आज 'जयपुर फुट' यानी कृत्रिम पैरों के कारण हजारों दिव्यांगों का जीवन सहज हो गया है। जो लोग किसी कारण से अपने पैर खो बैठे थे, आज वे एक सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जी रहे हैं। जयपुर फुट के निर्माता थे डॉ. प्रमोदकरण सेठी। जब भी वे पैर से अपंग किसी व्यक्ति को देखते थे, तो उनके मन में बड़ी पीड़ा होती थी। यही कारण है कि उन्होंने एक दिन ऐसे लोगों के लिए कृत्रिम पैर तैयार करने का निर्णय लिया और इस काम में वे जुट गए। अंतत: उन्हें सफलता मिली और उन्होंने इसेे ‘जयपुर फुट’ नाम दिया। इस काम के लिए वे कुछ ही समय में पूरी दुनिया में विख्यात हो गए। उल्लेखनीय है कि इससे पहले पैर से अपंग किसी व्यक्ति को लकड़ी की टांग लगाई जाती थी। इस कारण उसे बड़ी दिक्कत होती थी। वह पैर को मोड़ नहीं सकता था। वहीं जयपुर फुट को लगाना और उसका प्रयोग करना बहुत ही आसान है। जयपुर फुट में रबड़ का ऐसा घुटना भी बनाया गया, जिससे पैर मुड़़ सकता था। थोड़े अभ्यास के बाद व्यक्ति इससे स्वाभाविक रूप से चलने लगता था और देखने वाले को उसकी दिव्यांगता का पता ही नहीं लगता था। इससे उसके आत्मविश्वास में बहुत वृद्धि होती है। आज जयपुर फुट के कारण आत्मविश्वास पाने वाले दिव्यांग पूरी दुनिया में हैं।
डॉ. प्रमोदकरण सेठी का जन्म 28 नवंबर, 1927 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भौतिकीशास्त्र के प्राध्यापक थे। अतः पढ़ने-लिखने का वातावरण उन्हें बचपन से ही मिला। प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण कर उन्होंने सरोजिनी नायडू चिकित्सा महाविद्यालय, आगरा से 1949 में चिकित्सा स्नातक और फिर 1952 में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की।
इसके बाद भी डॉ. सेठी की शिक्षा की भूख समाप्त नहीं हुई। उनकी रुचि शल्य चिकित्सा में थी। अतः उन्होंने एडिनबर्ग के रॉयल मेडिकल कॉलेज ऑफ सर्जन्स में प्रवेश ले लिया। 1954 में यहां से एफ.आर.सी.एस. की उपाधि लेकर वे भारत लौटे और राजस्थान में जयपुर के सवाई मानसिंह चिकित्सा महाविद्यालय में शल्यक्रिया विभाग में प्राध्यापक बने। 1982 तक डॉ. सेठी इसी महाविद्यालय में काम करते रहे। इसके साथ ही उन्होंने सन्तोखबा दुरलाभजी स्मृति चिकित्सालय में अस्थियों पर विस्तृत शोध किया। इससे दूर-दूर तक उनकी ख्याति एक अस्थि विशेषज्ञ के रूप में हो गई। इन्हीं दिनों उन्होंने दिव्यांगों के जीवन को सहज बनाने के लिए कृत्रिम पैर बनाने का सपना देखा।
जयपुर फुट का प्रयोग दुनिया के कई प्रमुख लोगों ने किया। इनमें भारत की प्रसिद्ध नृत्यांगना सुधा चन्द्रन भी हैं। एक फिल्म निर्माता ने उनकी अपंगता और फिर से कुशल नर्तकी बनने की कहानी को फिल्म ‘नाचे मयूरी’ के माध्यम से पर्दे पर उतारा। इससे डॉ. सेठी का नाम घर-घर तक पहुंच गया। इस कार्य के लिए उन्हें अनेक पुरसकार मिले।
लाखों दिव्यांगों के जीवन में नया उजाला भरने वाले डॉ. प्रमोदकरण सेठी 6 जनवरी,2008 को इस नश्वर शरीर को छोड़कर वहां चले गए, जहां से कोई नहीं लौटता है।
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