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#चिंतन शिविर: तकनीकी और रणनीति बड़ी चुनौती

आज ऐसे चिंतन शिविर की आवश्यकता है, क्योंकि कई दशकों से आंतरिक सुरक्षा की समस्याएं चली आ रही हैं और उनका समाधान अभी तक नहीं हो सका है। जैसे- पूर्वोत्तर में आजादी के बाद से ही कहीं न कहीं छोटे-बड़े विद्रोह होते रहे हैं। इनमें नगा समस्या सबसे बड़ी है। विद्रोही नगाओं के साथ समझौता भी हुआ था, परंतु उसे अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया

by प्रकाश सिंह
Nov 10, 2022, 03:41 pm IST
in भारत, संघ, हरियाणा
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में फरीदाबाद जिले के सूरजकुंड में 27-28 अक्तूबर को आयोजित चिंतन शिविर को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में फरीदाबाद जिले के सूरजकुंड में 27-28 अक्तूबर को आयोजित चिंतन शिविर को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

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आजादी के 75 साल बाद आंतरिक समस्याओं पर अब भी बहुत काम करना बाकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने फरीदाबाद में आयोजित दो दिवसीय चिंतन शिविर में न केवल इस पर शीघ्र कदम उठाने की बात कही, बल्कि एक देश-एक पुलिस वर्दी और सीमा पार अपराध से निपटने के लिए साझा कदम उठाने के सुझाव भी दिए

 

प्रकाश सिंह

हरियाणा में बीते माह दो दिवसीय चिंतन शिविर का आयोजन हुआ, जिसमें प्रदेशों के मुख्यमंत्री, मंत्रियों के अलावा केंद्र शासित राज्यों और विभिन्न प्रदेशों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चिंतन शिविर को संबोधित किया। फरीदाबाद के सूरजकुंड में 27-28 अक्तूबर को अमित शाह की अध्यक्षता में आयोजित इस शिविर का मुख्य उद्देश्य था देश की आंतरिक सुरक्षा के सामने मौजूद बड़ी चुनौतियो से निबटने के लिए नीतियां निर्धारित की जाएं।

इसमें संदेह नहीं कि आज ऐसे चिंतन शिविर की आवश्यकता है, क्योंकि कई दशकों से आंतरिक सुरक्षा की समस्याएं चली आ रही हैं और उनका समाधान अभी तक नहीं हो सका है। जैसे- पूर्वोत्तर में आजादी के बाद से ही कहीं न कहीं छोटे-बड़े विद्रोह होते रहे हैं। इनमें नगा समस्या सबसे बड़ी है। विद्रोही नगाओं के साथ समझौता भी हुआ था, परंतु उसे अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया। नक्सल समस्या 1970 में शुरू हुई थी, लेकिन करीब 50 साल बाद भी इसका समाधान नहीं हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्री ने जल्द ही इस समस्या का समाधान करने का आश्वासन दिया है।

गले की फांस बनती समस्याएं
इसी तरह, कश्मीर समस्या करीब 30 साल से चली आ रही है। ऐसी कई समस्याएं दशकों से गले की फांस बनी हुई हैं, जिनका समाधान ढूंढने की जरूरत है। आंतरिक सुरक्षा की समस्या इतने लंबे समय से इसलिए चली आ रही है, क्योंकि पहले की सरकारों ने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कोई नीति ही नहीं बनाई। हर प्रगतिशील देश में हर समस्या पर शोध होता है और उसी आधार पर समस्या का समाधान किया जाता है। दुर्भाग्य से हमारे देश में यह परंपरा रही है कि हर सरकार अपने दृष्टिकोण के अनुसार स्थिति का आकलन करती है। इसका परिणाम यह होता है कि जब सरकारें बदलती हैं तो नीतियां भी बदल जाती हैं और समस्या वहीं की वहीं रह जाती है। हम दूरगामी नीति नहीं अपना पाते। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि हम भी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति प्रतिपादित करें और इसके अंतर्गत समस्याओं का समाधान करें।

प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने कुछ विशेष समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘एक देश-एक पुलिस वर्दी’ का सुझाव देते हुए कहा कि यह सही है कि हर प्रदेश की पुलिस खाकी वर्दी पहनती है, लेकिन ये कुछ गाढ़ी और कुछ हल्की होती हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मेरा सुझाव है और इस पर केंद्र और राज्य सरकारें काम करें।’’ प्रधानमंत्री का सुझाव सही है और इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन सवाल यह भी है कि इसे कैसे लागू किया जाए? राज्य पुलिस बल और केंद्र पुलिस बल की संख्या 30 लाख से अधिक है। इतने बड़े पैमाने पर एक जैसी वर्दी उपलब्ध कैसे कराई जाएगी, इस पर मंथन करने की जरूरत है। यदि वर्दी का प्रबंध हो जाता है तो इस योजना को लागू करने में कोई दिक्कत नहीं होगी।

चिंतन शिविर में राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह

‘स्मार्ट पुलिस’ की परिकल्पना
समस्त पुलिस बल की वर्दी एक जैसी होना अच्छी बात है। लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है पुलिस बल का व्यवहार एवं कार्य प्रणाली। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में ‘स्मार्ट पुलिस’ का सुझाव दिया था। उन्होंने ‘स्मार्ट’ शब्द की व्याख्या भी की थी। एस मतलब सेंसिटिव (संवेदनशील), एम- मोबाइल, ए-अलर्ट (सतर्क), आर- रिलाएबल (भरोसेमंद) और टी का मतलब था टेक्नोलॉजी (तकनीक)। लेकिन दुर्भाग्य से इस दिशा में काम नहीं हुआ। पुलिस रिसर्च ब्यूरो ने इस बाबत कुछ राज्यों को पत्र भी लिखा था। कुछ राज्यों ने उनके सुझाव पर अमल भी किया, ताकि पुलिस अपने कार्य में ‘स्मार्ट’ हो सके। रिसर्च ब्यूरो ने उनके कार्यों की समीक्षा के बाद एक पुस्तक बनाई, जो हर राज्य में वितरित की गई। जिन राज्यों ने इस पर काम किया, वहां सकारात्मक परिणाम भी आए हैं। लेकिन इस पर ठोस काम नहीं हुआ। न तो केंद्र सरकार ने इस पर आगे सोचा और न ही राज्य सरकारों ने। स्मार्ट पुलिस की परिकल्पना को मूर्त रूप देने की जरूरत है ताकि पुलिस समय पर घटनास्थल पर पहुंचे। तकनीकी दृष्टि से भी पुलिस को और सक्षम करने की जरूरत है। यदि इसमें सुधार हुआ तो यह बहुत बड़ा कदम होगा। यदि हम वाकई पुलिस से स्मार्ट बनने की अपेक्षा करते हैं तो पुलिस को बाहरी दबावों से भी मुक्त करना पड़ेगा।

आपातकाल के समय शाह आयोग ने कहा था कि भविष्य में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति को रोकना है तो पुलिस को दबावों से मुक्त करना पड़ेगा। इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा था कि पुलिस को स्वतंत्र रूप से काम करने देना चाहिए, इसमें बाधा नहीं डालनी चाहिए। इसके लिए शीर्ष अदालत ने राज्य सुरक्षा आयोग गठित करने का भी सुझाव दिया था। कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, जिसमें पुलिस बल बाहरी दबावों से मुक्त होकर निष्पक्ष भाव से कानून और संविधान के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सके।

एक देश-एक पुलिस
वर्तमान में देश के 18 राज्यों ने अपने अलग-अलग कानून बना दिए हैं। इसमें शीर्ष अदालत के आदेश को ध्यान में नहीं रखा गया और वर्तमान व्यवस्था को कानूनी जामा पहना दिया गया। जहां भी संस्थागत परिवर्तन हुए हैं या अधिकार क्षेत्र में कटौती या कानून के साथ तोड-मरोड़ हुई है, उनकी गहन समीक्षा होनी चाहिए।  हमें एक ऐसा कानून चाहिए, जो जनता के मनोभाव के अनुसार हो और वह पूरे देश में लागू हो। राज्यों में अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग ठीक नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि राज्यों में कानून केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित मॉडल पुलिस एक्ट के अनुसार बने। इसके लिए केंद्र द्वारा उस कानून की प्रतिलिपि हर राज्य को भेजी जाए ताकि राज्य उसमें मामूली संशोधन कर अपने लिए कानून बना सकें। जिन राज्यों में भाजपा व उनके सहयोगियों की सरकारें हैं, वहां यह व्यवस्था लागू हो सकती है। जहां विपक्षी दलों की सरकारें हैं, वहां यह कहना चाहिए कि यदि वे संबंधित कानून अपने यहां लागू करते हैं तो उन्हें पुलिस बल को सशक्त व आधुनिक बनाने में केंद्र विशेष आर्थिक सहायता देगा। इससे ‘एक देश-एक पुलिस’ की परिकल्पना साकार हो जाएगी और राज्यों की पुलिस में आपसी समन्वय और अच्छा हो जाएगा।

 

कार्य संस्कृति बदलने की जरूरत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वन नेशन-वन पुलिस यूनीफॉर्म की जो बात कही है, वह स्वागतयोग्य है। पुलिस विविधता के लिए नहीं, बल्कि एकरूपता, कानून के निर्भीक अनुपालन और जनसेवा के लिए जानी जाती है। महत्वपूर्ण यह है कि हमने यदि आवरण बदल दिया, परंतु कार्यसंस्कृति नहीं बदली तो यह कवायद बेमानी होगी। प्रधानमंत्री पुलिस सुधार के लिए इच्छुक दिखते हैं। उन्होंने 2014 के डीजीपी सम्मेलन में स्मार्ट पुलिस की बात कही थी। इसके लिए प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार मामले में 2006 के सर्वोच्च न्यायालय के सात बिंदु के दिशानिदेर्शों को लागू करने पर विचार किया जाना चाहिए। इसके लिए यदि पुलिस को समवर्ती सूची में लाने की आवश्यकता हो, तो यह भी किया जाए।
-विक्रम सिंह, पूर्व डीजीपी, उत्तर प्रदेश

संगठित अपराध के लिए बने केंद्रीय कानून
चिंतन शिविर में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सीमा पार के अपराधों से प्रभावी तरीके से निपटना केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। इसके लिए उन्होंने साझा रणनीति बनाने पर जोर दिया। तस्करी जैसे अपराध के लिए भौगोलिक सीमा नहीं होनी चाहिए। ऐसे अपराध एक जगह से शुरू होते हैं और सीमा पार कर दूसरी जगह अपनी पैठ बना लेते हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए ही केंद्रीय गृह मंत्री ने सीमा रहित पुलिस पर जोर दिया है। लेकिन केवल इससे अपेक्षित परिणाम नहीं निकलेगा। इसके लिए संगठित अपराध कानून बनाने की आवश्यकता है। भारत सरकार को इस कानून को यथाशीघ्र लागू करना चाहिए। कई राज्य इस तरह के कानून लागू करने के लिए अनुमति मांगते हैं, इसलिए सरकार को जल्द एक केंद्रीय कानून बनाना चाहिए, ताकि इसे पूरे देश में लागू किया जा सके। इस संदर्भ में, ये भी विचार किया जाना चाहिए कि ‘पुलिस’ और ‘पब्लिक आॅर्डर’ को संविधान की राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में लाया जाए। ऐसा होने से केंद्र सरकार को अखिल भारतीय स्तर पर पुलिस सुधार लाने में सहायता मिलेगी।

इसके अलावा, कुछ अपराधों को संघीय अपराध माना जाए और उनकी विवेचना का अधिकार केवल संघीय विवेचना इकाइयों को ही दिया जाए। सीबीआई वर्तमान में ‘दिल्ली पुलिस स्पेशल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट’ के अंतर्गत काम करती है, जबकि यह व्यवस्था सही नहीं है। इसको खत्म करके सीबीआई के लिए अलग से एक कानून बनाया जाए, जिससे यह राज्य सरकारों के दबाव में नहीं रहे। अभी स्थिति यह है कि यदि कोई राज्य किसी मामले में अपना हाथ खींच लेता है, तो सीबीआई वहां असहाय हो जाती है। कहने का मतलब यह है कि सीबीआई पूरे देश के लिए हो और इस पर किसी भी प्रकार की बंदिश नहीं हो। अभी होता यह है कि किसी राज्य में कोई नेता या अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त है तो वहां की सरकार उसे बचा लेती है। इसलिए यह स्पष्ट करना होगा कि सीबीआई अखिल भारतीय स्तर पर काम करेगी और इसके अधिकारी देश के किसी भी हिस्से में बिना किसी रुकावट के काम कर सकते हैं। इससे सीबीआई को संस्थागत अधिकार मिलेंगे तो यह और सशक्त होगी और प्रभावी ढंग से काम कर सकेगी।

बहरहाल, चिंतन शिविर में प्रधानमंत्री मोदी ने सुशासन, आपसी तालमेल और नई तकनीक अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि कानून और व्यवस्था राज्यों की जिम्मेदारी है, लेकिन ये राष्ट्र की एकता और अखंडता से भी जुड़े हुए हैं। इसलिए राज्य सरकारों को केंद्रीय जांच एजेंसियों से पूरा सहयोग करना चाहिए।

(लेखक यूपी-असम के डीजीपी व सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक रहे हैं)

Topics: अपना-अपना राग ठीकचिंतन शिविरप्रधानमंत्री और गृह मंत्री‘स्मार्ट पुलिस’पूर्वोत्तर में आजादीअपनी-अपनी ढपली
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