किरण सिंह
हरियाणा के पानीपत जिले के समालखा गांव में रहने वाले अमित रमन एक निजी कंपनी में अच्छी-खासी नौकरी करते थे। लेकिन उनकी रुचि खेती में थी। वे खेती में नए प्रयोग करना चाहते थे। लेकिन परिवार के लोग इसके लिए तैयार नहीं थे। अमित कहते हैं कि जैविक खेती करने में पहली चुनौती घर वाले ही खड़ी करते हैं, क्योंकि उन्हें एक ही ढर्रे पर खेती करने की लत पड़ी हुई है। यूरिया और कीटनाशक से फसल तैयार करो और मंडी में आढ़ती के पास पहुंचा आओ। इस क्रम को तोड़ना बिल्कुल आसान नहीं है। जब कोई किसान इससे बाहर निकलने की कोशिश करता है तो घर वाले सोचते हैं कि किसी ने बहका दिया या वह पागल हो गया है। गांव वाले भी उसे पागल ही समझने लगते हैं। अमित के पिता भी ऐसा ही सोचते थे। लेकिन अमित ने जिद ठान ली तो पिता भूपेंद्र सिंह को उन्हें चार एकड़ जमीन सौंपनी पड़ी। आज अमित जैविक फसलों के बड़े उत्पादक हैं। वे न केवल फसल उगा रहे हैं, बल्कि उसकी मार्केटिंग कर रहे हैं और दूसरे किसानों को भी जैविक खेती के लिए प्रेरित कर उनके लिए बाजार भी उपलब्ध करा रहे हैं। अमित कहते हैं, ‘‘हम अपनी जमीन और फसल में जहर डालने के बजाय उसे पसीने से सींचते हैं और जहर बनाने वाली बड़ी कंपनियों की जेब भरने के बजाय अपने आसपास के मजदूरों को पैसा देना पसंद करते हैं। हमारे उत्पादन की लागत अधिक होती है सो उसकी कीमत अधिक होना स्वाभाविक है।’’
ऐसे हुई शुरुआत
शुरुआत में अमित के सामने दो बड़ी चुनौतियां थीं- परिवार को मनाना और जैविक खेती में अधिक लागत। जैविक खेती में उत्पादन एक बार कम होता है और लागत भी अधिक आती है। इसलिए उन्होंने एक एकड़ से शुरुआत की। थोड़ी दिक्कत आई और गलतियां भी। इस तरह वे साल दर साल सीखते चले गए। आज वे अपनी 20 एकड़ जमीन में जैविक खेती कर रहे हैं और आसपास के 70 से अधिक किसानों से भी जैविक खेती करा रहे हैं। उन्होंने दूसरों के उत्पादों को बेचने के लिए ‘आर्गेनिक फेमिली फार्मर’ संगठन बनाया। अमित कहते हैं, ‘‘हमारा उद्देश्य स्पष्ट है। इस मुहिम में अधिक से अधिक किसानों को शामिल कर उनके आसपास बाजार तैयार करना है। इसलिए हम जैविक खेती के तौर-तरीके सहित तमाम जानकारियां साझा करते हैं। किसान को उसकी फसल का उचित दाम मिले और खरीदार को जहर मुक्त खाना मिले। दोनों के बीच विश्वास की डोर मजबूत हो। लेकिन इसके लिए किसानों को पहले अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर करनी होगी। यह तभी संभव हो सकता है, जब उसे अपनी फसल का उचित मूल्य मिले। इसके लिए किसान को खुद बाजार में आकर अपनी फसल बेचनी होगी।’’
बकौल अमित, ज्यादातर किसान पारंपरिक फसल उगाने में ही ज्यादा यकीन करते हैं और अपनी फसलों की मार्केटिंग भी नहीं करते। लेकिन जैविक खेती करने वाले किसान धीरे-धीरे अपने उत्पाद बेचना सीख रहे हैं। हरियाणा सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। वैसे भी जैविक खेती उन किसानों के लिए बहुत लाभदायक है, जिनके पास जमीन कम है। कारण, जैविक खेती में ज्यादातर काम हाथ से करने पड़ते हैं।
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