|
नारायण राव तर्टे और रामशंकर अग्निहोत्री कोबापू राव लेले स्मृति पुरस्कारप्रधानमंत्री ने आस्था के संकट पर चिन्ता जतायी और कहा छपे हुए शब्द का वजन बढ़ाना होगाकुप्.सी.सुदर्शन ने कहा- राजनीति की तरह पत्रकारिता में भी फिसलनगत 1 अगस्त को प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी ने प्रसिद्ध राष्ट्रवादी पत्रकार स्व. श्री बापू राव लेले की स्मृति में स्थापित पुरस्कार श्री नारायण राव तर्टे और श्री रामशंकर अग्निहोत्री को प्रदान किए। इस अवसर पर रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन और उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी के भी उद्बोधन हुए। कार्यक्रम में अनेक केन्द्रीय मंत्री, वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकारों के अतिरिक्त रा.स्व.संघ के अनेक वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।श्री बापू राव लेले की सादगी, सभी को मित्र बनाने की प्रकृति, ध्येयनिष्ठा और प्रलोभनों से दूर रहने के स्वभाव की सभी ने चर्चा की। श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि राजनीति की भांति पत्रकारिता में भी फिसलन आ रही है। ऐसे समय में श्री लेले का स्मरण अपने आदर्शों पर टिके रहने की प्रेरणा देता है। श्री आडवाणी ने इसी सूत्र को उठाते हुए कहा कि जिस प्रकार राजनीति में सक्रिय लोगों के पास प्रभाव और शक्ति आती है और फिर उसका कितना सदुपयोग या दुरुपयोग होता है यह उन पर निर्भर करता है। इसी प्रकार पत्रकारों में भी अपने प्रभाव और शक्ति का उपयोग करने की लालसा होती है। इसका वे कितना सही काम के लिए उपयोग करते हैं, यही महत्वपूर्ण है।प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी ने अपने उद्बोधन में तर्टे जी का बहुत मार्मिक और भावपूर्ण अभिनंदन किया और बताया कि वे उन लोगों में थे जो उन्हें ग्वालियर में शाखा लाए थे। उन्होंने यह भी बताया कि कविताएं लिखना भी उन्होंने संघ की प्रेरणा से ही सीखा। शाखा में देशभक्ति के गीत गाए जाते थे तो उन्हें लगा कि ऐसे ही कुछ गीतों की रचना मैं भी करूं और शाखा के गीतों को गाते-गाते स्वयंसेवक वाजपेयी भी कवि वाजपेयी बन गए। उन्होंने रामशंकर अग्निहोत्री जी के बारे में भी अभिनंदनात्मक शब्द कहे और चुटकी लेते हुए कहा कि उन्हें लगा आज रामशंकर अग्निहोत्री जी कुछ कविताएं सुनाएंगे पर शायद उन्होंने अपनी कविताएं किसी अगले समय के लिए रखी हैं।श्री वाजपेयी ने कहा कि कई बार लगता है कि जिस प्रकार की पत्रकारिता आज देश में चल रही है उससे आस्था का संकट पैदा हो रहा है। यद्यपि अब कुछ समय से मानवीय संवेदना वाले समाचार भी महत्व के साथ प्रकाशित किए जा रहे हैं, पर उनकी संख्या बढ़ानी चाहिए और छपे शब्द का वजन बढ़ना चाहिए। यानी जिम्मेदारी के अहसास के साथ तौल कर लिखना चाहिए।सभी वक्ताओं ने स्व. बापू राव लेले द्वारा हिन्दुस्थान समाचार संवाद समिति के स्थापना में दिए गए योगदान का स्मरण किया और बताया कि आजादी के बाद जिस समय भारतीय भाषाओं में कोई संवाद समिति नहीं थी, बापू राव लेले जी ने बालेश्वर अग्रवाल जी के साथ मिलकर भारतीय भाषाओं की पहली संवाद समिति स्थापित करने का साहसिक कार्य किया। आज भी अनेक वरिष्ठ पत्रकार गर्व से कहते हैं कि उन्होंने अपना पत्रकारिता जीवन हिन्दुस्थान समाचार से प्रारंभ किया। यह भी आशा व्यक्त की गई कि हिन्दुस्थान समाचार अपने नये रूप और अवतार में पहले की भांति सशक्त एवं प्रभावी संवाद समिति बन सकेगी।श्री नारायण राव तर्टे ने अपने स्वीकारोक्ति वक्तव्य में कहा कि अब पत्रकारिता न ध्येयवादी है, न सत्यवादी। सत्य को असत्य करके छापना पत्रकारिता की पहचान बनती जा रही है। प्रसिद्ध पत्रकार एवं साहित्यकार श्री रामशंकर अग्निहोत्री ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में कहा कि पत्रकारिता में फिसलन की बात कही जाती है लेकिन सम्भालने और संवारने वाले कुशल हाथ मिल जाएं तो फिसलन की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। संघ में अनगढ़ पत्थरों को भी संवारे की ताकत है। उन्होंने श्री जगदीश माथुर से सुना एक शेर भी सुनाया -पत्थर की भी तकदीर बदलती है,शर्त है कि सलीके से संवारे कोईराष्ट्रीय पत्रकारिता कल्याण न्यास के उद्देश्यों का रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री श्रीकांत जोशी ने परिचय दिया। श्री आडवाणी ने न्यास द्वारा प्रकाशित स्मारिका का लोकार्पण किया। श्री राजकुमार शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन किया। द प्रतिनिधि14
टिप्पणियाँ