम समझ लिया और “इस्लामी न्याय सूत्रों” का उदाहरण तक नहीं दिया। सैकड़ों उलेमा इस मामले पर खामोश तमाशाई बने हुए हैं। शायद इसलिए कि इस्लामी संविधान की किताबें उनकी अल्मारी की शोभा बनकर उनके विद्वान होने की घोषणा करती रही हैं।30
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