नई दिल्ली में भारतवंशियों का सम्मेलन
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नई दिल्ली में भारतवंशियों का सम्मेलन

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Dec 1, 2003, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Dec 2003 00:00:00

कुछ तेजस्वी भारतवंशियों से बातचीतहमारे प्रश्न थे1. आपके विचार में विभिन्न देशों में बसे भारतवंशियों की छवि कैसी है?2. आपने भारत कब छोड़ा था?3. अपने देश और पुण्यभूमि भारत की आप किस रूप में मदद करने की सोच रहे हैं?4. क्या कभी यह देखकर आपको पीड़ा नहीं होती कि अन्य देश बहुत तेजी से विकास कर रहे हैं, जबकि भारत अब भी पिछड़ा हुआ है? आपके विचार में आज भारत किस स्थिति में है, इसकी मुख्य समस्याएं क्या हैं?5. भारत के पिछड़ेपन का मुख्य कारण क्या है? अपनी धरती की बजाय भारतीय विदेशी धरती पर अधिक सफल क्यों होते हैं?6. भारत की वर्तमान सरकार के बारे में आपके क्या विचार हैं? प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में भारत आगे बढ़ सके, इसके लिए आपके कोई सुझाव या विचार?इन्हीं प्रश्नों के क्रमानुसार हमारे अतिथि भारतवंशियों के उत्तर यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं। -सं.पुण्यभूमि भारत से मन बंधा रहता है-प्रो. दिनेश अग्रवालनिदेशक, माइक्रोवेव प्रोसेसिंग इंजीनियरिंग सेंटर,पेन्सिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी, (अमरीका) एवंसागरपारीय भाजपा मित्रमंडल के पूर्व अध्यक्षथ् अमरीका में बसे भारतवंशियों लगभग हर क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है। चाहे विज्ञान हो, इंजीनियरिंग हो, व्यापार या फिर चिकित्सा का क्षेत्र हो, भारतीयों ने अपना विशेष स्थान बनाया है। उनके बच्चे भी अपने स्कूलों और वि·श्वविद्यालयों में अन्य देशों और अमरीका के छात्रों से कहीं आगे हैं।थ् 1975 में उच्च शिक्षा के लिए मैं अमरीका आया। आई.आई.टी. कानपुर से एम.टेक. करने के बाद मैंने पेन्सिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी. करने का निर्णय लिया।थ् भारत हम प्रवासी भारतीयों की मातृभूमि और पुण्यभूमि है। अमरीका भले ही हमारी कर्मभूमि हो, लेकिन हमें प्रेरणा और पहचान अपनी जड़ों से, भारत की प्राचीन विरासत तथा प्राचीन संस्कृति से ही मिलती है। इसलिए भारत के लिए कुछ करना मैं अपना कत्र्तव्य मानता हूं। धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से भारत के लिए अपना योगदान देता हूं। अमरीकी लोगों में भारतीय संस्कृति और परम्पराओं के प्रति समझ और जागरूकता लाने का प्रयास करता हूं, ताकि वे लोग भारतीय और हिन्दुत्व के मूल्यों को समझ सकें, हमारी अगली पीढ़ी को भारतीय संस्कार मिल सकें, यह काम व्याख्यानों और संगोष्ठियों के माध्यम से करता हूं।थ् यह देखकर सचमुच बहुत पीड़ा होती है कि भरपूर प्रतिभा और संसाधनों के बावजूद भारत कई क्षेत्रों में विकास की दृष्टि से बहुत पीछे है। इस पिछड़ेपन के कई कारण हैं। (1) अधिक जनसंख्या (2) भारत को अपनी बहुत-सी शक्ति और संसाधन आतंकवाद और पाकिस्तान के छद्म युद्ध से लड़ने में बर्बाद करने पड़ रहे हैं (3) भ्रष्टाचार (4) भारत की वोट बैंक की राजनीति। यह भारत के लिए अभिशाप बन गई है।थ् मैं नहीं मानता कि भारत पूरी तरह पिछड़ा हुआ है। कुछ मायनों जैसे ढांचागत सुविधाओं के मामले में कम विकसित भले ही हो लेकिन कुछ क्षेत्रों में यह और देशों से बहुत आगे है। यहां के लोग अन्य विकसित देशों के मुकाबले ज्यादा पढ़े-लिखे और ज्ञानी है। भारत के मुकाबले विदेशों में एक भारतीय की अधिक सफलता का कारण यह है कि उन देशों में काम करने का वातावरण है।थ् पिछले तीन सालों में भाजपा नेतृत्व वाली राजग सरकार ने अनेक सकारात्मक कदम उठाए हैं, जिनके परिणाम भी अच्छे मिले हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था अन्य देशों के मुकाबले काफी स्थिर और अच्छी है। विदेशी मामलों में भी भारत ने विजय प्राप्त की है। लेकिन इस सरकार का इस्लामी आतंकवाद और पाकिस्तान से निबटने का तरीका सबसे दु:खद और निराशाजनक पहलू है। इस मामले में सरकार पूरी तरह विफल रही है। भारत को जिहादी आतंकवाद से लड़ने के लिए इस्राइल और अमरीका जैसी नीति अपनानी होगी।दभारतीय विचारधारा से ही वि·श्व में शान्ति और समन्वय संभव है-डा. आनंद आर्यआर्थोपेडिक सर्जन, किंग्स कालेज हास्पीटल, लंदनथ् अन्य स्थानों की तरह ब्रिटेन में भी भारतवंशी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। अप्रवासी भारतीयों की जो पहली पीढ़ी यहां आई थी, उसने काफी परिश्रम करके इसी पहचान बनायी है और आज वे आर्थिक दृष्टि से काफी सुदृढ़ हैं। वर्तमान पीढ़ी भी काफी अच्छा कर रही है। व्यवसाय, उद्योग और अन्यान्य क्षेत्रों में उसका काफी बड़ा योगदान है। मेरे विद्यार्थियों में 20 प्रतिशत भारतीय छात्र होते हैं जबकि यहां जनसंख्या की दृष्टि से भारतीय मात्र 2 प्रतिशत ही हैं।थ् आर्थोपेडिक की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए मैं 1991 में ब्रिटेन आया।थ् मैं भारतीय समाज के कार्यों में काफी सक्रिय रहता हूं। भारत में चल रहे विभिन्न कार्यों के लिए मैं धन-संग्रह करने में भी तत्परता से भाग लेता हूं। भारत से संबंधित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर होने वाली चर्चाओं में दृढ़ता से भारत का पक्ष रखता हूं। वर्ष में एक बार भारत अवश्य आता हूं और जयपुर में एवं चिकित्सक के रूप में अपनी सेवाएं देना भी प्रारंभ किया है।थ् भारत का तीव्र गति से विकास नहीं होना निश्चित ही अतीव कष्टदायक है। इसका मुख्य कारण भारत का दुर्भाग्य ही है। स्वतंत्रता मिलने के बाद से अधिकांश वर्षों तक भारत को असहाय और अदूरदर्शी नेतृत्व मिला है जिसमें न तो समर्पण था और न ही निर्णय लेने की क्षमता। अत: पूरा समाज भ्रष्ट और स्वार्थी हो गया है।थ् किसी ने ठीक ही कहा है कि भारतीय व्यक्तिगत रूप से अत्यंत प्रतिभाशाली हैं परंतु एक समूह के रूप में उनसे कुछ भी आशा नहीं की जा सकती। अभी भी मानसिक गुलामी के कारण हमें भारतीय वस्तुओं पर गर्व नहीं होता, भले ही वे विश्व में सर्वश्रेष्ठ हों। इसी कारण, भारतीय भारत में अच्छा नहीं कर पाते।थ् मैं अनुभव करता हूं कि वर्तमान सरकार अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी प्रशंसनीय कार्य कर रही है। लेकिन 1999 में विमान अपहरण के समय लिया गया निर्णय सरकार के ऊपर एक बड़ा धब्बा है।थ् भारत को विदेशों को ध्यान में रखकर योजनाएं बनानी चाहिए ताकि प्रवासी भारतीय समुदाय की सामथ्र्य का उनके अपने देश के साथ-साथ भारत के लिए भी उपयोग हो सके। भारतीय मीडिया और विशेष रूप से अंग्रेजी मीडिया को अमरीका और ब्रिटेन के अंग्रेजी मीडिया से कुछ सीखना चाहिए। कैसी भी परिस्थिति हो अपने नेताओं की अवमानना नहीं करते। और सरकार पूरी तरह गलत भी हो तब भी वे राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हैं।थ् भारतवासियों से मैं यही कहना चाहूंगा कि वे अपनी भारतीय, संस्कृति और जीवन-मूल्यों में आस्था रखें। पश्चिम में इतने वर्ष रहने के बाद मैं बेझिझक कह सकता हूं कि भारतीय विचारधारा ही वि·श्व में शांति, समन्वय और विकास लाने में सक्षम है।द19

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