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बारकूर गांव में रहते थे बलबीर बमगारा,उनकी पोतियां थीं सात और पोते थे बारह।बच्चे सब बहादुर थे और थे बड़े ही निडर,लेकिन दादाजी को लगी रहती पोतों की फिकर।क्योंकि घूमने का शौक होता, कभी उन पर सवारतो साइकिल पर चलने को, सभी होते तैयार।एक दिन दादाजी को खबर मिली,कि अगले दिन बैंगन गांव को जायेगी टोली।वहां रहता था एक खतरनाक जादूगर बाली,और जनता थी वहां की भोली-भाली।बच्चों को कैसे मना करें यह नहीं सूझा,तो दादाजी ने भी बच्चों के साथ जाने का सोचा।अगले दिन बाजार से, साइकिलों का काफिला गुजरा,तो देखने लायक था सचमुच वह नजारा।सबसे आगे थे साठ साल के बलबीर बमगारा।बैंगन गांव पहुंचते ही सामने आया नेकीराम,बोला, पहले आप थोड़ा कर लें विश्राम।खाना खा, लें थाली का सिर्फ एक रुपया दाम,फिर मैं दिखाऊंगा यहां के सभी धाम।दादाजी ने सोचा, सिर्फ एक रुपये में थाली,हो न हो, यही है वह जादूगर बाली।जादूगर ने घर पहुंचते ही सबको परोसी थाली,बैंगन की सब्जी रोटी के साथ सबने खा ली।फिर नेकीराम ने मेज से एक छड़ी निकाली,बोला, उठ बैंगन, तो सब उठे मानो हों कठपुतली।दादाजी ने खाया नहीं था जादुई बैंगन मगर,वे भी ऐसे पेश आये, मानो उन पर भी था असर।जब जादूगर बोला, सब अपने-अपने पर्स टेबल पर रखो बैंगन,दादाजी ने भी पर्स टेबल पर रखा फौरन।फिर लालची जादूगर ने छड़ी टेबल पर रख दी,और वह पैसा गिनने में लगा जल्दी-जल्दी।मौका देख दादा ने जादूगर की छड़ी उठा ली,और उसे सबक सिखाने की मन में कसम खा ली।बोले जादूगर को घेर लो बैंगन,तो बच्चों ने जादूगर को घेर लिया।कहा, जादूगर को बांध दो बैंगन,तो उन्होंने जादूगर को बांध दिया।फिर दादाजी ने जादूगर को किया पुलिस के हवाले,बोले, अब थोड़ी जेल की हवा खा ले।लौटकर बारकूर पहुंचते-पहुंचते बैंगन हजम हो चुका थाऔर बच्चों के सिर से बैंगन का जादू उतर चुका था।तलपटयुद्ध इतिहास की रपटों पर विश्लेषण करने के लिए बनाई गई समिति ने अपनी रपट सरकार को सौंप दी है, हालांकि अभी यह रपट सार्वजनिक नहीं हुई है। यह आश्चर्य का विषय है कि 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में भारत की हार के विश्लेषण हेतु बनी हैन्डरसन ब्रुक समिति की रपट को इस समिति के कार्य क्षेत्र से बाहर रखा गया था।27
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