संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भारत के विदेश मंत्री ने दुनिया को नए भारत की ताकत और स्वतंत्र विदेश नीति की स्पष्ट झलक दिखा दी। जयशंकर ने अपना वक्तव्य ‘नमस्ते’ से शुरू करते हुए तथाकथित विकसित देशों को दमदारी के साथ आइना दिखाया। उन्होंने कहा कि अब वे दिन गए जब कुछ देशों के एजेंडे को बाकी देशों को मानने के लिए बाध्य होना पड़ता था। जयशंकर का संकेत साफ तौर पर सुरक्षा परिषद में भारत की उस प्रबल और योग्य दावेदारी की तरफ ध्यान दिलाना था, जिस पर अनेक बड़े देशों का उसे समर्थन प्राप्त है।
संयुक्त राष्ट्र के 78वें सत्र का कल का दिन भारत के विदेश मंत्री जयशंकर के नाम रहा। नीम खामोशी से सब देशों के प्रतिनिधि उस देश के विदेश मंत्री के वक्तव्य को सुनते रहे जिसने हाल ही में जी20 का सफल आयोजन किया है और भिन्न मत वाले देशों को एक मंच पर लाकर सहमति से घोषणापत्र जारी किया है।
जयशंकर ने ‘भारत की ओर से नमस्ते’ कहकर शुरू किए अपने वक्तव्य में कहा कि दिसंबर 2022 में भारत ने असाधारण जिम्मेदारी का भाव अपनाते हुए जी20 की अध्यक्षता हाथ में ली थी।संयुक्त राष्ट्र महासभा के 78वें सत्र में इस लगभग 17 मिनट के अपने संबोधन में जयशंकर ने कहा कि मैं उस समाज के प्रतिनिधि के नाते बोल रहा हूं जहां लोकतंत्र की जड़ें प्राचीन हैं और गहरे तक पैठी हुईं हैं। यही वजह है कि हमारी सोच, धारणा तथा हमारी तरफ से उठाए गए कदम जमीन से ज्यादा जुड़े और प्रामाणिक हैं। विदेश मंत्री ने उन देशों पर परोक्ष रूप से कटाक्ष भी किया जो दुनिया का एजेंडा तय करते थे।
जयशंकर ने अपना वक्तव्य ‘नमस्ते’ से शुरू करते हुए तथाकथित विकसित देशों को दमदारी के साथ आइना दिखाया। उन्होंने कहा कि अब वे दिन गए जब कुछ देशों के एजेंडे को बाकी देशों को मानने के लिए बाध्य होना पड़ता था। जयशंकर का संकेत साफ तौर पर सुरक्षा परिषद में भारत की उस प्रबल और योग्य दावेदारी की तरफ ध्यान दिलाना था, जिस पर अनेक बड़े देशों का उसे समर्थन प्राप्त है।
भारतीय विदेश मंत्री ने आगे कहा कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को आतंकवाद, उग्रवाद तथा हिंसा से निपटने के मामले में सुविधा की राजनीति करने की छूट नहीं दी जानी चाहिए। उनका कहना था कि भौगोलिक अखंडता का सम्मान तथा किसी भी देश के अंदरूनी विषयों में दखल देने का मामला उठाने में समरूपता होनी चाहिए, यह चुनिंदा तौर पर नहीं हो सकता। उन्होंने कि अब वे दिन गए जब कुछ देशों की तरफ से एजेंडा तय होता था तथा बाकी देशों से उसे मान लेने की अपेक्षा की जाती थी। ऐसे देशों को अब दूसरे देशों की बातें भी सुननी होंगी।
कूटनीति के विशेषज्ञों द्वारा जयशंकर के इस पैनी धार वाले वक्तव्य को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रूदो तथा अमेरिकी अधिकारियों के हाल में आए बयानों का तीखा जवाब माना जा रहा है। प्रधानमंत्री त्रूदो ने कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी निज्जर की हत्या में भारत सरकार और उसके एजेंटों पर उंगली उठाई थी जिसके लिए उन्हें हर वर्ग से खरी—खोटी सुननी पड़ रही है। इसी तरह, अमेरिका ने इस मामले में भारत को कहा कि वह कनाडा की इस संबंध में चल रही जांच में मदद करे। ऐसी परिस्थिति में जयशंकर का कल का वक्तव्य दोनों देशों की काट के तौर पर देखा जा रहा है। जयशंकर ने साफ कहा कि दुनिया में समानता स्थापित की जानी चाहिए।
इसी वक्तव्य में उन्होंने वैक्सीन देने में भेदभाव तथा अन्य कुछ घटनाओं की तरफ संकेत करते हुए कहा कि ताकत का उपयोग भोजन व ऊर्जा का प्रवाह जरूरतमंदों से धनाढ्य लोगों की तरफ करने के लिए नहीं होना चाहिए। भारत विभिन्न साझीदारों के साथ सहयोग को बढ़ावा देने का इच्छुक है। गुटनिरपेक्ष युग से बाहर आकर अब हमने वैश्विक मैत्री की भावना आगे रखी है। यह चीज हितों में सामंजस्य बनाने की हमारी क्षमता और इच्छा को दिखाती है।
लंबे वक्त से लटकते आ रहे सुरक्षा परिषद के विस्तार और संयुक्त राष्ट्र में सुधारों को अनिश्चितकाल तक टालने की प्रवृत्ति के संदर्भ में जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार करने जरूरी हैं तभी यह आज के दौर में प्रासंगिक बना रह सकता है। हम नियम के आधार पर व्यवस्था को बढ़ावा देने और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का पालन करने की बातें तो सुनते हैं, मगर ये सिर्फ बातों तक रहता है। आज भी कुछ ही देश एजेंडा तय करते हैं और बाकी उसे पीछे चलने को बाध्य रहते हैं। ऐसा सदा के लिए नहीं चल सकता।
जी-20 का उल्लेख करते हुए जयशंकर का कहना था कि जी-20 में ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की भारत की परिकल्पना सिर्फ चंद देशों के संकीर्ण स्वार्थों पर ही नहीं, अपितु कई देशों की अहम चिंताओं पर गौर करने की कोशिश करती है। हमने 75 देशों को साथ लाकर विकास में साझेदारी की है। कोई आपदा हो, कोई आपात स्थिति हो, भारत सबसे पहले मदद का हाथ बढ़ाने वाला देश है। तुर्किये और सीरिया के लोग यह देख चुके हैं। भातर के विदेश मंत्री ने कहा, ”हमारी सभ्यतागत नीति आधुनिक दौर को आत्मसात करती है। हम परंपरा तथा तकनीक को बराबर रखते हैं। यह मेल ही ‘इंडिया देट इज भारत’ की सही व्याख्या है।
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