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नेपाल

Archive Manager by Archive Manager
Sep 12, 2001, 12:00 am IST
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दिंनाक: 12 Sep 2001 00:00:00

वे क्या कहते हैं…26 नवम्बर की रात से नेपाल में आपातकाल की घोषणा, माओवादियों को आतंकवादी घोषित कर आतंकवाद पर नियंत्रण करने की जिम्मेदारी सेना के हाथ में सौंपे जाने की कार्रवाई को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। विभिन्न राजनीतिज्ञ एवं राजनीतिक दल आपातकाल की घोषणा को आवश्यक मान रहे हैं, लेकिन माओवादियों की आतंकवादी गतिविधियों का खुले शब्दों में समर्थन न करते हुए भी कम्युनिस्ट विचारधारा वाले राजनीतिज्ञ एवं राजनीतिक दल बीच का रास्ता तलाशना चाहते हैं। माओवादियों के आतंकवादी क्रियाकलापों का न तो वे समर्थन करते हैं और न ही यह चाहते हैं कि सेना लम्बे समय तक संघर्षरत रहे।सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस के महामंत्री श्री सुशील कोइराला का इस सम्बंध में कहना है कि आपातकाल की घोषणा तो हुई परन्तु इसमें थोड़ा विलम्ब हो गया। यदि कुछ समय पहले आपातकाल की घोषणा हुई होती तो माओवादियों का मनोबल इतना नहीं बढ़ता। उनके विचार में जब तक माओवादी संविधान को दिल से स्वीकार कर शस्त्रों सहित आत्मसमर्पण नहीं करते, तब तक उनके साथ सरकार को वार्ता नहीं करनी चाहिए।नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की अध्यक्षा श्रीमती शाहाना प्रधान ने माओवादियों की यह कहकर आलोचना की है कि उन्हें वार्ता की मेज से भागना नहीं चाहिए था। वहीं उनका यह भी कहना है कि अध्यादेश के द्वारा जनता के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लग जाने से प्रजातंत्र पर खतरे की संभावना है। उनका सुझाव है कि माओवादी समस्या का समाधान वार्ता के द्वारा करने की कोशिश फिर से शुरू होनी चाहिए।नेपाल मजदूर किसान पार्टी के अध्यक्ष श्री नारायणमान बिजुक्छे भी कहते हैं कि आपातकाल की घोषणा से प्रजातन्त्र पर खतरे की सम्भावना रहती है। अत: सरकार को चाहिए कि वह आपातकाल की घोषणा को वापस ले और माओवादी भी हत्या, हिंसा का रास्ता छोड़कर वार्ता की मेज पर फिर से आने का प्रयास करें।संसद के निचले सदन, प्रतिनिधि सभा में सांसद परी थापा, जो कि उग्र वामपंथी पार्टी के नजदीक माने जाते हैं, का कहना है कि माओवादियों की कुछ गतिविधियां आतंकवादी होने पर भी राजनीतिक दृष्टि से वे आतंकवादी नहीं हैं। इसलिए माओवादी समस्या के बहाने आपातकाल की घोषणा करना उचित नहीं लगता। सेना को सख्ती दिखाने का आदेश आपातकाल घोषित किए बिना भी दिया जा सकता था।सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस के प्रवक्ता श्री अर्जुन नरसिंह का कहना है कि जिस तरह माओवादी वार्ता भंग कर हिंसात्मक गतिविधियों में जुट गए उससे लगता है कि वे आतंकवादी हैं और उनकी वार्ता के द्वारा समस्या के समाधान की सोच कभी रही ही नहीं। इसलिए आपातकाल की घोषणा सर्वथा उचित एवं सामयिक है।नेपाल मानवाधिकार संगठन के अध्यक्ष श्री सुदीप पाठक गोलमोल भाषा का प्रयोग कर माओवादियों को आतंकवादी नहीं मानते। वे संविधान के अनुसार सरकार की सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा होने से संसदीय प्रजातंत्र पर किसी प्रकार का खतरा भी नहीं मानते।संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए नेपाल के पूर्व स्थायी राजदूत डा. जयराज आचार्य का सुझाव है कि सैनिक परिचालन में विलम्ब होने से माओवादियों का मनोबल बढ़ा। उनका यह भी कहना है कि जब तक आतंकवादियों का सफाया नहीं हो जाता, तब तक इसे वापस नहीं लेना प्रजातंत्र के हित में होगा। विघटित पंचायती व्यवस्था में प्रधानमंत्री रह चुके श्री कीर्तिनिधि बिष्ट ने आपातकाल का स्वागत करते हुए कहा है कि जिस तरह माओवादी अनियन्त्रित रूप से आतंक फैला रहे थे उस परिस्थिति में आपातकाल लागू होना अनुचित नहीं माना जा सकता।राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के अध्यक्ष एवं पंचायतकालीन पूर्व प्रधानमंत्री श्री सूर्य बहादुर थापा का कहना है कि आपातकाल की घोषणा सम्बंधी सिफारिश करने का अधिकार संविधान ने सरकार को दे रखा है और सरकार ने उसी के तहत सिफारिश की है लेकिन सरकार का यह कहना गलत है कि सभी दलों की सहमति से आपातकाल लगाने सम्बंधी सिफारिश की है। जहां तक इस समस्या का समाधान करने की बात है, इस सम्बंध में मेरी सोच यह है कि राष्ट्रीय समस्या का समाधान राष्ट्रीय सहमति से ही हो सकता है।नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एमाले) के केन्द्रीय सदस्य एवं सार्वजनिक लेखा समिति के सभापति सुभाष नेवांग का कहना है कि आपातकालीन स्थिति उत्पन्न करने में माओवादियों की मुख्य भूमिका है। साथ ही नेपाली कांग्रेस पार्टी के एक दशक के शासनकाल में जो अप्रजातांत्रिक क्रियाकलाप हुए, वे भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।21

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