गत 6 जून को सुप्रसिद्ध पत्रकार सतीश पेडणेकर का नई दिल्ली में निधन हो गया। 70 वर्षीय सतीश जी कुछ समय से अस्वस्थ थे। उन्होंने 70 के दशक से पत्रकारिता आरंभ की थी। वे लंबे समय तक ‘पाञ्चजन्य’ के संपादकीय विभाग से जुड़े रहे। इसके बाद वे दैनिक ‘जनसत्ता’ में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर कार्य करने लगे। उन्होंने ‘जनसत्ता’ के दिल्ली और मुंबई संस्करणों में कई वर्ष तक कार्य किया और वहीं से सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद भी वे लेखन और अध्ययन में व्यस्त रहते थे।
‘पाञ्चजन्य’ के लिए वे कुछ समय पूर्व तक लिखते रहे। अभी कुछ वर्ष पहले ही ‘पाञ्चजन्य’ ने महाराणा प्रताप और मुंशी प्रेमचंद पर विशेष अंक प्रकाशित किए थे। इन दोनों अंकों के लिए उन्होंने कई महीने तक कड़ी मेहनत की। लेखकों से संपर्क कर उनसे लेख मंगवाना, उन लेखों का संपादन करना, पेज बनवाना आदि कार्यों को उन्होंने बहुत ही कुशलता से पूरा किया। कुछ समय पहले ही उन्होंने जिहाद पर एक पुस्तक भी लिखी थी। उस पुस्तक के कारण जिहाद पर नए सिरे से बहस शुरू हुई। स्वभाव से निश्छल, सबके संपर्क में रहने वाले और सबके सुख-दुख में सम्मिलित होने वाले सतीश जी का व्यवहार मित्रवत था।
न सिर्फ पत्रकारों के परिकर में, अपितु सामान्य समाज में भी उनकी मुस्कराती छवि दिखाई देती रहती थी। उनमें शोध और अनुसंधान की ऐसी ललक थी कि जिस विषय पर लिखने बैठते थे, उस पर गहन अध्ययन और मंथन करके ही कलम चलाते थे। वे किसी विषय पर सतही स्तर पर नहीं, उसकी गहराई तक जाकर उसे विस्तार देते थे। यही कारण है कि सिर्फ ‘जनसत्ता’ में ही नहीं, तो देश के अन्य जाने-माने पत्र-पत्रिकाओं में भी छपे उनके लेख लोगों की वाहवाही लूटते थे। सतीश जी पत्रकार संगठनों में भी सक्रिय रहते थे और जहां कहीं भी पत्रकारों के हित की बात होती थी वहां उसमें भरपूर योगदान देते थे। वे अपने पीछे अपनी धर्मपत्नी और युवा पुत्र को छोड़ गए हैं। पाञ्चजन्य परिवार की ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।
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