|
सुलझाना चाहतेये लोग?द विशेष प्रतिनिधिजम्मू-कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों से लोगों का पलायन दिनोंदिन एक समस्या बनता जा रहा है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अब तक इन क्षेत्रों से 48,000 परिवारों का पलायन हुआ है, जिनमें से 28,500 परिवार जम्मू और आसपास के क्षेत्रों में बस गए हैं, जबकि अन्य दिल्ली, चंडीगढ़ और कुछ अन्य स्थानों पर बसे हैं।जम्मू के आतंकवाद प्रभावित डोडा जिले से भी लगभग 100 परिवार पलायन कर चुके हैं। यद्यपि भाजपा के जनजागरण अभियान और सरकारी प्रयासों से अभी यहां से पलायन करने वाले परिवारों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। लेकिन वि·श्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि पिछले चार साल में जहां डोडा में आतंकवादी गतिविधियां बढ़ने के कारण लोग पलायन कर रहे हैं, वहीं स्थानीय प्रशासन के अधिकारी भी लोगों को पलायन के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।पलायन करने वाले जहां अधिकांश हिन्दू परिवार हैं, वहीं लगभग 500 से अधिक अन्य परिवार भी विस्थापित होकर जम्मू में बस गए हैं। इनमें पुंछ और राजौरी जिलों से आए विस्थापितों की संख्या सबसे ज्यादा है। ये लोग जम्मू और उसके आसपास के क्षेत्रों में बसे हुए हैं। चार साल पहले जब नेशनल कान्फ्रेंस सत्ता में आई थी, तब उसने घोषणा की थी कि विस्थापितों का पुनर्वसन उसकी कार्यसूची में सबसे ऊपर होगा। लेकिन चार साल बीत जाने के बाद भी शायद ही किसी विस्थापित परिवार के पुनर्वसन की उचित व्यवस्था सरकार कर पायी हो, जबकि इस बीच विस्थापितों की संख्या में दोगुनी वृद्धि हुई है। व्यवस्थित रूप से पुनर्वसन इन विस्थापितों की पहली मांग है। अपनी इस मांग के संदर्भ में ये विस्थापित रोज कहीं न कहीं धरना और प्रदर्शन करते हैं। इन विस्थापितों के कारण जम्मू की जनसंख्या में तो वृद्धि हुई है, साथ ही अनेक समस्याएं भी बढ़ी हैं। इनमें एक है अवैध कब्जे की समस्या। कुछ सप्ताह पूर्व जंगलों और उसके आसपास की जमीन पर अवैध कब्जे की सूचना मिली थी। बठिंडी -नरवाल क्षेत्रों में जंगलों पर कब्जे का प्रमाण तब मिला, जब कुछ झाड़ियां जलाते हुए, उसकी आग में कुछ विस्थापित जीवित जल गए थे। कहा जा रहा है कि इस तरह के अवैध कब्जों के पीछे राज्य सरकार के नेताओं का भी हाथ है। यह भी कहा जा रहा है कि नेशनल कान्फ्रेंस इस प्रकार की गतिविधियों पर जानबूझकर अंकुश नहीं लगा रही है। उसकी कोशिश मंदिरों के शहर जम्मू और उसके आसपास के क्षेत्रों में जनसांख्यिक परिवर्तन करना है।उल्लेखनीय है कि विस्थापितों के लिए राहत कार्यों पर हुए खर्चे का भुगतान केन्द्र सरकार करती है। आरोप है कि इस राहत राशि में भी राज्य सरकार के नेताओं को अच्छी-खासी रकम मिलती है। इसलिए वे भी इस समस्या को सुलझाना नहीं चाहते। पिछले एक दशक में केन्द्र सरकार विस्थापितों के पुनर्वसन पर 1000 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। इसके बावजूद दिनोंदिन यह राशि सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही है।27
टिप्पणियाँ