सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे दोषी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया है। जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि राज्यपाल ने पेरारिवलन की अर्जी पर फैसला करने में काफी समय लगाया। कोर्ट ने कहा कि धारा 161 के तहत मिली शक्तियों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। कोर्ट ने केंद्र की इस दलील को खारिज कर दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत मिली सजा माफी की मांग पर केवल राष्ट्रपति ही विचार कर सकते हैं।
पेरारिवलन 30 साल की सजा काट चुका है। 27 अप्रैल को कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि पेरारिवलन को रिहा क्यों नहीं किया जा सकता है। जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार से पूछा था कि बिना कानूनी पहलू पर गौर किए ये बताएं कि क्षमा करने पर फैसला करने के लिए उचित प्राधिकार राष्ट्रपति हैं या राज्यपाल। कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की इस बात के लिए आलोचना की थी कि इस मामले को राष्ट्रपति के पास रेफर कर दिया। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल यह कहकर किसी मामले को राष्ट्रपति के पास सीधे नहीं भेज सकते हैं कि राज्य कैबिनेट ने अपने अधिकार का दुरुपयोग किया है। ऐसा करना संघवाद के खिलाफ है।
सीबीआई ने हलफनामा दायर कर कोर्ट को बताया था कि तमिलनाडु के राज्यपाल को इस मामले में फैसला करने का अधिकार है। ये राज्यपाल ही तय करेंगे कि पेरारिवलन को रिहा किया जाए या नहीं। पहले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा था कि वो दया याचिका पर फैसला करे।
पेरारिवलन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा था कि राज्य की कैबिनेट ने सजा माफ करने पर अपनी अनुशंसा राज्यपाल को भेजी थी लेकिन राज्यपाल ने उसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया। 6 सितंबर 2018 को पेरारिवलन ने राज्यपाल के पास सजा माफी की याचिका दायर की थी। 9 सितंबर 2018 को राज्य सरकार ने अपनी अनुशंसा राज्यपाल को भेज दी थी। राज्य सरकार की अनुशंसा राज्यपाल को माननी होती है। राज्यपाल ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन है इसलिए उस पर फैसले के बाद वो फैसला करेंगे। 9 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी राज्यपाल ने फैसला नहीं किया।
9 मार्च को कोर्ट ने पेरारिवलन को जमानत दी थी। सुप्रीम कोर्ट पेरारिवलन की सजा माफ करने की याचिका पर सुनवाई के दौरान 3 नवंबर 2020 को राज्य सरकार को राज्यपाल से एक बार फिर से सिफारिश करने का निर्देश दिया था, जिसमें राज्य सरकार की ओऱ से की गई सिफारिश पर राज्यपाल को फैसला लेने का आग्रह किया है। दरअसल इस मामले में राज्य सरकार ने आरोप लगाया है कि उसकी सिफारिश पर राज्यपाल ने दो साल से कोई फैसला नहीं लिया है।
इस मामले में सीबीआई ने हलफनामा दायर कर कोर्ट को बताया था कि तमिलनाडु के राज्यपाल को इस मामले में फैसला करने का अधिकार है। ये राज्यपाल ही तय करेंगे कि पेरारिवलन को रिहा किया जाए या नहीं। पहले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कहा था कि वो दया याचिका पर फैसला करे। पेरारिवलन की ओर से कहा गया है कि उन्होंने 2018 में राज्यपाल के पास दया याचिका लगाई थी और कहा था कि उनकी बाकी सजा माफ की जाए।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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