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आयात और निर्यात में मिसालवैश्विक मंदी, युद्ध और सार्स के संकटकालीन दौर में भी भारत ने आयात-निर्यात में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है। यह कहना है भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्री अरुण जेटली का। पिछले दिनों पाञ्चजन्य से एक विशेष भेंट में श्री जेटली ने आंकड़ों की मदद से अपने विभाग के उल्लेखनीय प्रदर्शन की जानकारी दी। भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में निर्यात की मात्रा में बढ़ोत्तरी की है, चाहे वह क्षेत्र समुद्री उत्पादों का हो, जिसमें 13.1 प्रतिशत निर्यात बढ़ा है या लौह अयस्क का, जिसमें 112.9 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई। ये आंकड़े वर्ष 2002-2003 के हैं। श्री जेटली ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2002-2003 के दौरान भारत का निर्यात 51,702.22 मिलियन अमरीकी डालर का रहा, जो बीते वर्ष की तुलना में 18.5 प्रतिशत अधिक है। रुपए की दृष्टि से वित्तीय वर्ष 2002-2003 में निर्यात 25,0130.02 करोड़ रुपए का रहा, जो बीते वर्ष के निर्यात से 19.67 प्रतिशत अधिक था।इसका खुलासा करते हुए श्री जेटली ने बताया कि आयात-निर्यात के सम्बंध में भारत का स्पष्ट लक्ष्य है, वर्ष 2007 तक वैश्विक व्यवसाय के एक प्रतिशत भाग पर अधिकार करना। इस वर्ष भारत दुनिया के कुल व्यवसाय का 0.8 प्रतिशत भाग हासिल कर चुका है और वि·श्व के पहले 30 निर्यातक देशों में स्थान बनाने में कामयाब हुआ है।चीन के व्यवसाय और उद्योग पर दुनिया की नजर रहती है। चीनी वस्तुओं ने दुनिया के बाजारों में अपनी धाक जमा रखी है। पर भारत ने इस मान्यता को भी धता बताई। जेटली के अनुसार पिछले वर्ष भारत की ओर से चीन को होने वाला निर्यात एक ही वर्ष में लगभग 96 प्रतिशत बढ़ा है। उधर अमरीका के साथ भी व्यापार में एक वर्ष में 26-27 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है। सिंगापुर से व्यापार में लगभग 56 प्रतिशत वृद्धि हुई है। खाड़ी देशों के साथ व्यापार करीब 33 प्रतिशत बढ़ा। कहने का अर्थ है कि मंदी के बीते वर्ष में रुपए की कीमत मजबूत की जा रही थी और डालर के मुकाबले रुपए के मजबूत होने का सीधा सम्बंध निर्यात से होता है।11 सितम्बर के बाद की परिस्थितियों, युद्ध व सार्स के कठिन दौर में 12 प्रतिशत का लक्ष्य प्राप्त करना कठिन ही था, पर भारतीय उद्योग का 18 प्रतिशत लक्ष्य को छूना गजब ही माना जाएगा। वाणिज्य और उद्योग मंत्री का कहना था कि स्वदेशी की कल्पना भाषणों और साक्षात्कारों से नहीं अपितु भारतीय उद्योगों को वै·श्विक प्रतिस्पर्धा में शक्तिशाली बनाने से साकार होती है।अरुण जेटली का दावा-स्वदेशी की भावना का अवलम्बनभारतीय उद्योगों को दुनिया में आज जो स्थान प्राप्त है, उसके पीछे कुछ कारण हैं। जैसे, जिस तरह का व्यापार माहौल बनाया गया है और घरेलू उदारीकरण की जो प्रक्रिया चल रही है, उससे भारतीय उद्योग प्रतियोगी होते जा रहे हैं। उद्योगों को अधिक प्रतियोगी बनाना है तो जाहिर है उन्हें सुविधाएं भी अधिक देनी होंगी। लेकिन आज भी हिन्दुस्थान में ब्याज-दरों को घटाने पर तर्क-वितर्क चल रहे हैं जबकि अन्य देशों में निर्यातकों को 2 से 5 प्रतिशत की दर से ऋण मिलता है। अन्य देशों में निर्यात करने वाले उद्योगों पर श्रम कानून लागू नहीं होते जबकि भारत में श्रम कानून लागू होते हैं। इन सब समस्याओं के कारण भारतीय उद्योग बंधे हुए हैं, उनकी लागत की कीमत कहीं ज्यादा होती है, फिर भी वे दुनिया के अन्य निर्यातकों के साथ मुकाबला कर रहे हैं। शायद यही कारण था कि भारत की वर्तमान आयात-निर्यात नीति में अनेक योजनाएं घोषित की गईं ताकि भारत के निर्यातकों को एक संबल मिल सके। सेवा क्षेत्र निर्यात को इस नीति में जोड़ा गया। देश में लगभग 37 निर्यात समूह हैं जो एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत का निर्यात करते हैं। पिछले वर्ष देश का कुल निर्यात, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र को छोड़कर, ढाई लाख करोड़ रुपए का था। इसकी तुलना में, तेल क्षेत्र को छोड़कर कुल आयात का लगभग आधा भाग उनका है जो निर्यात के लिए उत्पादों का पहले आयात करते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में रत्न, हीरे, स्वर्ण मंगाए जाते हैं जिनको सुधारकर, आभूषण बनाकर निर्यात किया जाता है। सरकार ने सीमा-कर घटाकर आयात के लिए आवश्यक उत्पाद लाए जाने में राहत प्रदान की है।स्वदेशी अर्थतंत्र, श्री जेटली के अनुसार, यही है कि देश का माल बाहर ज्यादा जाए और बाहर का माल देश में कम आए। उन्होंने कहा कि अपने पड़ोसी देशों अर्थात अपने क्षेत्र के अन्य देशों के साथ व्यापार संधियां करना अधिकांशत: लाभप्रद रहता है। श्रीलंका के साथ भारत की मुक्त व्यापार क्षेत्र संधि है जिसके परिणामस्वरूप भारत हर साल श्रीलंका को 3,000 करोड़ रुपए का माल भेजता है जबकि श्रीलंका से 300 करोड़ रुपए का माल भारत आता है। राजग सरकार द्वारा उदारीकरण के माध्यम से घरेलू उद्योगों को दी गई सहूलियतों का यह सुपरिणाम है। द प्रस्तुति : आलोक गोस्वामी18
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