अंसुता गुमला जिले के चैनपुर प्रखंड के अंतर्गत आने वाले छतरपुर गांव की रहने वाली है। अंसुता जब काफी छोटी थी तभी उसके पिता जेवियर टोप्पो और माता कटरीना टोप्पो की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई। इसके बावजूद अंसुता ने हार नहीं मानी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को ऐसी शिक्षा दी जाती है कि वे किसी भी जरूरतमंद की मदद के लिए आगे आ जाते हैं। ऐसे ही एक स्वयंसेवक हैं- दिलीप बड़ाइक। वे गुमला (झारखंड) जिले के जारी प्रखंड के रहने वाले हैं। इन्होंने अंसुता टोप्पो नाम की एक दिव्यांग खिलाड़ी की ऐसे समय पर मदद की जब उसे विदेश में जाकर खेलना था और उसके पास पैसे का घोर अभाव था। दिलीप ने अंसुता की मदद के लिए अपनी पत्नी के गहने बेच दिए। उसी पैसे से अंसुता मलेशिया गई और वहां उसने थ्रो बॉल चैंपियनशिप में भाग लिया। अंसुता ने भी लोगों को निराश नहीं किया और वहां स्वर्ण पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया।
अभी कुछ दिनों पहले मलेशिया में अंतरराष्ट्रीय थ्रो बॉल चैंपियनशिप का आयोजन किया गया था। इसके लिए झारखंड की पांच महिला खिलाड़ी एवं एक पुरुष खिलाड़ी का चयन हुआ था। चयनित खिलाड़ियों में प्रतिमा तिर्की, अनिता तिर्की, महिमा उरांव, अंसुता टोप्पो, तारामणि लकड़ा और सनोज महतो शामिल थे। सभी चयनित खिलाड़ी दिव्यांग थे।
अंसुता गुमला जिले के चैनपुर प्रखंड के अंतर्गत आने वाले छतरपुर गांव की रहने वाली है। अंसुता जब काफी छोटी थी तभी उसके पिता जेवियर टोप्पो और माता कटरीना टोप्पो की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई। इसके बावजूद अंसुता ने हार नहीं मानी। उसने दिव्यांगता पेंशन से अपना गुजारा करते हुए स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई पूरी की। इसी दौरान उसका चयन मलेशिया जा रही टीम में हो गया। इसके बाद उसने आर्थिक मदद के लिए कई नेताओं, जिले के अधिकारियों और समाजसेवियों के चक्कर लगाए, लेकिन उसे कहीं से भी मदद नहीं मिली। इसके बाद उसने मलेशिया जाने से मना कर दिया। कुछ पत्रकारों को इसका पता चला तो उन्होंने अंसुता की खबर प्रकाशित कर दी।
‘‘जब कहीं से मदद नहीं मिली, तब दिलीप जी एक देवदूत के रूप में सामने आए और उन्होंने मेरे सपने को पूरा किया।
उन्हें हृदय से धन्यवाद।’’ – अंसुता
‘‘संघ की शाखा में जाने से ही उनके अंदर सेवा की भावना आई और उसी भावना ने अंसुता की मदद के लिए प्रेरित किया।’’
-दिलीप
उस खबर पर दिलीप बड़ाइक की नजर गई तो उन्होंने अंसुता से संपर्क किया। पहले उन्होंने कुछ लोगों से मदद दिलाने का प्रयास किया, लेकिन इसमें वे सफल नहीं हुए। इसके बाद उनकी पत्नी फुलमैत देवी आगे आई। उन्होंने अपने पति दिलीप से कहा कि उनके पास कुछ गहने पड़े हैं, उन्हें बेचकर अंसुता की मदद की जा सकती है। यह सुनकर दिलीप दंग रह गए। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी के गहने बेचकर 66,000 रुपए का चेक अंसुता को सौंपा। इसी पैसे से अंसुता मलेशिया गई और पदक के साथ भारत लौटीं। दिलीप बड़ाइक के प्रति आभार जताते हुए अंसुता कहती हैं, ‘‘जब कहीं से मदद नहीं मिली, तब दिलीप जी एक देवदूत के रूप में सामने आए और उन्होंने मेरे सपने को पूरा किया। उन्हें हृदय से धन्यवाद।’’
गुमला में अभी भी दिलीप की इस मदद की चर्चा हो रही है। दिलीप कहते हैं, ‘‘संघ की शाखा में जाने से ही उनके अंदर सेवा की भावना आई और उसी भावना ने अंसुता की मदद के लिए प्रेरित किया।’’ दिलीप बड़ाइक अपने सेवा कार्यों के लिए क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध हैं। उनके इन कार्यों को देखते हुए ही इस वर्ष 28 अगस्त को रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में झारखंड के राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन ने उन्हें सम्मानित किया। गुमला के उपायुक्त सुशांत गौरव ने भी अंसुता की मदद के लिए प्रशस्ति-पत्र देकर दिलीप को सम्मानित किया है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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