हमारे सामाजिक जीवन पर भले ही बाजार की चकाचौंध तेजी से हावी होती जा रही हो लेकिन हिंदू सुहागिन स्त्रियों की आस्था अनमोल पर्व परम्पराओं के प्रति जरा भी कम नहीं दिखती। हिन्दू धर्म के पतिव्रत पर्वों में हिंदू सुहागिनों का अत्यंत प्रिय पर्व है-हरियाली तीज। सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखे जाने वाले इस पर्व की व्रत परंपरा युगों पुरानी मानी जाती है। हरियाली तीज के पर्व से जुड़ी शिव महापुराण की कथा कहती है कि आदि काल में जब माता सती ने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में महादेव के अपमान से आहत होकर हवन कुंड में कूद कर प्राण दे दिये थे, तब सती के दाह से दुखी महादेव उनकी पार्थिव देह को कंधे पर लादकर इधर-उधर घूमने लगे। जहां जहां उनके अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ बन गये। उधर, माँ सती जन्म पर जन्म लेकर महादेव को पुनः पति रूप में पाने के लिए तपस्या करती रहीं। अंततः 107वें जन्म में पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में उनकी तपस्या फलीभूत हुई और श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को महादेव शिव उन्हें पति रूप में पुनः प्राप्त हुए।
माँ पार्वती की इसी महान तप साधना से अनुप्राणित होकर हिन्दू स्त्रियाँ सदियों से हरियाली तीज का व्रत रखती आ रही हैं। इस सुहाग पर्व पर प्रत्येक सुहागिन महादेव शिव से यही प्रार्थना करती हैं कि उन्हें भी माता पार्वती जैसा अखंड सुहाग का वरदान मिले और वे पति के सुख दुःख में उनके कंधे से कन्धा मिलाकर अर्धांगिनी होने का कर्तव्य निभा सकें।
भारतीय तिथि पंचांग के अनुसार इस वर्ष हरियाली तीज का यह पर्व 19 अगस्त को है। सावन की हरी-भरी ऋतु में पड़ने के कारण ही श्रावणी तीज के इस पर्व को हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है। इस पर्व पर मां पार्वती और भगवान शिव की मिट्टी की प्रतिमाएं बनाकर पूजन की परम्परा धर्मग्रंथों में है। शास्त्रीय परम्परा के अनुसार तीज के दिन विवाहित महिलाएं ब्रह्ममुहूर्त में उठकर भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करते हुए निर्जला व्रत का संकल्प लेती हैं। तदुपरांत सर्वप्रथम पूजन स्थल पर साफ स्वच्छ लकड़ी की चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, शिव पार्वती तथा गणेश के साथ रिद्धि-सिद्धि की प्रतिमाएं बनायी जाती हैं। उन्हें सुन्दर पुष्पों व वस्त्रालंकारों से सजाया जाता है। तत्पश्चात अक्षत-पुष्प, रोली-चन्दन, दीप-धूप तथा पंचामृत से देवविग्रहों का पूजन-अर्चन उनको बेलपत्र, श्रीफल, शमी के पत्ते, मदार पुष्प, भांग-धतूरा, पान-सुपारी और दूर्वा आदि पूजन सामग्री के साथ जगजननी माता पार्वती को सोलह श्रृंगार समर्पित किया जाता है।
इन श्रृंगार सामग्रियों में महावर, कुमकुम, इत्र, सिंदूर, बिंदी व वस्त्राभूषण के साथ ही पर्व के नाम के अनुरूप हरी चुनरी, हरे कांच की चूड़ियाँ तथा मेहँदी विशेष रूप से चढ़ायी जाती है। इस पर्व पर तीज माता की कथा कहने-सुनने की बहुत पुरानी परम्परा है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। हाथों में मेहंदी लगाती हैं। झूले झूलती हैं। घरों में भजन व लोकगीत गाकर तीज उत्सव मनाया जाता है। यह व्रत करवाचौथ से भी ज्यादा कठिन होता है। महिलाएं पूरा दिन बिना भोजन और जल ग्रहण किए रहती हैं और दूसरे दिन सुबह स्नान और पूजा के बाद व्रत का पारण करती हैं।
ब्रज मंडल में हरियाली तीज का पर्व भगवान कृष्ण और राधा रानी के प्रेम के प्रतीकात्मक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर ब्रज के अनेक कृष्ण मंदिरों को सजाया जाता है और झूला भी डाला जाता है। इस मौके पर लोग नृत्य करते हैं और पारंपरिक गीत गाते हैं। श्रीकृष्ण की लीलाओं का कथन किया जाता है और उनकी पूजा का आयोजन किया जाता है।
इस पर्व पर हरे रंग की वस्तुओं के प्रयोग की शास्त्रीय, ज्योतिषीय व आधुनिक सन्दर्भों में कहें तों चिकित्सीय महत्ता कम उपयोगी नहीं है। पौराणिक मान्यता के अनुसार हरा रंग भगवान शिव और माता पार्वती दोनों को अत्यंत प्रिय है। इसलिए भी हरियाली तीज पर महिलाएं अपने श्रृंगार में हरे रंग का उपयोग प्रमुखता से करती हैं। आधुनिक शोधों में भी प्रमाणित हो चुका है कि हरा रंग जीवन में खुशहाली बढ़ाता है। हरियाली देखने से आंखों को सुकून मिलता है और दिमाग भी शांत रहता है। ज्योतिष मान्यता के अनुसार भी हरे रंग को बुध ग्रह का रंग माना जाता है और बुध की उन्नत स्थिति उत्तम स्वास्थ्य को दर्शाती है। आयुर्वेद में भी हरे रंग को स्वास्थ्यवर्धक रंग माना जाता है। इस रंग को कई रोगों के उपचार के लिए लाभदायक माना गया है।
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