भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन केवल आज के भारत की भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं था। इसकी पहुंच तब के समूचे भारत में थी। इसलिए, जब हम स्वतंत्रता अभियान के लीडरों की बात करते हैं, तो मास्टर सूर्य सेन या मास्टर दा, एक अभूतपूर्व व्यक्तित्व के रूप में सामने आते हैं।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन केवल आज के भारत की भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं था। इसकी पहुंच तब के समूचे भारत में थी। इसलिए, जब हम स्वतंत्रता अभियान के लीडरों की बात करते हैं, तो मास्टर सूर्य सेन या मास्टर दा, एक अभूतपूर्व व्यक्तित्व के रूप में सामने आते हैं। लेकिन आज देश में कितने लोग जानते हैं कि वह कौन थे या उन्होंने क्या किया।
उनका जन्म 22 मार्च 1894 को अविभाजित बंगाल के चिटगांव में हुआ था। उन्हें द हीरो ऑफ चिटगांव के नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने के लिए चिटगांव शस्त्रागार डकैती बेशक सबसे दुस्साहसिक प्रयासों में से थी। बाद में लंबे समय तक यंत्रणा देने के बाद उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था और विधिवत अंतिम संस्कार न करके समुद्र में दफना दिया गया था। अपने मित्र को लिखे उनके अंतिम शब्द बेहद मार्मिक हैं, मौत मेरे दरवाजे पर दस्तक दे रही है।
मेरा मस्तिष्क अनंत की ओर उड़ा जा रहा है …ऐसे सुमधुर, ऐसे नाजुक, ऐसे गंभीर मौके पर, मैं तुम्हारे लिए क्या पीछे छोड़ जाऊं? केवल एक ही चीज, जो है मेरा सपना, एक सुनहरी सपना – आजाद भारत का सपना… 18 अप्रैल 1930 की तारीख ना भूलना, चिटगांव के पूर्वी विद्रोह का दिन… अपने दिलों के केंद्र में उन देशभक्तों के नाम लिख लो जिन्होंने भारत की आजादी की वेदी पर अपने प्राण दिए।
अफसोस है कि भारत में शायद ही किसी को यह तारीख या उन स्वतंत्रता सेनानियों की याद होगी। ऐसा लगता है कि सूर्य सेन भारत के जिस हिस्से में जन्मे और रहे, उसका भारत का हिस्सा ना होना भी इस कमजोर स्मृति का कारण रहा है। दरअसल, वह और उनके जैसे लोग उस समय भारत के लिए लड़े थे, जब बंटवारे का विचार पैदा भी नहीं हुआ था। अत: यह प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य बनता है कि वह स्वतंत्रता अभियान के इन नायकों को जाने, जिनका कार्यक्षेत्र आज के भारत तक सीमित नहीं था।
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