भारत के दक्षिणी राज्य केरल में भी बीते कुछ वर्षों में इस्लाम छोड़ने वालों की संख्या बढ़ी है। इनमें अधिकतर युवा हैं, जो तर्कसंगत वैज्ञानिक तथ्यों से प्रभावित हैं।
कट्टरपंथी इस्लामी कहते हैं कि ‘दुनिया में इस्लाम बढ़ रहा है’, लेकिन सच्चाई इसके उलट है। दुनिया भर में इस्लाम से लोगों का मोह भंग हो रहा है और वे इसका त्याग कर रहे हैं। यहां तक कि जिन्होंने इस्लाम को बारीकी से देखा है, उनका भी इससे मोह भंग हो चुका है और वे भी इससे तौबा कर रहे हैं। भारत के दक्षिणी राज्य केरल में भी बीते कुछ वर्षों में इस्लाम छोड़ने वालों की संख्या बढ़ी है। इनमें अधिकतर युवा हैं, जो तर्कसंगत वैज्ञानिक तथ्यों से प्रभावित हैं। लेकिन इस्लाम त्यागने वालों के लिए आगे का रास्ता इतना आसान नहीं है। ये जिस तरह की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक प्रताड़ना झेल रहे हैं, वह असहनीय है।
इस्लाम छोड़ने वाले हजारों लोग अपनी पहचान जाहिर करने और खुलेआम इस्लाम की निंदा करने से डरते हैं। पता नहीं, कब उनके खिलाफ फतवा जारी हो जाए। लेकिन ऐसे लोगों के पीछे अब ‘एक्स मुस्लिम्स आफ केरल’ नामक संगठन मजबूती से खड़ा हुआ है। यह संगठन मजहब से इतर जीने के बुनियादी मानवाधिकारों की रक्षा करने के साथ ही असहमति, ईशनिंदा और मजहब छोड़ने के फैसले को साधारण घटना मानता है, वह ऐसे लोगों को भावनात्मक और नैतिक समर्थन देता है।
अब डरने की जरूरत नहीं
‘एक्स मुस्लिम्स आफ केरल’ की स्थापना 15 दिसंबर, 2021 को हुई। यह दो साल तक सोशल मीडिया पर चलाए गए अभियान का परिणाम था। हालांकि औपचारिक तौर पर यह संगठन 9 जनवरी, 2022 को कोच्चि में अस्तित्व में आया। इस आंदोलन के प्रमुख नेता सी.एम. लियाकत अली बताते हैं कि केरल में ऐसे बहुत से मुसलमान हैं, जो मजहब छोड़कर शांति से रह रहे हैं। वे इस्लामी रीति-रिवाजों को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। लेकिन इन्होंने सार्वजनिक तौर पर कभी नहीं कहा कि उन्होंने इस्लाम छोड़ दिया है, क्योंकि उन्हें डर है कि उन्हें मुसलमानों का कोप झेलना पड़ सकता है। इसके विपरीत, जिन लोगों ने खुले तौर पर इस्लाम छोड़ने की घोषणा की, उन्हें बेहिसाब मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
इसी को देखते हुए ‘एक्स मुस्लिम्स आफ केरल’ को संगठनात्मक रूप दिया गया। लियाकत अली ने बताया, ‘‘आयशा मार्करहाउस को समुदाय की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। देश का संविधान नागरिकों को अपने मत-मजहब पर चलने, उसका प्रचार करने और मजहब को नहीं मानने का भी अधिकार देता है। समाज में शांति और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए इस अधिकार का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरह यहां धर्म-मजहब-पंथ की कानूनी रूप से रक्षा की जाती है।’’ आयशा ‘एक्स मुस्लिम्स आॅफ केरल’ की कोषाध्यक्ष हैं।
लियाकत कहते हैं कि इस्लाम त्यागने के बाद अपनी मां से बात करने के लिए उन्हें पुलिस की सुरक्षा लेनी पड़ी। लेकिन उनकी मां का फोन छीन लिया गया। दूसरे शब्दों में कहें तो मजहब को मां-बेटे के संबंधों से भी बड़ा बना दिया गया। अगर परिवार कट्टरता से मजहबी प्रथाओं का पालन कर रहे हैं तो पूर्व मुसलमानों के लिए स्थिति और गंभीर हो जाती है। कट्टरपंथी मुसलमानों का कहना है कि यदि कोई मजहब छोड़ता है तो उसका विवाह भी अवैध ठहरा दिया जाता है। यदि परिवार उसके प्रति हमदर्दी दिखाता है तो महल कमेटी पूरे परिवार के खिलाफ कदम उठाती है।
परिवार के कारोबार, व्यवसाय और रोजगार, धन-संपत्ति सब छीन लिए जाते हैं। एक्स मुस्लिम संगठन का मुख्य उद्देश्य महल की उन ज्यादतियों को रोकना है, जो वह संविधान प्रदत्त अधिकारों और नागरिक अधिकारों को कुचल कर इस्लामी मान्यताएं थोपने की कोशिश करती है। पनक्कट थंगल परिवार के सदस्य सादिक अली शिहाब थंगल ने कुछ समय पहले कहा था कि ‘महल’ समानांतर सरकार के रूप में काम करती है। इसलिए इस पूर्व मुस्लिम नेता का मानना है कि इस तरह की विचारधारा के विरुद्ध लड़ना और उसे पराजित करना जरूरी है।
उल्लेखनीय है कि थंगल परिवार के मुखिया इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के अध्यक्ष हैं और केरल में मुस्लिम समुदाय के प्रमुख मजहबी नेता हैं। एक अन्य नेता आरिफ हुसैन, गैर-मजहबी नागरिक संगठन के अध्यक्ष और ‘एक्स मुस्लिम आफ केरल’ की कार्यकारी समिति के सदस्य, ने बताया कि सैकड़ों मुस्लिम सोशल मीडिया समूह से जुड़ रहे हैं। मुस्लिम उम्मत (मान्यता) उन मुसलमानों को ‘मुरतद’ कहता है, जिन्होंने मजहब छोड़ दिया है। काफिर को नजस कहते हैं, जिसका अर्थ ‘अपवित्र’ होता है। इस्लाम में ईमान वालों को नजस को छूने की भी मनाही है। इसलिए उसकी मां भी उसे नहीं छूती। एक हिंदू लड़की ने जब इस्लाम कबूलने के बाद अपने माता-पिता के साथ फोटो खिंचवाई तो इस्लाम मानने वालों ने उसे प्रचारित किया, लेकिन जब कोई इस्लाम छोड़ता है तो उसके मुस्लिम माता-पिता अपने बच्चों के साथ तस्वीर नहीं खिंचवाते।
दोहरा मापदंड क्यों?
आरिफ पूछते हैं कि अगर इस्लाम ‘शांति का मजहब’ है तो अल-कायदा, तालिबान और आईएसआईएस का जन्म कैसे हो गया? क्या वे कुरान और हदीस का पालन कर रहे हैं? सऊदी अरब सरकार ने तब्लीगी-जमात पर प्रतिबंध लगाया, जो इस्लाम पर प्रतिबंध लगाने के बराबर है। कोविड महामारी के शुरुआती दिनों के दौरान तब्लीगी जमात ने दिल्ली के निजामुद्दीन में एक शिविर का आयोजन किया था। महामारी के समय ऐसे आयोजन की जब गैर इस्लामी लोगों ने आलोचना की तो मुसलमानों ने उन्हें ‘इस्लामो-फोबिक’ कहा। लेकिन सऊदी अरब ने तब्लीगी जमात पर पाबंदी लगाई तो वे चुप हैं।
आरिफ का कहना है, ‘‘यह दोहरा मापदंड है। सऊदी के उत्तराधिकारी मुहम्मद बिन सलमान के सुधारों ने महिलाओं को कुछ अधिकार दिए हैं। वे कार चला सकती हैं, अकेली बाहर जा सकती हैं, लेकिन तब्लीग इसका विरोध करती है। इसलिए उसे वहां प्रतिबंधित कर दिया गया। जाकिर नाइक कहता है कि क्रिसमस का जश्न मनाना इस्लाम के खिलाफ है। उसकी आलोचना करने पर वह ‘हिंदू सांप्रदायिकता’ का ढोल बजाने लगता है। वह इस बात को मानता ही नहीं कि अधिकतर हिंदू सांप्रदायिकता का समर्थन नहीं करते। लेकिन इस्लाम को मानने वाले नाइक की विचारधारा से सहमत हैं, इसलिए उसका समर्थन करते हैं। ऐसी इस्लामी कट्टरता हमारी पंथनिरपेक्षता के लिए खतरा है।’’
आरिफ का कहना है कि जो लोग भारत में संवैधानिक अधिकारों के लिए बहस करते हैं, वे उन लोगों के लिए भी खड़े हों जो इस्लाम की आलोचना करने और तर्कसंगत मान्यताओं को अपनाने के कारण गिरफ्तार हुए और जेल में बंद हैं। केरल का अब्दुल कादर संयुक्त अरब अमीरात में तीन साल से इन्हीं मामलों में जेल में बंद है। वहीं, लियाकत अली कहते हैं कि ‘उनके संगठन ने इस्लाम छोड़ने वाले मुसलमानों को कानूनी और संवैधानिक अधिकार देने का फैसला किया है।
जन्म के बाद ही किसी बच्चे को मत-मजहब का बना देना संविधान की भावना के विरुद्ध है। इसलिए संगठन सुन्नत जैसे रिवाजों को कानूनी चुनौती देगा। बच्चे बड़े होने पर खुद फैसला करें कि वे कौन सा मत-मजहब अपनाना चाहते हैं। इस्लाम का विरोध करने वालों के चरित्र पर लांछन लगाए जाते हैं और उन्हें संघ परिवार के समर्थकों के रूप में चित्रित किया जाता है। यह बेतुकी बात है। हम मुसलमानों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन एक ‘दर्शन’ के रूप में इस्लाम का विरोध करते हैं। हम किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करते और न ही उनका समर्थन स्वीकार करते हैं।’
इस्लामी कानून संविधान विरोधी
‘एक्स मुस्लिम आफ केरल’ की महासचिव सफिया ने कहा कि महिलाओं का शोषण करने के लिए पुरुष मजहब का इस्तेमाल करते हैं। महिलाओं के वंशानुगत संपत्ति के अधिकार को छीनने वाले इस्लामी नियम संविधान विरोधी हैं। कट्टरपंथी मुस्लिम उसका बहिष्कार करने की कोशिश करते रहते हैं। वे इसके लिए मस्जिद की शक्ति का उपयोग करते हैं।
वे कहती हैं कि अतीत में उन्होंने इस्लाम के लिए लड़ाई लड़ी, लेकिन मोहम्मद नबी की जीवनी पढ़ने के बाद मजहब छोड़ दिया। लिहाजा, उन पर इस्लाम का ठीक से अध्ययन नहीं करने का आरोप भी लगा। यह भी कहा गया कि इस्लाम का अध्ययन करने के लिए उनके पास पर्याप्त बुद्धि नहीं है। आयशा अहमदिया समुदाय से थीं, जो रूढ़िवादी इस्लाम से अलग है। उन्होंने सोशल मीडिया में ‘5वें खलीफा के रिश्तेदार द्वारा किए गए यौन शोषण’ के बारे में लिखा कि उसने ‘चौथे खलीफा की पोती का यौन शोषण’ किया था। आयशा ने इस्लामिक नियम के खिलाफ लिखा जो बलात्कार का आरोप होने पर चार गवाह मांगता है। तब उन्हें ‘मुर्तद’ घोषित कर दिया गया, जिसका अर्थ है ‘मजहब छोड़ देने वाला’।
‘एक्स मुस्लिम’ समूह से संबंधित एक प्रमुख व्यक्ति ने मुसलमान लड़कियों के लिए शादी की कानूनी उम्र 21 करने और कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार रखे। उनका कहना है कि अगर केंद्र सरकार इस बात को मानती है कि यही उम्र परिपक्वता, निर्णय लेने आदि के लिहाज से सही है तो वह भी इस कदम का समर्थन करते हैं। समाज के सामने पुरुष और महिला को समान होना चाहिए। नारी को पुरुषों के अधीन नहीं रहना चाहिए। लड़कियों को यह नहीं कहना चाहिए कि उन्हें ‘किसी और घर’ जाना है। लड़कियों को डिग्री, पीजी, पेशेवर पाठ्यक्रमों को पूरा करने और नौकरी करने योग्य बनाना चाहिए। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि न केवल आईएसआईएस, बल्कि सभी आतंकी संगठन मानवता के लिए खतरनाक हैं।
आरिफ का कहना है-
‘‘यह दोहरा मापदंड है। सऊदी के उत्तराधिकारी मुहम्मद बिन सलमान के सुधारों ने महिलाओं को कुछ अधिकार दिए हैं। वे कार चला सकती हैं, अकेली बाहर जा सकती हैं, लेकिन तब्लीग इसका विरोध करती है। इसलिए उसे वहां प्रतिबंधित कर दिया गया। जाकिर नाइक कहता है कि क्रिसमस का जश्न मनाना इस्लाम के खिलाफ है। उसकी आलोचना करने पर वह ‘हिंदू सांप्रदायिकता’ का ढोल बजाने लगता है। वह इस बात को मानता ही नहीं कि अधिकतर हिंदू सांप्रदायिकता का समर्थन नहीं करते। लेकिन इस्लाम को मानने वाले नाइक की विचारधारा से सहमत हैं, इसलिए उसका समर्थन करते हैं। ऐसी इस्लामी कट्टरता हमारी पंथनिरपेक्षता के लिए खतरा है।’’
आतंकवाद की विचारधाराओं के पीछे सलाफीवाद और वहावीवाद है। भारत में, मुजाहिद और जमात-ए-इस्लामी इन विचारधाराओं का पोषण करते हैं। उन्होंने अफगान जेलों से उन लड़कियों को वापस लाने के मुद्दे पर बात की जो अपने पतियों के साथ भारत छोड़कर अफगानिस्तान गईं और वहां छिड़े सैन्य संघर्ष में उन्हें खो दिया। उनका मानना है कि अगर उन्हें घर वापस लाया जाए तो हमारे जांच अधिकारी सलाफीवाद और वहाबवाद के साथ उनके संबंधों की जड़ों का पता लगाने की कोशिश कर सकते हैं। अगर वे इसमें सफल हो जाते हैं, तो यह देश और इसकी सुरक्षा के लिए अच्छा है। इससे आगे और इसी तरह की घटनाओं से बचा जा सकता है। हमें यह पता लगाना होगा कि वे क्यों गए, वे कौन से संगठन हैं जिनमें वे भारत में जाने से पहले शामिल थे और ऐसे ही अन्य सवालों को भी देखना होगा।
कट्टरपंथी मुसलमानों को ‘पूर्व मुसलमान’ बिल्कुल पसंद नहीं हैं। इसलिए अब्दुल कादर पुथियांगडी जैसा पूर्व मुस्लिम यूएई में जेल में बंद है। कट्टरपंथियों ने वहां के अधिकारियों को सूचना दी कि वह मजहबी आस्था के खिलाफ काम कर रहे हैं। इस पूर्व मुस्लिम नेता ने बताया कि केरल में एसडीपीआई जैसे कट्टरपंथी मुस्लिम समूह सक्रिय हैं।
केरल के पूर्व मुसलमानों के नेताओं का कहना है कि आज पूरी दुनिया में इसी तरह के आंदोलन हो रहे हैं। वे संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, स्कैंडिनेवियाई देशों, पश्चिमी यूरोप और यहां तक कि खाड़ी देशों के उदाहरण पेश करते हैं। वे परंपरावादी प्रचार का उपहास उड़ाते हुए कहते हैं कि दुनिया में इस्लाम बढ़ नहीं रहा है, बल्कि सैकड़ों-हजारों लोग इस्लाम छोड़ रहे हैं।
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