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सतना के चर्च में हो रही हैं घोर-अनियमितताएं

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Nov 8, 2002, 12:00 am IST
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दिंनाक: 08 Nov 2002 00:00:00

चर्च की तिजोरी-चर्च के लुटेरे?द प्रतिनिधिसतना (मध्य प्रदेश) में आजकल चर्च लोगों की चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्च के पादरियों और डायसिस सोसायटी के निदेशक एवं निवर्तमान बिशप सहित सात लोगों के विरुद्ध अदालत में भारतीय दंड विधान (भा.दं.वि.) की धारा 420 के तहत अभियोग पंजीकृत किया गया है। धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के मामलों में चर्च से जुड़े कई लोगों पर अदालत में अभियोग दाखिल होने पर सतनावासी चर्चा कर रहे हैं कि आखिर इस चर्च में और क्या-क्या चलता रहा है? उल्लेखनीय है कि सतना का यही चर्च सन् 2000 में सुर्खियों में छाया हुआ था जब यहां बड़े पैमाने पर भोले-भाले लोगों का जबरन मतान्तरण किया गया था। (देखें पाञ्चजन्य 5 नवम्बर, 2000 अंक में)बहरहाल, प्राप्त ताजा जानकारी के अनुसार उपरोक्त चर्चाधिकारियों के विरुद्ध चर्च पेरिश काउंसलर के वरिष्ठ सदस्य क्रिस्टोफर पेवी ने, जो सतना चर्च से ही जुड़ा है ने अभियोग दाखिल किया है। क्रिस्टोफर द्वारा अदालत में उपलब्ध कराए साक्ष्यों और दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद सतना के प्रथम श्रेणी दण्डाधिकारी ने 17 मई, 2002 को प्रथम दृष्ट्या अपराध के आधार पर सतना डायसिस समिति के निदेशक एवं निवर्तमान बिशप डा. अब्राहम डी. मट्टम, सतना चर्च के पादरी एवं समिति के कोषाध्यक्ष पादरी वर्गीस पारापिल्ली, पादरी आगस्टाइन वेल्लूरान, पादरी जाब, नन ग्रेस, नन लाइलेट व नन लेटुस के विरुद्ध भा.दं.वि. की धारा 420 के तहत मुकदमा पंजीबद्ध किया। उल्लेखनीय है कि 28 सितम्बर, 2000 को इसी मामले में भा.दं.वि. की धारा 406, 409, 420, 467, 468, 471 और 120 बी के तहत अधिवक्ता रवि श्रीवास्तव ने न्यायिक दण्डाधिकारी के समक्ष एक विवाद पत्र प्रस्तुत किया था।बीते 2-3 वर्षों में सतना के इस चर्च में जबरन मतान्तरण के अलावा और क्या कुछ चलता रहा है, उसकी जानकारी अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत विवरणों से हो जाती है। पैसे का कितना दुरुपयोग किया गया और कितनी लूट हुई, वह भी स्पष्ट है। इस चर्च को विदेशों से प्रतिवर्ष एक करोड़ रुपए से ज्यादा का चंदा प्राप्त होता है, जिसका सारा लेन-देन पूर्व बिशप और पादरी के हाथों में ही है। किसी तीसरे को उसमें झांकने तक की सख्त मनाही है। इतना ही नहीं, डायोसिस समिति के नाम पर शहर में कई मकान व अन्य प्रकार की संपत्ति है। इस संपदा का उपयोग ईसाई समुदाय के हित में नहीं होता था, अपितु बड़े मठाधीश इसका निजी कार्यों में उपयोग करते थे। जैसे समिति के उपयोग हेतु एक कार खरीदी गई थी, जिसका पंजीयन समिति के नाम से न करके पूर्व बिशप अब्राहम डी. मट्टन ने अपने नाम से कराया था। बाद में वह कार एक लाख 25 हजार रुपए में बेच दी गई पर समिति के कागजों में विक्रय कीमत 92,501 रु. दर्शायी गई यानी 29,499 रुपए की साफ हेराफेरी की गई।इसी तरह पादरी वर्गीस और पादरी आगस्टाइन ने चर्च के पैसों से एक भूभाग खरीदा पर उसका पंजीकरण अपने नाम पर करवाकर बाद में उसे बेच दिया। उसमें भी इन दोनों पादरियों ने मोटी रकम हथियाई। ऐसे ही न जाने कितने अवसरों पर उपर्युक्त लोगों ने चर्च की संपत्ति को धोखे से कागजों पर अपने नाम करवा कर बेचा और मोटी रकम बनाई है। उपरोक्त दोनों उदाहरणों के अलावा एक अन्य कार और भूभाग को भी लाखों रुपए का फायदा उठाकर अपने नाम से चर्च के इन अनुयायियों ने बेचा था। बिशप और पादरियों के इसी भ्रष्टाचारी चाल-चलन के कारण चर्च से जुड़े विद्यालय और अस्पताल में भी घोर अनियमितताएं चल रही थीं। स्थानीय ईसाई समाज में इन घटनाओं को लेकर कुलबुलाहट तो थी, पर कोई सामने नहीं आना चाहता था।अंतत: इसी समुदाय के एक वरिष्ठ सदस्य क्रिस्टोफर पेवी, जो चर्च पेरिश काउंसलर के 9 वर्ष तक सदस्य भी रहे हैं; ने खिन्न होकर सतना के प्रथम श्रेणी दण्डाधिकारी की अदालत में पूरा ब्यौरा लिखकर दिया, जिसको अदालत ने पंजीबद्ध करके अभियोग चलाने की अनुमति प्रदान की है। उल्लेखनीय है कि भा.दं.वि. की धारा 420 के अंतर्गत धोखाधड़ी व भ्रष्टाचार से जुड़े अभियोग होते हैं। सतना का ईसाई समाज बिशप और पादरियों पर लगे अभियोग से, एक ओर खीझा हुआ तो है, पर दूसरी, ओर इसके कारण भ्रष्टाचार पर लगने वाली लगामपर संतोष भी अनुभव कर रहा है। बहरहाल, 5 सितम्बर, 2002 को सातों अभियुक्त न्यायालय में प्रस्तुत होंगे और मामले पर निर्णायक कार्रवाई शुरू होगी।33

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