भारत में अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने कृत्रिम अकाल को एक हथियार के रूप में प्रयोग किया। अंग्रेजी शासन में 80 बार अकाल पड़ने की बात कही जाती है। कई विदेशी विद्वानों और अनेक भारतीय इतिहाकारों ने तथ्यों के आधार पर बताया है कि कुछ अकाल तो प्राकृतिक थे, लेकिन ज्यादातर मानव निर्मित। आस्ट्रेलिया के एक विद्वान डॉ. जी. पोल्या के अनुसार बंगाल का अकाल एक मानव निर्मित अकाल था, क्योंकि इसके लिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल की नीतियां जिम्मेदार थीं। उल्लेखनीय है कि चर्चिल को बार-बार बताया जा रहा था कि लोग भूख से मर रहे हैं। इसके बावजूद उन्होंने भारत से इंग्लैंड भेजे जा रहे अनाज पर रोक नहीं लगाई। इस कारण 1943-44 में बंगाल में लगभग 40,00,000 भारतीयों की जान गई थी। यदि अनाज इंग्लैंड नहीं भेजा जाता तो लाखों भारतीयों की जान बच सकती थी। यानी भारतीयों को जानबूझकर मारा गया।
लेखक राकेश कृष्णन सिम्हा के अनुसार 1876 में जब दक्षिण के पठार में सूखा पड़ा था, तब भारत में गेहूं और चावल के पर्याप्त भंडार थे। उस समय आवश्यकता इस बात की थी कि भारत में उपलब्ध अन्न भंडारों का लोकहित में वितरण किया जाता और भुखमरी की स्थिति से निपटा जाता। यह असंभव नहीं था, किन्तु तत्कालीन वायसराय राबर्ट बुलवर लिटन ने तय किया कि परिस्थितियां चाहे कुछ भी हों, हम खाद्यान्न का भारत से इंग्लैण्ड को निर्यात करते रहेंगे। यानी उन्हें भारतीयों की कोई चिंता नहीं थी।
एक रपट के अनुसार अनाज के कृत्रिम अभाव के कारण 1850 से 1899 तक 1.90 करोड़ भारतीयों की मौत हुई थी। इसका सबसे बड़ा कारण था सरकार द्वारा राहत के लिए कुछ न किया जाना। 1901 के ‘अकाल आयोग’ की रपट कहती है कि बारह अकाल और चार ‘गंभीर कमी’ 1765 और 1858 के बीच हुई। यहां ‘गंभीर कमी’ का संकेत सरकार की नीतियों की ओर है।
उल्लेखनीय है कि उपनिवेशवाद की अवधारणा शोषण, असमानता, सभ्य-असभ्य, गैर-मत और निरंकुश दमन पर आधारित रही है। इसकी शुरुआत पोप निकोलस ने 18 जून,1452 में अपने अधिकार पत्र से की थी। इसमें उन्होंने पुर्तगाल के शासक अलफांसो पंचम को अधिकृत किया कि पुर्तगाल अफ्रीका में दास व्यापार को शुरू करे तथा गैर-ईसाई और उनकी भूमि पर निरंकुश अधिकार स्थापित करे। 1455 में इन अधिकारों मे वृद्धि करते हुए पोप ने पुर्तगाल को नई दुनिया की खोज व गैर-ईसाइयों पर अपना अधिकार स्थापित करने का आदेश दिया।
अनाज के कृत्रिम अभाव के कारण 1850 से 1899 तक 1.90 करोड़ भारतीयों की मौत हुई थी। इसका सबसे बड़ा कारण था सरकार द्वारा राहत के लिए कुछ न किया जाना। 1901 के ‘अकाल आयोग’ की रपट कहती है कि बारह अकाल और चार ‘गंभीर कमी’ 1765 और 1858 के बीच हुई। यहां ‘गंभीर कमी’ का संकेत सरकार की नीतियों की ओर है। |
पोप और ईसाई मत के अनुसार दुनिया की भूमि का सार्वभौम अधिकारी ‘गॉड’ ही है और उस भूमि का अधिकारी सिर्फ ईसाई मतावलंबी ही हो सकता है। परिणामस्वरूप 1493 में पोप अलेक्जेंडर छठे ने एक और अधिकार पत्र जारी किया, जिसे ‘इन्टर कैटेरा’ के नाम से जाना जाता है। पोप ने यह अधिकार पत्र स्पेन और पुर्तगाल को दिया जिससे दोनों ही नई दुनिया में खोजी गई भूमि का विभाजन कर सकें। 1493 के अधिकार पत्र में ही पोप ने ‘डॉक्टरिन आॅफ डिस्कवरी’ के सिद्धांत को प्रतिपादित किया। यह सिद्धांत कहता है,‘‘दुनिया की वह भूमि जहां ईसाई मतावलंबी नहीं रहते हैं वह खोजे जाने योग्य है, उस पर ईसाइयों का अधिकार होना चाहिए।’’ यही कारण है कि डच, पुर्तगाली, अंग्रेज दुनिया के अलग—अलग देशों में जाने लगे।
सन् 1500 तक पुर्तगालियों का भारत में एक औपनिवेशिक शक्ति के रूप में उभरना इसी ‘डॉक्टरिन आफ डिस्कवरी’ की ही देन रहा है। भारत में पुर्तगाली शासन पूर्णत: ईसाई मत पर आधारित था। गोवा ‘इनक्विजिशन’ का इतिहास हिंदुओं पर हुए अत्याचार का साक्षी है। ‘इन्क्विजिशन’ से अभिप्राय है ईसाई न्यायिक जांच प्रणाली जिसके तहत ईसाई मत का अनुपालन न करने वालों की ईसाई न्यायिक जांच की जाती थी। गोवा में पुर्तगालियों की सत्ता स्थापित होने बाद अगले 450 वर्ष तक भारी संख्या मे हिंदुओं का नरसंहार किया गया।
बाद में अंग्रेज आए तो उन्होंने भी वही किया जो पुर्तगालियों ने किया। यानी चाहे अंग्रेज हों या पुर्तगाली इन सबने पोप के आदेश का पालन किया, ताकि भारत में ईसाइयत की जड़ें मजबूत की जा सकें। इसके लिए गैर—ईसाइयों को मारना शायद उनके लिए पाप नहीं है।
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