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सभी विदेशी आक्रांताओं ने हिन्दुत्व के सामने घुटने टेके-डा. वेदप्रताप वैदिक, वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकारइंद्रप्रस्थ साहित्य भारती, नई दिल्ली का प्रथम वार्षिक अधिवेशन गत 12 अप्रैल को सम्पन्न हुआ। दिनभर चले इस अधिवेशन में आयोजित संगोष्ठी में दो विषयों पर चर्चा हुई। प्रथम सत्र का विषय था, आतंकवाद और वामपंथ मानव विरोधी दिशाएं। इस सत्र के प्रमुख वक्ता पाञ्चजन्य साप्ताहिक समाचारपत्र के सम्पादक श्री तरुण विजय ने कहा कि देश में चल रहे जिहादी आतंकवाद के विरुद्ध लेखकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वामपंथी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में राष्ट्रीय धारा के विरुद्ध कलम तोड़ते रहते हैं एवं साम्प्रदायिक सौहार्द के विरुद्ध पृष्ठ काले करते रहते हैं। इनका सामना करना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है। इनकी क्रुरता के आंकड़ें एकत्र करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इन पर कड़े वैैचारिक प्रहार भी करने होंगे। वरिष्ठ साहित्यकार डा. कमलकिशोर गोयनका ने सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि आतंक का संबध मजहब से होने पर अति भयावह स्थिति बनती है। अपने पंथ के प्रति जबरन दूसरों में आस्था पैदा करना ही आतंकवाद का मूल है। प्रजातंत्र की सारी सुविधाओं का उपयोग करने वाले इस्लाम के लोग मौका मिलने पर इस्लामी शासन का ही पक्ष लेंगे। इस सत्र को जवाहरलाल नेहरू वि·श्वविद्यालय के प्राध्यापक डा. अ·श्वनी कुमार महापात्र, और प्राध्यापक श्री बी.एल. कौल ने भी सम्बोधित किया। संगोष्ठी के दूसरे सत्र में हिन्दू दर्शन- नई शताब्दी का यथार्थ पर चर्चा हुई। इस सत्र के मुख्य वक्ता प्रसिद्ध विद्वान डा. वेदप्रताप वैदिक ने अपने व्याख्यान में कहा कि जो भारतीय दर्शन है, वही सच्चे अर्थों में हिन्दू दर्शन है। भारत पर आक्रमण करने वाले सभी आक्रांताओं को इस हिन्दू दर्शन के आगे घुटने टेकने पड़े। हिन्दू दर्शन की जीवन पद्धति यह है कि लेने के लिए कुछ नहीं और देने के लिए सब कुछ जबकि अन्य देशों की जीवन पद्धति में इसका उलटा है। संपूर्ण अधिवेशन की अध्यक्षता डा. देवेन्द्र आर्य ने की। अधिवेशन में अ.भा. साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री श्री जीत सिंह जीत एवं अन्य प्रबुद्धजन उपस्थित थे।– प्रतिनिधि24
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