पाकिस्तान से आई एक ताजा रिपोर्ट हैरान करने वाली है। इससे पता चलता है कि स्वार्थ के लिए पाकिस्तान उस चीन की पीठ में छुरा भोंक सकता है जिसे फिलहाल उसने अपना आका बनाया हुआ है। पाकिस्तान में पैसे की भारी किल्ल्त है और आज वह दुनिया में हाशिए पर पड़ा है। ऐसे में वह लगातार चीन पर निर्भर होता जा रहा है। इन परिस्थितियों में, खबर है कि पड़ोसी इस्लामी देश की इमरान सरकार चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को बंद करने का मन बना चुकी है बशर्ते अमेरिका उसका हाथ थाम ले।
यह दावा किया गया है एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट में। बताया गया है कि पाकिस्तान की तरफ से CPEC को बंद करने का प्रस्ताव रखा गया है। लेकिन उसके ऐसा करना तभी संभव होगा जब उसे अमेरिका की मदद मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि पिछले लंबे समय से पाकिस्तान अमेरिका की नजरों से गिरा हुआ है। कई मौकों पर उसने अमेरिका के नजदीक होने की कोशिश की है, लेकिन बाइडन प्रशासन ने उसे व्हाइट हाउस के आसपास फटकने तक नहीं दिया है। इसलिए पाई—पाई को मोहताज हुआ पाकिस्तान चाहता है कि कैसे भी अमेरिका से उसे मिलते रहे डॉलर फिर से मिलने लगें। इसके लिए इमरान सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि उसके अमेरिका के साथ बिगड़े संबंध पटरी पर आ जाएं।
प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा मोईद यूसुफ को पाकिस्तान का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाना इसी तरफ बढ़ने वाला एक कदम था। एशिया टाइम्स की रिपोर्ट दावा करती है कि यदिर पाकिस्तान को व्हाइट हाउस से आर्थिक मदद मिले तो पड़ोसी इस्लामी देश चीन के साथ अपना CPEC करार निरस्त कर सकता है।
वैसे, इमरान खान का हमेशा से यही कहना रहा है कि चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर न सिर्फ इस्लामाबाद के लिए, बल्कि पूरे इलाके में आर्थिक तरक्की का रास्ता बनाएगा।
रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। पहले भी ऐसी कोशिशें हो चुकी हैं। उल्लेखनीय है कि जुलाई 2019 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से प्राप्त राहत अनुदान को छोड़कर पाकिस्तान को अमेरिका से कुछ खास नहीं मिला है। व्हाइट हाउस और इस्लामाबाद के बीच नजदीकियां बढ़ाने के उसके प्रयास उस वक्त धराशायी हो गए थे जब नवंबर 2021 में बाइडन प्रशासन ने पाकिस्तान की बजाय कतर को अफगानिस्तान में अपना राजनयिक प्रतिनिधि नामित किया था।
ग्वादर में इस परियोजना को लेकर स्थानीय लोगों के जबरदस्त विरोध के चलते लगभग दो साल से इसका काम ठप पड़ा है। इससे चीन का नाराज होना स्वाभाविक है। कारण, बीजिंग इस परियोजना पर लगभग 16 अरब डॉलर व्यय कर चुका है।
इस महीने के आरम्भ में प्रधानमंत्री इमरान खान ने चीन के एक वरिष्ठ अधिकारी एरिक ली को एक साक्षात्कार में बताया था कि वे CPEC तथा ग्वादर को भौगोलिक आर्थिक स्वरूप में एक बड़े अवसर के तौर पर देखते हैं। उन्होंने तब इस बात से इनकार किया था कि पाकिस्तान इस आर्थिक गलियारे के कर्ज के जाल में हैं।
दिलचस्प बात है कि ग्वादर में इस परियोजना को लेकर स्थानीय लोगों के जबरदस्त विरोध के चलते लगभग दो साल से इसका काम ठप पड़ा है। इससे चीन का नाराज होना स्वाभाविक है। कारण, बीजिंग इस परियोजना पर लगभग 16 अरब डॉलर व्यय कर चुका है।
इमरान खान ने हाल की अपनी चीन यात्रा में इसके दूसरे चरण की शुरुआत करने को चीनी अधिकारियों को मना तो लिया था लेकिन आगे काम शुरू होने से पहले वहां एक बार फिर से इसका विरोध होने लगा है। बलूचिस्तान के ग्वादर में राजनीतिक दल, लोकाधिकार कार्यकर्ता, मछुआरे आदि CPEC के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए हैं। कई विरोधी रैलियां निकाली गई हैं। ग्वादर के निवासी मांग कर रहे हैं कि इस परियोजना पर तभी काम करने दिया जाएगा जब उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी की जाएंगी।
टिप्पणियाँ