महेश दत्त
मुखतारेया, गल वद गई!
जी हां! इमरान खान के हाथ से पाकिस्तान की सत्ता की बागडोर तेजी से निकल रही है। जैसी कि संभावना थी, 8 मार्च, मंगलवार को जिस समय बिलावल भुट्टो अपने लॉन्ग मार्च का नेतृत्व करते हुए इस्लामाबाद में दाखिल हो रहे थे, उसी समय विपक्ष ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव संसद के स्पीकर के दफ्तर को दे दिया। संसद का अधिवेशन दो अलग-अलग नियमों के अंतर्गत बुलाया जा सकता है। एक नियम के अनुसार स्पीकर तीन दिन के भीतर अधिवेशन बुला सकता है और उसके चार दिन के भीतर विश्वास मत पर वोटिंग करवा सकता है। एक अन्य नियम के तहत स्पीकर अधिवेशन बुलाने के लिए 14 दिन तक का समय ले सकता है। यह स्पीकर पर निर्भर करेगा कि वह किस नियम के अंतर्गत अधिवेशन बुलाता है। स्पीकर असद कैसर सत्तारूढ़ दल से हैं और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह सरकार को राजनीतिक जोड़-तोड़ करने के लिए अधिकतम समय देना चाहेंगे।
यूं भी, असद कैसर को संसद चलाने के मामले में निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता। वे समय-समय पर अपनी इस अयोग्यता का परिचय बड़ी बेशर्मी से देते रहे हैं। यदि अधिवेशन 14 दिन बाद भी बुलाया गया और नियमानुसार एक सप्ताह के भीतर विश्वास मत पर मतदान कराया गया तो भी इस सरकार के पास अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए बीस दिन से अधिक नहीं हैं। विपक्ष का दावा है कि उसके पास 202 सदस्यों का बहुमत है जबकि सरकार गिराने के लिए मात्र 172 सदस्यों की आवश्यकता है। स्पीकर की नीयत को समझते हुए विपक्ष ने अपने तमाम सदस्यों को इस्लामाबाद में मौजूद रहने के लिए कहा है।
यदि अधिवेशन 14 दिन बाद भी बुलाया गया और नियमानुसार एक सप्ताह के भीतर विश्वास मत पर मतदान कराया गया तो भी सरकार के पास अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए 20 दिन से अधिक का समय नहीं है। विपक्ष का दावा है कि उसके पास 202 सदस्यों का बहुमत है जबकि सरकार गिराने के लिए मात्र 172 सदस्यों की आवश्यकता है। स्पीकर की नीयत को समझते हुए विपक्ष ने अपने तमाम सदस्यों को इस्लामाबाद में मौजूद रहने के लिए कहा है। |
यदि स्पीकर संविधान की आत्मा का निरादर करते हुए फैसले लें तो विपक्ष उसे संसद में ही चुनौती दे सकता है। यदि उसे वहां न्याय न मिले तो उसके पास सर्वोच्च न्यायालय जाने के अतिरिक्त कोई और रास्ता नहीं बचता। हम अपेक्षा कर सकते हैं कि स्पीकर एक बार फिर अपनी बदनीयती का प्रदर्शन करेंगे और सरकार की मदद करने का प्रयास करेंगे। ऐसा कोई भी फैसला जो संविधान की धज्जियां उड़ाता हो, उसे चुनौती देने के लिए विपक्ष का सर्वोच्च न्यायालय जाना तय है।
इमरान की विपक्ष को धमकी
पिछले दिनों इमरान खान ने एक जलसे को संबोधित करते हुए विपक्ष से पूछा कि अविश्वास प्रस्ताव पास न होने की हालत में विपक्ष के साथ जो कुछ किया जाएगा, क्या वह उसके लिए तैयार है? उन्होने यह भी कहा, कि इस बार विपक्ष को ऐसी शिकस्त देंगे कि विपक्ष 2028, यानी चुनाव तक उठ नहीं पाएगा। यह सीधे तौर पर विपक्ष को दी गई एक धमकी थी। इस तरह का व्यवहार इमरान खान की उस मानसिक स्थिति को रेखांकित करता है जहां फौज की बैसाखियों के बगैर सत्ता उनके हाथ से फिसलती दिख रही हैं और भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है।
यह सही है कि पाकिस्तान में आज तक किसी भी सरकार को अविश्वास मत के जरिए गिराया नहीं जा सका है। इससे पहले एक प्रयास बेनजीर सरकार को गिराने का किया गया था जब उनकी सरकार सिर्फ 8 महीने पुरानी थी और यह अविश्वास प्रस्ताव विफल रहा था। यह भी उतना ही बड़ा सच है कि इससे पहले की लोकतांत्रिक सरकारें संवैधानिक सीमाओं में रहकर काम करने का प्रयास कर रही थीं लेकिन ऐसा इस सरकार के बारे में नहीं कहा जा सकता।
सत्तारूढ़ सांसदों का खेल
वर्तमान स्थिति में यह संभव है कि तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के सदस्य इमरान का साथ छोड़कर विपक्षियों के साथ मिल जाएं और अगले चुनाव की तैयारी करें। उन्हें यह मालूम है कि यदि अगला चुनाव उन्होंने तहरीक-ए-इंसाफ से लड़ा तो उनकी हार निश्चित है। माना जा रहा है कि ऐसे तमाम सदस्यों ने दूसरे दलों से संपर्क साध लिया है और उन्हें उन दलों से टिकट मिलने के आश्वासन मिल चुके हैं। यही कारण है कि विपक्ष के समर्थकों की संख्या 202 तक पहुंच गई है। विपक्ष इसलिए भी अपने पक्ष के सदस्यों की संख्या बड़ी रखना चाहता है ताकि अगर स्पीकर कुछ सदस्यों की गिनती में हेरफेर करें तो उससे परिणाम पर असर न आए। आखिरी मौके पर किसी को ऊलजुलूल कारणों से गिरफ्तार किया जा सकता है जिसके लिए स्पीकर प्रोडक्शन आर्डर नहीं देगा, या आखिरी मौके पर कोई बीमार पड़ सकता है, या वोटिंग से पहले कुछ लोग गायब हो जाएं। आप कुछ भी सोच सकते हैं,यह पाकिस्तान है, जहां भरी गर्मी में होते चुनाव में धुंध छा सकती है।
आखिरी आस न्यायालय पर
अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के दौरान यदि सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य विपक्ष के साथ मतदान करते हैं तो इमरान खान की ओर से उनको कारण बताओ नोटिस भेजा जा सकता है जिसका उत्तर उन्हें एक महीने के अंदर देना होगा। इस एक महीने के बाद चुनाव आयोग को सूचित कर दिया जाएगा कि पार्टी अनुशासन तोड़कर विपक्ष के साथ मतदान करने के कारण उन्हें बर्खास्त किया जा रहा है। चुनाव आयोग ऐसे सदस्य को औपचारिक रूप से बर्खास्त करने में 1 महीने का समय ले सकता है। इसके बाद संबंधित सदस्य सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय को इस संदर्भ में 3 महीने के भीतर फैसला देना होता है। लेकिन इस बीच स्पीकर यह कह सकता है कि उसने मतदान से पहले ही इन सदस्यों को बर्खास्त कर दिया है तो यह एक संवैधानिक संकट बन जाता है क्योंकि इन सदस्यों को अपना स्पष्टीकरण देने का मौका नहीं मिला है। या फिर स्पीकर यह भी कह सकता है कि इन सदस्यों ने पार्टी अनुशासन को तोड़ा है जिसके चलते इनके मतों को अमान्य किया जाता है। हालांकि इसी कार्यकाल में इमरान खान के ही दल के कुछ सदस्यों ने सीनेट के चुनाव में विपक्ष को मत दिया था और उन मतों को गिना गया था।
ऐसी परिस्थिति में स्पीकर का निष्पक्ष न होना और इमरान खान के आदेश का गुलाम होने की निर्णायक भूमिका हो सकती है। ऐसे में अगर विपक्ष के पास इतना बहुमत है कि वह इमरान सरकार को गिरा सकती है तो ठीक, लेकिन अगर इन सदस्यों के मत निर्णायक हैं और स्पीकर उन्हें नहीं गिनता है तो फिर विपक्ष के पास भी सर्वोच्च न्यायालय के अलावा कोई और रास्ता न बचेगा। सर्वोच्च न्यायालय से फैसला आते-आते कितना समय लग जाएगा, कौन जाने। ‘. . . दो किनारों से खेलने वाले/ डूब जाएं तो क्या तमाशा हो।’
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