चीन ने भी खोजे 'प्रभु श्रीराम के पदचिह्न, रामायण के ऐतिहासिक महत्व पर लगाई मुहर
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चीन ने भी खोजे ‘प्रभु श्रीराम के पदचिह्न, रामायण के ऐतिहासिक महत्व पर लगाई मुहर

चीनी विद्वानों का मानना है कि श्रीराम और हनुमान जैसे प्रमुख पात्रों के किस्से बौद्ध ग्रंथों में शामिल हैं, जो कि चीन और भारत के सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाते हैं।

by SHIVAM DIXIT
Nov 3, 2024, 10:36 pm IST
in भारत, धर्म-संस्कृति
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बीजिंग । प्रभु श्रीराम का अस्तित्व और रामायण की गाथा केवल कल्पना नहीं है, बल्कि यह इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अब भारत के पड़ोसी देश चीन ने भी श्रीराम के अस्तित्व को मान्यता देते हुए रामायण के ऐतिहासिक महत्व पर अपनी मुहर लगा दी है। बीजिंग में आयोजित “रामायण- एक कालातीत मार्गदर्शिका” संगोष्ठी में चीनी विद्वानों ने रामायण के प्रति अपनी स्वीकृति जताई और दावा किया कि चीनी बौद्ध धर्मग्रंथों में भी श्रीराम की कहानियों के प्रमाण हैं।

बौद्ध धर्मग्रंथों में श्रीराम के पदचिह्न

सिचुआन विश्वविद्यालय के चीन दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर किउ योंगहुई ने बताया कि चीन के फुज़ियान प्रांत के क्वानझोउ संग्रहालय में हिंदू देवताओं की मूर्तियों के प्रमाण मिले हैं। चीनी स्कॉलरों ने अपने अध्ययन के दौरान प्रमाणिक रूप से यह पाया है कि हनुमान को वानरों के राजा के रूप में वर्णित किया गया है। चीनी विद्वानों का मानना है कि श्रीराम और हनुमान जैसे प्रमुख पात्रों के किस्से बौद्ध ग्रंथों में शामिल हैं, जो कि चीन और भारत के सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाते हैं।

हनुमान और चीनी पौराणिक पात्र ‘सन वुकोंग’ में समानता

चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर लियू जियान ने अपनी प्रस्तुति में यह बताया कि चीनी साहित्य में अत्यंत लोकप्रिय पात्र सन वुकोंग की छवि हनुमान से मिलती-जुलती है। यह समानता दर्शाती है कि कैसे हनुमान की कहानी ने चीनी लोककथाओं में भी स्थान बनाया। चीनी स्कॉलर जियांग जिंगकुई ने भी रामायण के चीन और तिब्बत तक के प्रसार का उल्लेख किया, जो चीन के हान और तिब्बती संस्कृति में रामायण के तत्वों की व्याख्या और पुनर्प्रस्तुति को दर्शाता है।

रामायण का तिब्बती संस्कृति पर गहरा प्रभाव

जियांग ने कहा कि तिब्बत में रामायण का प्रभाव तुबो साम्राज्य के समय से ही मौजूद है, और इसे न केवल साहित्यिक कृतियों बल्कि नाट्य प्रदर्शनों के माध्यम से भी प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने बताया कि रामायण ने तिब्बती समाज में आदर्श व्यक्तित्व की अवधारणा को प्रस्तुत किया है। चीनी विद्वान जुआनजैंग के सातवीं शताब्दी में भारत दौरे के दौरान वे रामायण की कई कहानियां वापस ले गए थे। रामायण के प्रथम चीनी अनुवादक जी जियानलिन ने 1980 में इस महाकाव्य का अनुवाद किया, जो चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बना।

रामायण में आदर्श समाज का चित्रण

प्रोफेसर जियांग ने कहा कि रामायण केवल एक महाकाव्य नहीं है, बल्कि यह आदर्श व्यक्तित्व और आदर्श समाज की व्याख्या भी करती है। राम के चरित्र और ‘राम राज्य’ की अवधारणा ने भारतीय संस्कृति में आदर्श की कई आयाम प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने बताया कि रामायण का चीन में प्रसार केवल धार्मिक दृष्टिकोण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अंतर-सांस्कृतिक क्लासिक के रूप में एक महत्वपूर्ण जीवन दर्शन भी है।

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