हिमाचल में सत्ता परिवर्तन का चलन बरकरार रहा। इस बार प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के पक्ष में जनादेश दिया। 68 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 25, जबकि कांग्रेस को 40 सीटें मिली हैं। भाजपा की जीत में उसके बागी रोड़ा बने
इस बार हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में वही हुआ, जो हर पांच साल बाद होता आया है यानी सत्ता बदल। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का यह चलन इन चुनावों में बरकरार रहा। इस बार जनादेश कांग्रेस को मिला और वह विधानसभा की 68 में से 40 सीटें जीतने में सफल रही। भाजपा ने 25 सीटें जीती हैं, जबकि तीन सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गई हैं। वहीं, पहली बार पूरे दमखम से मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी को एक भी सीट नसीब नहीं हुई।
इस चुनाव में कांग्रेस को भाजपा से करीब एक प्रतिशत अधिक वोट मिले हैं। भाजपा को 43 प्रतिशत, जबकि कांग्रेस को 43.90 प्रतिशत वोट मिले। वहीं, आम आदमी पार्टी को महज 1.14 प्रतिशत वोट मिले।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा, ‘‘मैं भाजपा के लिए प्यार और समर्थन देने के लिए हिमाचल प्रदेश के लोगों का धन्यवाद देता हूं। हम राज्य के लोगों की उम्मीदें पूरी करने के लिए काम करते रहेंगे और आने वाले वक्त में लोगों के मुद्दे उठाते रहेंगे।’’
कांग्रेस ने इस बार चुनाव जीतने के लिए जनता से कई लोकलुभावन वादे किए थे। आआपा की तर्ज पर कांग्रेस द्वारा 300 यूनिट मुफ्त बिजली, पुरानी पेंशन योजना लागू करने, रोजगार देने के मीठे आश्वासनों पर जनता ने भरोसा किया। मंडी जिले की सराज विधानसभा सीट से जयराम ठाकुर ने प्रदेश में सबसे बड़े अंतर से जीत दर्ज की। यह उनकी लगातार छठी जीत है। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार चेतराम को 38,183 मतों के अंतर से हराया। जयराम ठाकुर को 53,562 वोट, जबकि चेतराम को 15,379 वोट मिले।
आम मान्यता है कि भाजपा को बागियों और टिकट बदलने के कारण हार मिली। चुनाव मैदान में अपनी ही पार्टी के 21 बागी चुनौती दे रहे थे। इनमें से कुछ पाला बदल कर कांग्रेस और आआपा में चले गए, जबकि कुछ ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। बागियों में से कुछ ने जीत भी दर्ज की है। वहीं, कुछ सीटों पर टिकट बदलना पार्टी को भारी पड़ा
जयराम ने बचाया गढ़
चुनाव परिणाम आने के बाद जयराम ठाकुर ने जनादेश का सम्मान करते हुए कहा कि हम हार के कारणों पर मंथन करेंगे। हमें चीजों का विश्लेषण करने की जरूरत है। कुछ मुद्दे ऐसे थे, जिन्होंने नतीजों की दिशा बदल दी। कांग्रेस के यह कहने पर कि ‘भाजपा कुछ भी कर सकती है’, उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेताओं में मुख्यमंत्री बनने की होड़ है। शायद यही कारण है कि उसके नेता डरे हुए हैं। अपने चुने हुए विधायकों की रक्षा करना कांग्रेस का काम है। विधानसभा चुनाव में जीत के लिए उन्होंने कांग्रेस को बधाई दी।
इस बार कई सीटें ऐसी रहीं, जहां कांग्रेस को 15 से 30 साल बाद जीत मिली है। जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की जगह पार्टी ने इस बार धर्मपुर सीट से उनके बेटे रजत ठाकुर को टिकट दिया था, लेकिन वे 2,800 वोटों से हार गए। यह सीट 30 साल से भाजपा के पास थी। हालांकि जयराम ठाकुर अपना गढ़ बचाने में सफल रहे। मंडी जिले की 10 में से 9 सीटें भाजपा के पास हैं। इसी तरह, हिमाचल प्रदेश के मैदानी जिले ऊना की कुटलैहड़ सीट पर कांग्रेस ने 32 साल बाद वापसी की है। भाजपा के पास सिरमौर जिले की 5 में से 2, ऊना की 5 में से एक, चंबा की 4 में से 2, कांगड़ा की 11 में से 3 (एक सीट निर्दलीय के खाते में), बिलासपुर की सभी 4 सीटें, कुल्लू की 4 में से 2 और शिमला की 8 में से एक सीट है। कांग्रेस ने शिमला में अपना गढ़ तो बचाया ही, लाहौल स्पीति, हमीरपुर की सभी 5 सीटें, ऊना की 4 और सोलन की 5 में से 4 पर जीत दर्ज की, जबकि एक सीट निर्दलीय के खाते में गई।
बागियों ने बिगाड़ा गणित
आम मान्यता है कि भाजपा को बागियों और टिकट बदलने के कारण हार मिली। चुनाव मैदान में अपनी ही पार्टी के 21 बागी चुनौती दे रहे थे। इनमें से कुछ पाला बदल कर कांग्रेस और आआपा में चले गए, जबकि कुछ ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। बागियों में से कुछ ने जीत भी दर्ज की है। वहीं, कुछ सीटों पर टिकट बदलना भी पार्टी को भारी पड़ा। पार्टी ने इस बार मौजूदा 11 विधायकों को क्षेत्र नहीं दिया। भाजपा ने फतेहपुर सीट से वन मंत्री रहे राकेश पठानिया को मैदान में उतारा था। लेकिन पार्टी के बागी नेताओं ने ही उनके लिए चुनौती पेश की। राकेश पठानिया इससे पहले नूरपुर सीट से चुनाव लड़ते थे, लेकिन इस बार उनका टिकट बदला गया था। फतेहपुर सीट से आठ प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। राकेश पठानिया के अलावा भाजपा के बागी कृपाल परमार निर्दलीय तो कभी भाजपा से सांसद रहे राजन सुशांत इस बार आआपा के टिकट पर मैदान में थे। इसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक दी। नतीजा, राकेश पठानिया कांग्रेस के भवानी पठानिया से 7,354 वोटों से हार गए। वहीं पूर्व भाजपा उपाध्यक्ष कृपाल परमार को 2,794 वोट मिले।
इसी तरह, चंबा सदर सीट से भाजपा जीत का हैट्रिक नहीं लगा सकी।
पार्टी ने मौजूदा विधायक पवन नय्यर की जगह उनकी पत्नी नीलम नय्यर को टिकट दिया था। कांग्रेस के नीरज नय्यर ने उन्हें 7,782 मतों से हराया। तीसरे स्थान पर रही भाजपा की बागी इंदिरा कपूर ने समीकरण बिगाड़ा। उन्होंने 2,443 वोट हासिल किए। इस सीट से भाजपा ने पहले इंदिरा कपूर को ही टिकट दिया था, लेकिन बाद में उनकी जगह नीलम नय्यर को उतारा। इससे इंदिरा नाराज थीं। इसके अलावा, नालागढ़ विधानसभा सीट से भाजपा के बागी और निर्दलीय प्रत्याशी के.एल. ठाकुर ने जीत दर्ज की। उन्होंने कांग्रेस के हरदीप सिंह बावा को 13,264 वोटों से हराया। यहां से भाजपा ने कांग्रेस से दो बार विधायक रहे लखविंदर सिंह राणा को मैदान में उतारा था। लखविंदर चुनाव से पहले पार्टी में शामिल हुए थे। उन्हें 17,273 वोट मिले। वहीं, देहरा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी होशियार सिंह ने कांग्रेस के राजेश शर्मा को 3,877 मतों से पटखनी दी। होशियार सिंह भी चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए थे। लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो उन्होंने बगावत कर दी। मनाली और बंजार में भी भाजपा के बागियों ने राह मुश्किल की। मनाली में मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर को बगावत का सामना करना पड़।
कुछ सीटों पर भाजपा प्रत्याशी बहुत कम अंतर से हारे। भोरंज सीट से भाजपा के डॉ. अनिल धीमान कांग्रेस के उम्मीदवार सुरेश कुमार से महज 60 मतों से हार गए। यह प्रदेश में जीत का सबसे कम अंतर है। इसी तरह, रामपुर सीट से कौल सिंह महज 143 मतों के अंतर से चूक गए। सुजानपुर सीट भी भाजपा के हाथ से फिसल गई। यहां से भाजपा प्रत्याशी रणजीत सिंह राणा 399 वोटों से पराजित हुए। 2017 में प्रेम कुमार धूमल ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। इस बार हमीरपुर सीट पर एक बड़ा उलटफेर हुआ। यहां से निर्दलीय प्रत्याशी बिल्डर आशीष शर्मा ने कांग्रेस उम्मीदवार पुष्पेंद्र ठाकुर को 12,899 वोटों से हराया। आशीष ने भाजपा और कांग्रेस से टिकट मांगा था।
शिमला जिले की जुब्बल-कोटखाई सीट पर कड़े मुकाबले में भाजपा के चेतन बरागटा कांग्रेस प्रत्याशी रोहित ठाकुर से 5,069 वोटों से हार गए। जुब्बल-कोटखाई के बारे में कहा जाता है कि जिस पार्टी का उम्मीदवार यहां से जीतता है, वही पार्टी बहुमत हासिल कर सरकार बनाती है। यह सियासी संयोग करीब दो दशक से देखा जा रहा है। इस बार भी यही हुआ है।
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