|
कृते प्रति कृर्ति कुर्यार्द्धिसने प्रति हिंसितम्तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत्।उपकारी के प्रति उपकार करना चाहिए और हिंसक कर्म के प्रति हिंसा। इसमें मैं दोष नहीं देखता कि शठ के साथ शठता का व्यवहार किया जाए।-अज्ञातगण-शत्रु कम्युनिस्टगत सप्ताह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री कुप्. सी. सुदर्शन कोलकाता प्रवास पर गए तो ज्योति बसु ने अपनी पुरानी अभद्रता दिखाते हुए कहा कि वे गण-शत्रु हैं और मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कहा कि वे अवांछित मेहमान हैं। गाली-गलौच कम्युनिस्टों का विशिष्ट कर्म रहा है। कामरेड बसु और बुद्धदेव ने सिद्ध किया कि भले ही बिना प्रयास किए उम्र में बढ़ते जाएं परन्तु वैचारिक शालीनता में इंच भर भी नहीं बढ़ेंगे। वास्तव में देखा जाए तो माक्र्सवादियों के लिए पश्चिम बंगाल में रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, सुभाष चन्द्र बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी अवांछित रहे हैं। यह अलग बात है कि देशभक्ति के दर्पण में कम्युनिस्ट पूरे भारत में ही अवांछित विचारधारा वाले हैं। ऐसे लोगों की विचारधारा को तो मेहमान विचारधारा भी नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह आक्रामक और अराष्ट्रीय ही कहे जा सकते हैं।जीवनभर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को अभद्र भाषा में निंदा का निशाना बनाने वाले माक्र्सवादी कम्युनिस्टों को अब अहसास हुआ है कि वे गलत थे। उन्हें यह अहसास करने में अभी कितने साल और लगेंगे कि भारत और भारतीयता के बारे में उन्होंने जो कुछ कहा और सोचा वह गलत था। नेताजी के बारे में उन्हें अपनी गलती सुधारने में 55 साल लग गए तो क्या अब देश को उनका आभारी होना चाहिए? नेताजी के बारे में अपने विचार-भ्रम को स्वीकार करते हुए पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने माफी मांगी है। लेकिन अभी तक कम्युनिस्टों ने अंग्रेजों के साथ सांठगांठ कर किए गए अपने देशविरोधी कार्यों की माफी नहीं मांगी है और न ही उन्होंने गांधी और सावरकर के विरुद्ध अपनी अक्षम्य अभद्रताओं के लिए माफी मांगी है। 1962 के चीन युद्ध के समय देश का साथ छोड़कर चीन का समर्थन किया, आपातकाल का समर्थन किया, आपातकाल में लोकतंत्र पर हुए कुठाराघातों पर चुप रहे और भाकपा (माले) ने जन-युद्ध के नाम पर कभी नक्सलबाड़ी, कभी तेलंगाना तो कभी बिहार, बस्तर, झारखण्ड, उड़ीसा और केरल में हजारों निर्दोष खेतिहर मजदूरों, किसानों, वनवासियों, छात्रों और अध्यापकों की हत्याएं कीं। किस-किस की माफी मागेंगे ये कम्युनिस्ट?अपने-अपने स्वभाव के बंदीपाकिस्तान ने एक बार फिर इस्लामाबाद में भारतीय राजनयिक श्री सुधीर व्यास के साथ अवैध और अशोभनीय व्यवहार किया। यह उस समय किया गया जब श्री व्यास के साथ उनकी धर्मपत्नी भी थीं। भारत ने गुस्से में आकर विरोध प्रकट किया, बयान दिया और दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग में काम कर रहे चार लोगों को पाकिस्तान भेज दिया। तुरन्त पाकिस्तान ने भी इस्लामाबाद में कार्यरत चार भारतीय राजनयिकों को भारत भेजने के आदेश दिए। यह कैसा खेल चल रहा है? पाकिस्तान में भारतीय राजनयिक के साथ यह पहली घटना नहीं है, वहां अक्सर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं और हम भी शायद इन घटनाओं के उसी तरह आदी हो गए हैं जैसे हम जम्मू-कश्मीर में इस्लामी आतंकवाद के आदी हैं। पाकिस्तान से हमारे विरोध की पराकाष्ठा यही है कि हमने वहां से अपना उच्चायुक्त वापस बुला लिया और नए उच्चायुक्त को काम संभालने के लिए भेजा नहीं है। इससे ज्यादा हम कुछ करेंगे, यह पाकिस्तान भी नहीं मानता। ऐसा लगता है, इस्लामाबाद और दिल्ली, दोनों ने अपने-अपने कर्मों की परिधि और स्वभाव की बंदिशें जान ली हैं।3
टिप्पणियाँ