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माकपा नेतृत्व की नींद उड़ीद प्रदीप कुमारयूंतो देशभर में माकपा के दुर्ग एक के बाद एक ढहने की स्थिति में हैं, लेकिन केरल में यह दुर्ग लगभग ढह चुका है। वहां माकपा पर संकट के घने बादल छाए हुए हैं। बड़ी संख्या में जिला समितियों से कार्यकर्ताओं द्वारा त्यागपत्र दिया जाना इस बात का संकेत है कि पार्टी भारी संकट के दौर से गुजर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री ई.के.नयनार, प्रदेश सचिव पिनाराई विजयन और विपक्ष के नेता वी.एस. अच्युतानन्दन सहित अनेक वरिष्ठ नेता माक्र्सवादी विचारक पी. गोविन्द पिल्लै के विवादास्पद साक्षात्कार के विरुद्ध खुलकर बोलने लगे हैं। इससे पता चलता है कि पार्टी ऐसी बगावत को गंभीरता से ले रही है।गोविन्द पिल्लै के साक्षात्कार से कामरेडों के बीच वैचारिक भ्रम की स्थिति सार्वजनिक हो गयी है। जबकि पोलित ब्यूरो के पूर्व सदस्य और सीटू के नेता वी.बी. चेरियन राज्य में युद्धस्तर पर ई.एम.एस. संस्कारिका वेदियों का आयोजन कर रहे हैं। इसके चलते राज्य में माकपा विद्रोहियों का जाल फैलता जा रहा है। संक्षेप में पार्टी की नीतियों पर पार्टी के ही कार्यकर्ता सवाल उठाने लगे हैं और इस प्रकार के सवाल उठाने वालों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।पिछले दिनों कोल्लम जिले की कारूंगाप्पल्लि स्थानीय समिति के लगभग 1000 सदस्यों द्वारा पार्टी छोड़ जाना तो आने वाले तूफान की एक झलक मात्र थी। इस प्रकार स्थानीय समितियों से सामूहिक त्यागपत्र किसी भी समय दिये जाने की प्रबल संभावना है। कारूंगाप्पल्लि की घटना पार्टी के लिए एक प्रकार से चेतावनी थी। पार्टी के कुछ महत्वपूर्ण गढ़ों जैसे अलाप्पि, त्रिशूर, एर्नाकुलम, कुण्णूर, कासरगोड़ और कोझिकोड जिलों में भी पार्टी नेतृत्व के खिलाफ विरोध का स्वर बुलन्द करते हुए हजारों कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ दी है।इन सदस्यों ने केवल पार्टी ही नहीं छोड़ी, अपितु ये सब बागी एकजुट होकर जिस प्रकार एक मंच पर इकट्ठे हो रहे हैं, उससे पार्टी नेतृत्व की नींव उड़ गई है। माकपा के मुख्य गढ़ों में इन बागियों द्वारा आयोजित किए जा रहे सम्मेलनों और संगोष्ठियों में भारी भीड़ उमड़ रही है। ई.एम.एस.-एकेजी-बी.टी.आर. के नाम से आयोजित इन कार्यक्रमों को लेकर पार्टी नेतृत्व में खासी चिन्ता है। राज्य की प्रमुख राजनीतिक हस्तियां के.आर. गौरीअम्मा और एम.वी. राघवन कांग्रेस में चले गए थे। उनके बारे में हाल के इन बागियों का कहना है कि वे मूलत: माक्र्सवादी हैं और माक्र्सवादियों पर जातीय शत्रुता फैलाने का आरोप लगाते हैं। एक बागी प्रो. के. राजशेखरन का कहना है कि नींव से शिखर तक पार्टी और उसके नेतृत्व की स्थिति ताश के महल की तरह है, जो किसी भी समय ढह सकती है।पार्टी में इस प्रकार संकट के संकेत सबसे पहले पार्टी की राज्य समिति की बैठकों में मिलने लगे थे। और पलक्काड बैठक में सीटू और माकपा पूरी तरह दो फाड़ हो चुकी थी। उसके साथ ही सीटू नेता और कोचीन शिपयार्ड कर्मचारी संघ के अध्यक्ष वी.बी.चेरियन को पार्टी से निकाल दिया गया था। चेरियन को सीटू से भी निकालने की योजना हैरान कर देने वाली थी। लेकिन अनेक नेताओं ने चेरियन के पक्ष में आवाज उठायी और माकपा नेताओं पर निजी स्वार्थों के लिए पार्टी हितों को बलि चढ़ाने का आरोप लगाया था। बागियों का कहना है कि अब माकपा आम लोगों की पार्टी नहीं रह गई, बल्कि करोड़ों रुपए की सम्पत्ति वाली कारपोरेट कम्पनी बन गई है। अब पार्टी का उद्देश्य किसी भी तरह सत्ता में रहकर मुनाफा कमाना भर रह गया है। जनशक्ति का एकत्रीकरण और उपयोग करने के बजाय पार्टी का ध्यान मनोरंजन पार्क, टेलीविजन चैनल, अस्पताल खोलने और किसी भी तरह नोट कमाने पर केन्द्रित हो गया है। इन संस्थानों के प्रबंध निदेशक पदों पर पार्टी के बड़े नेता बैठे हैं और उनकी नजरें वहां होने वाले कमाई पर ही टिकी हुई हैं।इस प्रकार की समानान्तर गतिविधियों के कारण अंतत: माकपा की नई शक्ल उभर कर आ रही है। आगे यह क्या आकार लेगी? अभी बागी इन प्रश्नों का उत्तर देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। केरल के बागियों का लक्ष्य अपना संदेश राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाना है। पंजाब में माकपा के दो प्रमुख बागियों मंगतराम पासला और चन्द्रशेखर ने वी.बी. चेरियन और उनके साथियों द्वारा आयोजित समानान्तर बैठकों में भाग लिया था। ये लोग अन्य राज्यों के अनेक नेताओं से भी इस सिलसिले में मिलकर अपना संदेश देशभर में पहुंचा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य में माकपा की नींव हिल चुकी है। राजनीति के पंडित उत्सुकता से उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब राज्य में माकपा का किला धराशायी हो जाएगा।22
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