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मतदाता कैसे बने ये ईरानी?द कल्याणीपाकिस्तानी आई.एस.आई. की जबरदस्त पकड़, गांवों से हिन्दुओं का पलायन और मदरसों, मस्जिदों की बढ़ती संख्या के कारण बिहार के किशनगंज जिले की स्थिति अन्य जिलों से अलग हो चुकी है। बिहार के इस मुस्लिमबहुल जिले में बंगलादेशी घुसपैठिए ही नहीं, बल्कि ईरानी भी अवैध रूप से आकर बसते जा रहे हैं। 200 से अधिक ईरानी यहां अवैध रूप से रह रहे हैं। ये सभी शिया मुसलमान हैं। विशाल मुस्लिम आबादी के इर्द-गिर्द होने के कारण शुरू में इन पर प्रशासन का ध्यान ही नहीं गया। गत दिनों उस समय इनका भांडा फूटा, जब एक भूखण्ड को लेकर स्थानीय सुन्नी मुसलमानों से इन लोगों का विवाद हुआ।इन ईरानियों का संबंध अपराध जगत से है और इस बात के ठोस सबूत भी उपलब्ध हैं। वार्ड नं. 4 के आयुक्त मो. अब्दुल्ला के अनुसार यहां सैकड़ों ईरानी घुसपैठिए के रूप में रह रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ये लोग आतंकवादी एवं देशद्रोही गतिविधियों में भी संलग्न हो सकते हैं। इनमें से कुछ ने अपना नाम मतदाता सूची में भी दर्ज करा लिया है। कुछ ने नाम बदलकर जमीन भी खरीद ली है और कुछ तो राशनकार्ड भी बनवा चुके हैं। उल्लेखनीय है कि ये अवैध ईरानी काफी दिनों से इस कोशिश में लगे हैं कि उन्हें किशनगंज में वैध भारतीय नागरिक की मान्यता मिल जाए। सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि समय-समय पर सरकार की ओर से इनके अवैध नागरिक होने की पुष्टि की गई, पर सारा मामला संचिकाओं में दबकर रह गया। 6 जून, 1988 को पूर्णिया के तत्कालीन जिलाधिकारी रामसेवक शर्मा ने अवैध रूप से यहां बसे ईरानियों के विरुद्ध कड़े कदम उठाए थे। श्री शर्मा ने किशनगंज से इनके निष्कासन का आदेश दिया था तथा इनकी अवैध झोपड़ियों को तुड़वाकर खाली पड़ी जगह को कंटीले तार से घिरवा दिया था। उस जमीन में वृक्षारोपण भी हुआ था पर बाद में धीरे-धीरे ये लोग फिर से बस गए।स्थानीय लोगों का कहना है कि बाद के दिनों में ये लोग शहर के अन्य वार्ड नं. 1, 3, 4 तथा 12 में नाम बदलकर मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने में सफल हो गए। उदाहरणस्वरूप वार्ड नं. 1 में क्रमांक 717 से 722 (6 नाम), वार्ड नं. 3 में क्रमांक 963 से 968 (6 नाम), वार्ड नं. 4 में क्रमांक 855 से 865 (11 नाम) एवं वार्ड नं. 12 में क्रमांक 1582 से 1586 (5 नाम) पर इनके नाम दर्ज हैं। ये कुछ उदाहरण हैं जबकि अनेक ऐसे भी हैं जो चोरी-चुपके पैसे के बल पर अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज करा चुके हैं।उल्लेखनीय है कि निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी सह अनुमंडल पदाधिकारी, किशनगंज के पास श्री आवारा (सिकंदर), पिता अली शेर, मोतीबाग, वार्ड नं. 17, किशनगंज शहरी क्षेत्र, का आवेदन पत्र 15 अप्रैल, 1989 को आया था। इसकी जांच हेतु प्रखंड विकास अधिकारी किशनगंज भेजा गया। जांच में 50 व्यक्तियों को फर्जी पाया गया था। सहायक पंजीकरण अधिकारी, किशनगंज द्वारा जांच प्रतिवेदन का अवलोकन करने के बाद लिखा गया- जांच प्रतिवेदन से ज्ञात होता है कि आवेदकों को भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं है। अतएव उपर्युक्त सभी आवेदकों का दावा अस्वीकृत किया जाता है। हस्ताक्षर एन.के. मिश्र, दिनांक 11 मई, 1989।इस मामले में पाया गया कि अवैध रूप से यहां बसे कई ईरानियों ने अपना नाम हिन्दू नाम रख लिया था, जबकि उनके पिता का नाम मुस्लिम नाम ही था। जैसे- पन्ना लाल (पिता-स्व. मिर्जा अहमद बंग), हीरा लाल (पिता स्व. मिर्जा अहमद बेग), कन्गु रानी (पति – जानु), विलु रानी (पति-अली शेर), सीमा (पति-शब्बीर अली), किशु रानी (पति-अनवर अली)। कुछ मामले तो ऐसे हैं, जिसमें पिता एवं पुत्र दोनों के हिन्दू नाम हैं। ऐसे अनेक मुस्लिम परिवार हैं, जिन्होंने राशन कार्ड बनवाने, मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवाने के लिए अपना नाम पूरी तरह से हिन्दू नाम में बदल दिया है, जबकि इनके असली नाम मुस्लिम नाम ही हैं। वार्ड आयुक्त मो. अब्दुल्ला के अनुसार इन ईरानियों का मुख्य धंधा पूर्वोत्तर राज्यों के आतंकवादियों से हथियारों का लेन-देन, नशीले पदार्थों की तस्करी एवं गंभीर आपराधिक घटनाओं से जुड़ना है। ऐसे लोगों को स्थानीय मुसलमानों का भरपूर सहयोग मिलता रहा है। पर इस बार मामले ने इसलिए करवट बदली, क्योंकि अब्दुल्ला इन लोगों को मोती कर्बला से खदेड़ना चाहता है। उसकी आंख उस विवादास्पद जमीन पर पड़ी है। पहले भी अब्दुल्ला का परिवार जमीन के एक हिस्से को बेच चुका है। बची हुई जमीन भी करोड़ों रुपए की है।19
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