गंगा जल के साफ होने को लेकर हाल ही में एक रिपोर्ट आई है। इसमें 2015 के मुकाबले 2021 में गंगा जल में सुधार की बात कही गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड से लेकर बिहार के भागलपुर तक गंगा जल में जैविक आक्सीजन मांग(बीओडी)में कमी आई है। बीओडी को साधारण शब्दों में इस तरह समझ सकते हैं कि पानी में मौजूद मल—मूत्र के प्रभाव को समाप्त करने के लिए मांगी गई आक्सीजन। उत्तराखंड और बिहार के कुछ हिस्सों में इस आक्सीजन की मांग में कमी हुई है। वहीं पश्चिम बंगाल में बहने वाली गंगा के जल में कोई सुधार नहीं है। जिस क्षेत्र में गंगा के जल में बीओडी में कमी आई है, उस क्षेत्र का जल स्नान करने योग्य माना जाता है। इसका अर्थ साफ है कि गंगा के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है। रिपोर्ट बताती है कि गंगा का जल स्नान के मानक के अनुकूल मिला, जो अन्य तथ्यों के साथ प्रति लीटर पानी में तीन मिलीग्राम बीओडी की मांग होने पर होता है। यह अवस्था अप्रदूषित की श्रेणाी में आती है। ऐसी अवस्था उत्तराखंड (हरिद्वार से लेकर सुल्तानपुर तक) और बिहार (बक्सर से भागलपुर) तक है। स्वच्छ गंगा राष्टीय मिशन के महानिदेशक जी. अशोक कुमार के अनुसार गंगा के दो अन्य मार्गों (कन्नौज से वाराणसी और पश्चिम बंगाल में त्रिवेणी से डायमंड हार्बर) में प्रदूषण का स्तर पांच रहा, जो न्यूनतम है। इस श्रेणी में बीओडी का स्तर तीन से छह मिलीग्राम होता है। इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार के हिस्से में बहने वाली गंगा के जल में बीेओडी के स्तर में बड़ी कमी आई है। 2015 में इस हिस्से में बीओडी का स्तर 7.8 से 27 मिलीग्राम प्रति लीटर था,जिसे दूसरी श्रेणी कहा जाता है। वहीं उत्तर प्रदेश में तीसरी श्रेणी का था यानी 3.8 से 16.9 मिलीग्राम प्रति लीटर बीओडी रहा। बता दें कि जिन जल निकायों का बीओडी स्तर 6 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक होता है, उन्हें प्रदूषित माना जाता है और उपचारात्मक कार्रवाई के लिए उनकी पहचान की जाती है।
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