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अभी दूर है समझौता9 मई, 2003 को नेपाल सरकार और माओवादी नेताओं के बीच दूसरे दौर की वार्ता सम्पन्न हुई। वार्ता में दोनों पक्षों के बीच कुछ मुद्दों पर तो सहमति हुई लेकिन राजनीतिक एजेण्डे पर कोई बातचीत नहीं हो पायी। दोनों पक्षों के बीच सम्पन्न समझौते के अनुसार नेपाल सरकार की सेना वार्ता अवधि तक अपने शिविरों के आसपास 5 कि.मी. की दूरी तक रहेगी। वार्ता के लिए बनाई गई आचार संहिता के कार्यान्वयन हेतु एक 13 सदस्यीय अनुगमन दल का गठन किया जाएगा और इस दल का नेतृत्व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग करेगा। इसके अलावा अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधि भी इस दल के सदस्य होंगे।श्री 5 की सरकार और माओवादी नेताओं के बीच इससे पहले 6 मई को सम्पन्न हुई पहले चरण की वार्ता में विद्रोही माओवादी पक्ष ने 24 सूत्रीय मांग रखी थी। इन मांगों पर सरकारी पक्ष की प्रतिक्रिया दूसरे दौर की वार्ता में उठाए जाने की प्रबल सम्भावना भी थी। परन्तु दूसरे चरण की वार्ता में ऐसी कोई बातचीत नहीं हो सकी। दोनों पक्षों की सहमति से बनने वाले अनुगमन दल के लिए भी एक आचार संहिता बनायी गई है। इस आचार संहिता के अनुसार सरकार और माओवादी दल के सदस्यों को सम्बंधी कोई भी पहलू व्यक्त करते समय इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे जो बोलें उनसे एक ही संदेश जाए।जिन शर्तों के आधार पर दोनों पक्षों ने युद्ध विराम की घोषणा की है, उनका भी पालन हो रहा है या नहीं, इसकी निगरानी करने की व्यवस्था की गयी है। इसके लिए जिलों में अलग-अलग अनुगमन दल बनाए जाएंगे।पहले चरण की वार्ता में चार सदस्यीय मध्यस्थ दल का गठन किया गया था। इनकी जिम्मेवारी और अधिकार क्षेत्र का निर्धारण दूसरे दौर की वार्ता में किया गया। इसके अनुसार उन्हें वार्ता को सुगम बनाने के लिए सकारात्मक भूमिका निभानी होगी, वार्ता के सम्बंध में दोनों पक्षों द्वारा या एक ही पक्ष द्वारा आवश्यक सुझाव मांगे जाने पर उसे सुझाव देना होगा और वार्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली अभिव्यक्ति से परहेज रखना होगा।नेकपा (माओवादी) ने दूसरे चरण की वार्ता में सरकार द्वारा गिरफ्तार किए गए 325 बन्दियों को रिहा किए जाने और मुकदमे खारिज करने की मांग की। सरकार ने इन मांगों पर तत्काल कोई निर्णयात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन सकारात्मक निर्णय लेने का संकेत अवश्य दिया है। दूसरे चरण की वार्ता में माओवादियों की तथाकथित सेना (जन मिलिशिया) के सम्बंध में किसी प्रकार का लिखित निर्णय नहीं होना, शाही सेना के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। वैसे, अघोषित रूप से शाही सेना इस निर्णय का पालन करने के पक्ष में नहीं दिखाई देती। अगर इसके लिए सरकार ने सेना के ऊपर ज्यादा दबाव डाला तो परिस्थिति बिगड़ सकती है।इस वार्ता पर नेपाल के राजनीतिक दलों की सकारात्मक प्रतिक्रिया है। नेपाली कांग्रेस के सभापति एवं पूर्व प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोईराला ने तो यहां तक कहा है कि वर्ष 2046 में प्राप्त प्रजातांत्रिक अधिकार के तहत अगर किसी माओवादी नेता के नेतृत्व में भी सर्वदलीय सरकार बनती है तो उसमें हम लोग भी शामिल हो सकते हैं। एक ओर 7 वर्षों से हिंसात्मक आन्दोलन करती आ रही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और नेपाल सरकार चरणबद्ध वार्ता में जुटी है, वहीं दूसरी ओर नेपाल की विघटित संसद में प्रतिनिधित्व करने वाली पांच राजनीतिक पार्टियों ने पहले चरण के आन्दोलन के बाद दूसरे चरण के आन्दोलन की घोषणा कर डाली है। इन पांच राजनीतिक दलों द्वारा जारी संयुक्त आन्दोलन का अगर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने खुलकर समर्थन किया तो यह आन्दोलन देश के कोने-कोने में फैल सकता है। अब देखना यह है कि सरकार की ओर से माओवादियों द्वारा प्रस्तुत राजनीतिक एजेण्डे पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया आती है और कैसा राजनीतिक समीकरण बनता है।9
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