अल्मोड़ा के पास गोलू मन्दिर में दर्शन किए। यह मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है जहां भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां से आगे बढ़े तो प्रकृति अपने चरम पर थी। मैं बार-बार कार रोकता और कुछ तस्वीरें लेने लगता। मुझे जागेश्वर धाम और यहां के शिव मन्दिर के बारे में पहले से पता नहीं था। यहां प्रवेश करते ही लगा कि शरीर में किसी रहस्यमयी ऊर्जा ने प्रवेश कर लिया है।

अपनी नियमित यात्रा की कड़ी में हमने हिमालय के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित जागेश्वर धाम जाने का तय किया। जागेश्वर धाम समुद्र तल से 1,870 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां पहुंचने के लिए बस या टैक्सी का सहारा लिया जा सकता है। दिल्ली से अल्मोड़ा के लिए बसें चलती हैं। अल्मोड़ा में एक रात रुककर अगले दिन जागेश्वर धाम के दर्शन करके फिर वापसी की जा सकती है। जागेश्वर धाम में रुकने में दिक्कत हो सकती है, इसलिए वापस अल्मोड़ा या हल्द्वानी ही आना पड़ता है। अल्मोड़ा और हल्द्वानी में सस्ते होटल आराम से मिल जाते हैं।
इस यात्रा के लिए हम लोग राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सुबह-सुबह कार से हापुड़, काशीपुर, जिम कार्बेट पार्क, रानीखेत होते हुए पूरे दिन की यात्रा कर रात को करीब साढ़े दस बजे अल्मोड़ा पहुंचे। वहां के विश्वविद्यालय के अतिथि भवन में रुकना था। कुछ देर बाद हम जागेश्वर महादेव की ओर रवाना हुए। अल्मोड़ा से पिथौरागढ़ मार्ग पर करीब चालीस किलोमीटर दूर स्थित है जागेश्वर धाम।
अल्मोड़ा के पास गोलू मन्दिर में दर्शन किए। यह मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है जहां भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां से आगे बढ़े तो प्रकृति अपने चरम पर थी। मैं बार-बार कार रोकता और कुछ तस्वीरें लेने लगता। मुझे जागेश्वर धाम और यहां के शिव मन्दिर के बारे में पहले से पता नहीं था। यहां प्रवेश करते ही लगा कि शरीर में किसी रहस्यमयी ऊर्जा ने प्रवेश कर लिया है।
यहां के महामृत्युंजय महादेव की पूजा का बहुत महत्व है और यहां लोग प्राय: रुद्राभिषेक के लिए आते रहते हैं। महाकालेश्वर के अतिरिक्त मुख्य शिवलिंग एक अन्य मन्दिर में स्थापित है। यहां छोटे-बड़े कई मन्दिरों का जमघट है जो इसे देश के अन्य मन्दिरों की बनावट से अलग करता है।
देवदार के घने जंगल से घिरे जागेश्वर धाम के पवित्र स्थान की भक्त बड़ी महिमा मानते हैं। भगवान शिव के भक्त इसी स्थान को दारुकावन अर्थात देवदार के जंगलों के बीच स्थापित ज्योर्तिलिंग मानते हैं। कहा जाता है कि इस देवस्थान में 250 मन्दिर हैं जिनमें से 224 एक ही स्थान पर हैं, परन्तु कुछ ही मन्दिर ऐसे हैं जहां आज भी विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है।
हम लोग इस जगह को अभिभूत होकर देखते रहे और वहां दर्शन किए। यहां के महामृत्युंजय महादेव की पूजा का बहुत महत्व है और यहां लोग प्राय: रुद्राभिषेक के लिए आते रहते हैं। महाकालेश्वर के अतिरिक्त मुख्य शिवलिंग एक अन्य मन्दिर में स्थापित है। यहां छोटे-बड़े कई मन्दिरों का जमघट है जो इसे देश के अन्य मन्दिरों की बनावट से अलग करता है।
पास ही एक संग्रहालय है जहां हम लोगों ने इतिहास के बारे में जाना। इसके बाद हम इस मुख्य मन्दिर से कुछ पहले स्थित डाण्डेश्वर महादेव मन्दिर में भी गये। यहां आने से पहले हमें लग रहा था कि हम यूं ही एक स्थान पर घूमने जा रहे हैं परन्तु यहां का आध्यात्मिक वातावरण जैसे हमारे भीतर उतर गया।
करीब दो घण्टे तक यहां दर्शन भ्रमण के बाद हम वापस चल पड़े। अल्मोड़ा से हल्द्वानी की ओर जाने वाला मार्ग कितने खूबसूरत दृश्यों से भरा हुआ है, बताया नहीं जा सकता। रास्ते के अनुपम सौन्दर्य का आनन्द लेते हुए, ढाबों और चाय की दुकानों पर रुकते, चाय-पान करते हुए हम रात को आठ बजे हल्द्वानी पहुंचे। अगले दिन सुबह तैयार होने के बाद हम वापस दिल्ली के लिए चल दिये।
(लेखक यायावर, साहित्यकार और फोटोग्राफर हैं)
टिप्पणियाँ