अयोध्या में श्रीराम मंदिर का बनना और अबूधाबी में श्री स्वामिनारायण मंदिर का निर्माण होना, इसके पीछे अवश्य कोई ईश्वरीय संकेत है। अरब और हिंदुस्थान के बहुत पुराने संबंध रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि गणित का अंकज्ञान अरबस्थान से पश्चिमी देशों में गया। अरबस्थान में हिंद से आए गणित के अंकों के लिए ‘हिंद्सा’ शब्द प्रयोग होता था।
वर्तमान में संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) और भारत के संबंध घनिष्ठ होते जा रहे हैं। अबूधाबी में मंदिर का निर्माण कर यू.ए.ई. और भारत ने विश्व को ‘एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति’ का संदेश देने का प्रयास किया है। अबूधाबी के मंदिर की दीवारों पर पर कुरान शरीफ व बाइबल की भी पंक्तियां उकेरी गई हैं। यह ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का परिचायक है।
कट्टरता का संदेश देने वाला बाबरी ढांचा गिर गया और ‘अमन और शांति’ का संदेश देने वाली भारतीय मस्जिद अयोध्या में यानी भारत की सांस्कृतिक राजधानी में खड़ी हो, इस घटना के पीछे भी ऊपर वाले की इच्छा काम करती होगी। अयोध्या में जो नई मस्जिद खड़ी होगी, वह सही अर्थ में भारतीय होगी। भूलकर भी बाबर के साथ उसका कोई रिश्ता नहीं होगा। वह ‘अयोध्या’ की मस्जिद होगी, शांति और अमन का संदेश देने वाली होगी, उसकी पहचान भी मस्जिद-ए-अमन हो।
भारतीय उपमहाद्वीप के सभी देश और संयुक्त अरब अमीरात के सारे देश मिलकर शांति का, अमन का, सहिष्णुता का, भाईचारे का, मानवता का संदेश लेकर खड़े हो जाएं, तो दुनिया को युद्ध, संघर्ष, खूनखराबे से बचाया जा सकता है। भारत के मुसलमान समाज को भारत की संतान होने का गौरव स्वाभाविक रूप से होना चाहिए, वे म्लेच्छ नही हैं। तुर्क, मुगल म्लेच्छ थे, आक्रमणकारी थे।
उन्होंने यहां के समाज के पूजास्थानों को तोड़कर भारत की सर्वसमावेशी परंपरा को बदलने का प्रयत्न किया। आक्रमणकारियों ने मंदिर, बौद्धविहार, जैन मंदिर तोड़कर जबरदस्ती जो मस्जिदें बनवाईंं, वे हमेशा कट्टरता का ही संदेश देती रहेंगी। उनमें से अमन की खुशबू आएगी ही नहीं। क्या आक्रमणकारियों द्वारा पूजास्थलों को तोड़कर बनाई गईं मस्जिदों को भारतीय मस्जिद कह सकते हैं? अमन और शांति की साधना के लिए ‘अपने’ स्थान चाहिए।
मुसलमान समाज ऐसे जबरदस्ती खड़ी की गईं मस्जिदों में नमाज अदा करने का आग्रह रखता आया है। क्या वह नमाज सर्व शक्तिमान अल्लाताला को मंजूर होती है? शायद पिछड़े, गरीब, आधुनिक शिक्षा से वंचित रहने का यह भी एक कारण हो सकता है। जबरन बनाई गई मस्जिदें नमाज के लिए उपयोग में न लाने में ही मुसलमान सहित सर्व समाज का कल्याण होगा।
मुसलमान खुद को बाहर से आई हुई कोई ‘कौम’ न मानें। जैसे जैन समाज, बौद्ध समाज, सिख समाज, वैष्णव, शैव, शाक्त, सरना समाज है, वैसे ही मुसलमान समाज है। इन सभी समाजों से मिलकर ही विशाल भारतीय समाज बनता है। ‘कौम’ शब्द से अलगाव की गंध आती है। मुसलमान ‘कौम’ और हिंदू ‘कौम’, ऐसे दो अलग ‘कौम’ मानकर सभी समस्याएं हल करने का प्रयत्न हुआ है।
इस कारण देश का विभाजन देखना पड़ा। ‘कौम’ की मानसिकता से ही ‘बाबरी एक्शन कमेटी’ का निर्माण हुआ। जबरदस्ती खड़े किए गए एक ढांचे को हटाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। आज जो हल निकला है, वह पहले भी निकल सकता था। भारत की विरासत, सबकी साझी विरासत, गौरव के स्वाभिमान के विषय सबके समान होने चाहिए। भारत की विजय सबकी विजय होती है।
भारत का समाज अनेक मतावलंबियों से मिलकर बना है। जैन, बौद्ध, सिख, मुस्लिम, ईसाई, वैष्णव, शैव, शाक्त, सरना इत्यादि। ये सभी मिलकर भारत के लिए कोई लक्ष्य तय कर सकते हैं क्या? ‘भारत का मन’ ऐसा कुछ है क्या? मत, मजहब, रिलीजन कोई भी हो, भारत का ‘मन’ एक है या भारतीय समाज अनेक ‘मनों’ का समूह है, जमघट है? अनेक भाषा-भाषी समाज हैं। मन अनेक कि एक? ‘लोकसभा’ भारतमन को दुनिया के सामने प्रकट करने का स्थान हैं, इसके मायाने क्या? सितम्बर, 2023 जी-20 बैठकों के समय ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ लिखा लोगो भारत की सनातन अभिलाषा प्रगट करने वाला था।
‘वसुधैव कुटुंबकम्’ यह मानस बनाने में सब समाज का योगदान है। मुसलमान तथा ईसाई समाज के योगदान के बारे में विचार होना चाहिए। भारतीय समाज विविधताओं से शोभायमान समाज है। इतनी विविधता अन्य किसी देश में देखने को नही मिलेगी। पूजा-पद्धतियां तो इतनी हैं कि उनकी गिनती करना भी कठिन है। ‘एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति’ यह सनातन सत्य वचन यहां के समाज मन का स्पंदन है। भारतीय समाज मन कट्टरता से नफरत करता है। इसी के कारण मुसलमानों के सभी फिरके या ईसाई समाज के सभी चर्च यहां देखने को मिलते हैं।
‘एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति’ इस देश की आत्मा है। इसको पुष्ट करने का प्रयत्न सभी को करना चाहिए। इस्लाम, ईसाइयत का भारतीय दर्शन क्या हो, इस पर विमर्श होना चाहिए। कुरान, बाइबिल, वेद, उपनिषद, रामायण, भगवद्गीता आदि ग्रंथों में उपयोग किए गए शब्दों को बदलने का अधिकार हम लोगों को नहीं है। वर्तमान 21वीं सदी में उन शब्दों का भावार्थ क्या हो, इस पर हम विचार कर सकते हैं। जैसे-वानप्रस्थाश्रम। आज के संदर्भ में इसका क्या अर्थ हो सकता है। ऐसे ही जिहाद, कुफ्र का वर्तमान में अर्थ क्या हो,अनास्थावादी किसको कहें।
आक्रमणकारियों ने यहां की सर्वसमावेशी परंपरा को बदलकर जबरदस्ती कट्टरता का संदेश देने वाले ठिकाने खड़े किए हैं। वे इतिहास के पन्नों में सीमित रहें, वर्तमान में उनका उपयोग करना हम छोड़ दें। हम भारत की संतान हैं, ऐसा गौरव के साथ जब कहते हैं, तब भारत क्या है, यह भी हमको दुनिया को बताना पड़ेगा।
जमीन, जंगल, नदियां, पेड़, पहाड़, पशु, स्त्री-पुरुष (समाज), उद्योग, खेती, ये बातें सभी देशों में होती ही हैं। जी.डी.पी. भी नापा जाता है। ‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’ वह बात क्या है? नेताजी सुभाषचंद्र कहते थे, ‘‘भारत की संस्कृति में ऐसा कुछ है, जो विश्व मानव के लिए बहुत आवश्यक है और उसे ग्रहण किए बिना विश्व सभ्यता वास्तविक उन्नति नहीं पा सकती।’’
अरब के सभी देश और भारतीय उपमहाद्वीप के सभी देश ‘एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति’ सनातन सत्य की दुनिया में प्रस्थापना करने के लिए एक साथ खडे़ हो जाएं। इस काम के लिए भारतवर्ष की अयोध्या, राजाराम की अयोध्या मार्गदर्शक केंद्र हो सकती है। बंधुत्व का, आत्मीयता का, मानवता का, न्याय नीति का संदेश देने वाले राजाराम का मंदिर बन ही गया है। अमन शांति का पैगाम देने वाली भारतीय मस्जिद खड़ी हो। सिख, जैन, बौद्ध, वीरशैव समाज के श्रद्धास्थानों का निर्माण हो। विज्ञान, तंत्रज्ञान के युग में हम वर्तमान तथा भावी पीढ़ी को क्या मार्गदर्शन करें, इसके उपर सब मिलकर विमर्श करते रहें।
स्वामी विवेकानंद वर्तमान कालखंड के द्रष्टा पुरुष थे। भारत की आध्यात्मिक धारा के प्रतिनिधि थे। शिकागो सर्वधर्म सम्मेलन में उन्होंने अपने अत्यंत छोटे भाषण से दुनिया जीत ली थी। उन्होंने भारत की सहिष्णुता का परिचय दुनिया को देकर उद्घोषणा की थी कि मत-पंथ-महजब कोई भी हो, सभी की पताका पर स्वीकार, सहकार, स्नेह, संवाद, समन्वय और शांति शब्द ही देखने को मिलेंगे। कट्टरता का अंत होगा। कालचक्र घूमता ही रहता है। ऊपर की बाजू नीचे और नीचे की बाजू ऊपर, यह क्रम चलता रहता है। भारतवर्ष का विश्व में महत्व बढेÞगा। हिमालय का महत्व बढ़ेगा। हिमालय शांति का पैगाम देने वाला शिखर शिरोमणि सिद्ध होगा।
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